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Friday, March 29, 2013

ग़ज़ल लिखु.. कहानी लिखु..


ग़ज़ल लिखु.. कहानी लिखु..
या मेरी सांसो की कोई रवानी लिखु...
या तेरे इश्क़ के सजदे मे गुजरती..
तन्हा पलो की ये ज़िंदगानी लिखु...

शाम लिखु.. चाँदनी लिखू..
या मेघो का बरसता पानी लिखु...
सदियो से गुज़रते हुए ये दिन लिखु..
या सपनो की एक मुलाकात बेगानी  लिखु...

लिख दूं इन आँखो के समंदर की गहराई को..
लिख दू यादे संग लाने वाली पुर्वायी को...
पल पल मजबूत होता एक विश्वास लिखु या
लिख दू सुबह की उस मीठी अंगड़ाई को..

खुद से जुदाई की दास्तान लिखु..
कलम की ज़ुबान से दिल का ब्यान लिखु..
जो मिल कर बुन रहे है सपने अपने
उन सपनो की एक खोई हुई ज़ुबान लिखु..

Friday, November 9, 2012

सैनिक : ज़िंदगी से अंतिम मुलाकात

वक़्त आ गया है तुझे अलविदा कहने का ए ज़िंदगी..
मैं अब इस पावन भूमि पर मिटने चला हू...
एक और कहानी मौत से प्यार की..
आए ज़िंदगी देख मैं बयान करने चला हू..

मेरी नींद के बिछोने का रंग देख कर
गर्व से छोड़ा होगा सीना मेरे पिता का..
रास्ता देखती बूढ़ी मा को समझा देना तू..
उनका निशान इस माटी की आँचल पर छोड़ चला हू..

देख ना पाऊँगा शायद मैं सूरज कल का
पर था इंतज़ार मुझको कब से सुनहरे पल का,,
कामना नही करता मैं स्वर्ग की ..
देश की मिट्टी की गोद मे ही अब रहने चला हू...

पुनर्जनम होता है यदि तो,,
वापिस इस ज़मीन पर आऊ मैं..
कर दू इस माटी के नाम सारे जन्म..
आँखो मे लेकर ये आस अब सोने चला हू...

ना गिरे मोती किसी आँख से .. जब
आज तिरंगे मे लिपटने का जब दिन है आया...
जश्न मनाना .. मेरी इस उपलब्धि पर..
मैं इसी माटी से पैदा हो इसी मे मिलने चला हू..

मैं बेवफा हू तुझसे फिर भी
ज़िंदगी, एक गुज़ारिश कर रहा हू..

आँच ना आने देना उन पर
जिनका सिर्फ़ मैं ही एक सहारा था..
जिनकी आँखो का मैं तारा था...
कर्ज़ मैं उनके चुका नही पाया..
फ़र्ज़ वो मैं जो निभा ना पाया..
वो मा भी समझ कर जी जाएगी..
आँसुओ को भी अपने वो पी जाएगी..
उन्हे कोई मुश्किले ना आने देना..
भर पेट उन्हे बस हमेशा रोटी खाने देना..
बहन मेरी कलाई नही भूल पाएगी..
मांग की सुनी लकीर मेरी परछाई ना भूल पाएगी...
थोड़ा उनका तू ध्यान रख लेना..
फर्ज़ मेरा वो तू पूरा कर देना..
यूँ तो आऊँगा मैं फिर से
पर अभी कर अलविदा तुझे मैं माटी की गोद मे जीने चला हू
वक़्त आ गया है तुझे अलविदा कहने का ए ज़िंदगी..
मैं अब इस पावन भूमि पर मिटने चला हू....

Sunday, October 28, 2012

क्यों ना एक बार


क्यों ना एक बार सब फ़ासले मिटाए जाए..
क्यों ना एक बार फिर दिल से दिल मिलाए जाए...
क्यों रहे घरोंदा हमारा मातम के साए मे
क्यों ना उस मे एक बार खुशियो के दिये जलाए जाए...

कभी साथ बैठ कर मनाए होली..
गुरु पर्व पर भी हम गाये हमजोली...
क्यों ना हम साथ मनाए पर्व एक दीपो का..
क्यों ना साथ बैठ ईद पर सेंवई खाई जाए


क्यों फ़र्क ढूँढे हम अल्लाह और भगवान मे
मानवता ही लिखी है गीता और क़ुरान मे...
लहू छोड़ बहे नादिया जहाँ दूध की...
चलो फिर एक ऐसा देश बनाया जाए..

खुदा भी वही.. वही है हिंदू पुराण..
वही है ईसा भी.. वही संत नानक महान..
हिंदू सिख मुसलमान बनने से पहले..
क्यों ना एक बार इंसान बना जाए...

क्यों रहे घरोंदा हमारा मातम के साए मे
क्यों ना उस मे एक बार खुशियो के दिये जलाए जाए...

Thursday, October 11, 2012

जब भी ज़िक्र होगा मोहब्बत का ...

समेट लू इन गुज़रते लम्हो को 
अपने मन के किसी कोने मे.. 
ये याद आएँगे हर दूं..
जब भी ज़िक्र होगा मोहब्बत का ...

कि तुम थे एक कोशिश मे.. 
साथ मेरे चलने की..
मेरी रफ़्तार पकड़ने की..
ना थी कोई भावना स्वार्थ की...

इतना अनोखी चाहत..
ना कभी देखी ना कहीं सुनी..
अफ़सोस है मुझे की
ये एक कहानी ना बनी...

तुम्हारी शिकायत कि..
मिलते नही हो ख्वाब मे भी..
मैं असमंजस मे हू..
कि मिल कर नज़ारे कैसे मिलाऊ..
डरता हू खुद से ...
तेरा सामना कैसे कर जाऊ..

साथ चलना मुमकिन नही है..
कसूर कहीं ना कहीं मेरा ही है..
कमजोर नही है मोहब्बत तेरी...
मैं ही हरा हुआ हू खुद से...

याद आएँगे लम्हे तेरे साथ के..
जब भी ज़िक्र होगा मोहब्बत का...

Thursday, October 4, 2012

एक ढके चेहरा का नकाब उतार कर दिखलाता हू..


बँधी है बेड़ियाँ कुछ वो फिर से तुम्हे सुनाता हू.,.
एक ढके चेहरा का नकाब उतार कर दिखलाता हू..

खादी पहन डाकू भी संसद मे पहुँच जाता है..
ओर एक व्यंग करने वाला कलाकार... जेलो मे मिल जाता है..
सीना छलनी करने वाले को.. बिरयानी खिलाई जाती है..
ओर शहीदो की माओ को .. दफ़्तरो की धूल चटाई जाती है
भगत सिंग ओर राजगुरु की कुर्बानी पल पल यहाँ रोती है..
जब सियासत लोगो मे नफ़रत के बीज बोती है..
मैं फिर तुमसे एक बार भारतीयता के बात बताता हू..
क्या हो तुम आज तुम्हारा तुमसे परिचय करवाता हू..

जी रहे हो तुम यहाँ.. वो जीवन बेमानी है..
परंपरा की एक अनसुलझी  कोई कहानी है..
कोई गैर रोज़ तुम्हारा खून चूसने जब आता है..
अपना ही कोई आगे बढ़ उसे फूलो का हार पहनता है..
अपनो के हाथ काट कर.. बेच देता है बाज़ारो मे..
भूखा देश नज़र आता सुबह शाम नज़ारो मे..
बिक जाती है रूह जहाँ.. उस मॅंडी से तुम्हे मिलवाता हू..
एक ढके चेहरा का नकाब उतार कर दिखलता हू..

Saturday, September 8, 2012

यूँ मेरा देश भी मेरा अपना नही,,,,


कहने को दुनिया मुट्ठी में हैं अपने,,
यूँ मेरा देश भी मेरा अपना नही,,,,
जिन की खातिर कितने कुर्बान हो गये हंसते हंसते..
 मेरी आँखो मे आज वो सपना नही..

मैं लड़ जाऊँगा धर्म के नाम पर..
पर वतन के लिए चेतना मुझे आती नही ..
गुलामी की जंजीरो की आदत मुझको..
दो साँसे आज़ादी की मुझे सुहाति नही...

अच्छा है यदि लड़े दो चार प्रांत के नाम पर,,,
अपना कुछ तो भला होगा..
अपने घर मे आग लगा सोचता में..
आख़िर इससे घर पड़ोसी का भी तो जला होगा...

पढ़ाई पर बच्चो को देकर लालच नयी साइकल का...
महफ़िलो मे भ्रष्टाचार पर मैं बतियता हू...
जब घड़ी आती है ईमान परखने की..
चंद सिक्को से मैं परीक्षा से ही बच जाता हू..

मैं लड़ता हू आरक्षण पर..
पानी ओर रोटी की लड़ाई से भला मुझे क्या करना..
काम है मेरा नारेबाज़ी करना आख़िर..
उसी से शाम को मेरे घर का चूल्हा है जलना...

यूँ ताक़त है मुझमे ज़माने से भीड़ जाने की..
प्रेमियो को सरे आम मार कर.. सभी समाज बनता हू...
और जब कोई मुझसे मेरे हक मार ले जाता है..
मैं मजबूरी का बस झुन्झुना बजता हू...

ये मैं इस अंजान का भी हिस्सा है..
शायद एक दूसरे का यही एक किस्सा है...
मत समझना मेरा उद्देशय है सिर्फ़ व्यंग्य..
मैं तो आत्मा मेरी जगाना चाहता हू..
देश के लिए मर मिटे जो..
शब्दो के सहारे एक ऐसे पीढ़ी बनाना चाहता हू...

Wednesday, August 29, 2012

पर सपना मेरा बिखर जाता है..


कहीं दूर
क्षितीज़ के पास...
 जहाँ ये आसमान..
धरती से मिल जाता है...

उसी तरह अंत मे
मेरी सोच के हाशिए पर
तेरा मेरा रिश्ता..
हमेशा ही जुड़ जाता है..

समझता है कोई..
कि मैं बीते कल को
अपने मुट्ठी मे
दबाकर साथ चल रहा है..

पर जब
हौंसला देने वाला साथ नही
आगे चलता हुआ अनजान फिर
पीछे मूड जाता है..

पर ये तो कल है
आख़िर बीत चुका है
जो बस अब मैं
देख सकता हू दूर से ही

छूने की कोशिश मे
उस सुंदर लम्हो की दर्शनि को..
मैं हो जाता हू बेसूध अक्सर...
पर सपना मेरा बिखर जाता है..

Monday, August 27, 2012

मैं


मध्यम मध्यम पूर्वा..
अटखेलियाँ करती हुई..
एक जोश भरते हुई..

कंपकपाते हुए  शब्द मेरे..
अब एक आवाज़ बनने लगे है..

मैं भी तो हू झोंका,,
इस मनचली हवा का आख़िर..
सारी हदे तोड़ कर...
अब तूफ़ानो की तरह बहने लगा हू...

मैं उन्मुक्त हो चुका हू फिर अब..
की ज़ंज़ीरे बंदिशो की स्वयं खुलने लगी है..
मैं भँवरा बन अब
इच्छुक फूलो पर रहने लगा हू...


कई मौसम आ चुके है..
कई मौसम अभी आने की राह देख रहा मैं..
शुष्क भी है कुछ.. ओर कुछ तरल भी...
बस अब मैं लग रहा की ये  मैं भी था कहीं..

Sunday, August 12, 2012

मैं आऊँगा लौट कर

हवओ संग आज फिर उड़ने चला हूँ..
सपनो की मंज़िलो से मिलने चला हूँ..
बिछड़ने का अहसास है आज इस ज़मीन से..
जब आज फिर आसमान के रंग मे घुलने चला हूँ..

फिर एक किस्सा बना है आज प्यार का..
अफ़साना बना है कब से दबे उस इकरार का..
बरसते बादल भी थम गये थे आज..
जब मेरे गुलिस्ताँ मे मौसम आया था बहार का..

मुलाक़ते होंगी अब तुमसे पर एक नये आयाम पर
जो यहाँ ना मिली उस अजनबी शाम पर..
राह ताकना मेरी तुम थोड़ी सी..
मैं मिलूँगा तुझसे फिर एक नये मुकाम पर..

जवाब तेरे अनसुलझे सवालो का बन जाऊँगा..
मैं आऊँगा  लौट कर किस्सा उजलो का बन जाऊँगा
नही कोई बहती नदी का पानी नही जो वापिस लौटा नही..
बादलो मे पानी बन फिर तेरे आँचल मे आकर गिर जाऊँगा

ये ना समझना की तुझसे रूठ कर तुझसे दूर चला हूँ..
तुझसे अपनी नज़ारे मोड़ चला हू..
तुझमे तो बसता है रब मेरा.. और बसती मेरी आत्मा यहाँ..
जुदा होकर तुझसे एक बार मैं.. फिर तुझे महसूस करने चला हूँ

Tuesday, July 10, 2012

ज़िंदगी का नाम तो बस चलते जाना है


ज़िंदगी का नाम तो चलते जाना है..
मिलते है मुसाफिर काई अक्सर.. उसमे से कुछ हमराही भी होंगे...
कोई लौ है नयी उमीद का.. कोई उसमे तेरी परछाई भी होंगे
सुख दुख गुम खुशिया घड़ी दो घड़ी का आना जाना है,,
आख़िर ज़िंदगी का नाम तो बस चलते जाना है..


उँचाइयाँ होगी आसमानो की..
उन उँचे अरमानो की..
गहराइयाँ सोच की भी तो होती है..
ज़िंदगी अक्सर खुली आँखो से सोती है..
नींद की फ़िक्र कहाँ जब घर कोई बनाना है..
ज़िंदगी का नाम तो बस चलते जाना है..

गुलाब समझ जिससे महकाया हो गया बाघ कोई,,
शूलो मे हाथ तो लहू मे सना  होगा..
जो सोचा होगा लड़ने का उमड़ते तूफ़ानो से..
कभी पाषान सा सख़्त भी तू बना होगा..
ये सख्ती ओर नरमी.. गुज़रते वक्त का सिर्फ़ एक बहाना है..
ज़िंदगी का नाम तो बस चलते जाना है

Saturday, July 7, 2012

बीते पलो की तो बस इतनी सी कहानी है..


बीते पलो की तो बस इतनी सी कहानी है..
होंठो पर है मुस्कान कंपकपाती हुई..
और आँखो मे समुंदर जितना पानी है..

आज मौसम इतना हसीं है
शामे तो कल भी गमगीन ना थी..
पर इन सपनो के पंछी की तकदीर मे
आसमान तो था पर ज़मीन ना थी..
बीतो पलो की कही ये ज़ुबानी है..
रोक सकते तो रोक लेते उड़ने से
चलती कहाँ है आख़िर दिलो की ये नादानी है..


आने वाला पल भी आज ज़िद पर आड़ गया है
ज़िंदगी के लिए एक कल दूसरे कल से झगड़ गया है..
कल की इस जंग को देखो दोस्तो..
साथी कोई मुझसे बिछड़ गया.. पर
आने वाले पलो की बस अब इतनी सी कहानी है
दर्द को छुपा कर रखो सारे ज़माने से
बाँटो खुशिया आख़िर दो पल की ये ज़िंदगानी है..

Saturday, June 30, 2012

अंश


बिखरे शब्दो को
जोड़ता कभी
कोशिश करता उन को
लिखने की ज़िंदगी के कोरे पन्नो पर
कला बना कर उजड़े सपनो की
उकेरता तस्वीर सुनहरे कल की

कुछ छूट चुका पीछे..
भूत ओर वर्तमान है बिखरा हुआ..
यादो को किसी कोने मे छुपा
मैं कर रहा कोशिशे
उन बिखरे अंशो जोड़ने की..

मिलते है कई  आयाम ..
एक निशान मुद्रित कर जाते है..
उजड़े सपनो ओर बिखरे  शब्दो मे
फिर जान नयी भर जाते है..

कलम भी अब मेरी झुकने लगी है
विचारो मे कोई बात अब रुकने लगी है
ठहर जाता है जब सोचता हू कभी.
कोरे पन्नो की इस गाँठ मे.
एक पन्ना गुम गया है कहीं..

उम्मीद नही मिलने की
फिर भी इंतज़ार है मिलने का..
उस अनछुए हिस्से के बिना तो
ये बिखरी चीज़े जुड़ती नही है..

Saturday, March 24, 2012

क्या तुम मात्र एक मृत् हो??

क्या तुम मात्र एक मृत् हो??

सच को तुम मिटा चुके हो..
दास्तान आज़ादी की जला चुके हो..
कुर्बानिया अशफ़ाक बिस्मिल की...
लगता तुम भुला चुके हो..

कभी भगत ओर कभी सुभाष
मौत के झूलो पर वो झूले थे..
तुम क़ैद हो चुके हो स्वार्थ की जंजीरो मे
और तुम्हारे लिए वो कभी अपना अस्तित्व भूले थे..

तुम तो मात्र एक मृत् हो..
जो मार चुके हो अपने स्वाभिमान को..
बेच रहे हो जैसे देश को तुम..
ठेस पहुँच रही है शहीदो के अभिमान को..

साँसे चल रही है तुम्हारी सदियो से पर
लाश क्यों बन गये हो तुम..
आवाज़ है तुम्हारे कंठ में अभी..
मूक क्यों बन गये हो तुम..

बहाना मत बनाना घर परिवार का..
शहीदो का क्या एक घर नही था..
पर जंजीरे थी जो गुलामी की..
उन्हे तोड़ने में कोई डर नही था..


सपने है यदि तेरी आँखो में
देश के लिए मर मिट जाने का..
मरने के बाद भी जीवित हो तुम..
अन्यथा तुम मात्र एक मृत् हो..

तुम मात्र एक मृत् हो...

Thursday, March 22, 2012

कभी तो तू जाग भी जा

क्यों तू चुप बैठा है
क्यों तू सब सहता है
कभी तो तू जाग भी जा
कभी तो अपना हक दिखा

जब आकर कोई तेरे दरवाजे पर
तुझ को ही धमकाता है
तू क्यों मन मसोस कर
चुप चाप सब सह जाता है

... जब तेरे बुनियादी ज़रूरत को
कोई तुझसे छीन ले जाता है
क्यों प्रत्युतर में तू
अपना हाथ नही उठाता है

बहुत हो चुका है सहना
खून को तो खौलना होगा
बहुत जल चुका है लाचारी मे
अब इस देश को बदलना होगा

बहुत चल चुका है पीछे दूसरो के तू
अब कमान पकड़ खुद आगे चलना होगा
खोखला कर रहा है जो देश को
उस दीमक को तो अब मरना होगा

भूल कर अपने मतभेदो को
गद्दारो को मिटाओ तुम
युवा हो तुम भविष्य इस देश का
एक खुशनुमा जहाँ बनाओ तुम

तकदीर मे आए जो मिटना
हँसी खुशी जान लूटा देना
बचाने को इस देश की हस्ती
अपनी हस्ती मिटा देना..

Friday, March 16, 2012

मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..


मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..

कभी बंजर था जो टुकड़ा ज़मीन का
मर रहा था जीवन जहाँ हर पल
वहाँ सख़्त माटी की परतो मे
कभी हरी घास को पनपते देखा है..


ढक गया कभी जो हिमालय.
हिम की एक मोटी चादर से..
चाँदनी रातो मे उस
हिम को चमकते देखा है..


उजड़ गये थे जो आशियाने
पतझड़ के मौसम मे..
बसंत में फिर उन्हे..
महकते हुए देखा है..


बुझ गयी सूरज की रोशनी
अंधेरी रातो मे तो क्या..
हर सुबह उस दीये को
फिर से जलते हुए देखा है..


टूट ना जाना तू अपने टूटे सपनो से
बढ़ते रहना एक हर्ष उल्लास से..
हर पल चलते समय के साथ
मैने ज़िंदगी का चेहरा बदलते देखा है


मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..