Monday, November 28, 2011

कहानी ज़िंदगी की

साथ मिलता नही यहाँ किसी का..
अकेले ही यहाँ चलना पड़ता है..


धूप की फ़िक्र कर रहा तू..
यहाँ अंगरो पर जलना पड़ता है..


खवाब बुनता चाँदनी रातो के..
यहाँ घने अंधेरे मैं रहना पड़ता है..


नाम है ज़िंदगी इस चीज़ का अंजान.
दुख हो हज़ार पर हँसना पड़ता है


मत करना तू गम किसी के बिछड़ने का.
हमराज़ अजनबी से यहाँ बनना पड़ता है..



मिलता नही सहारा गिरने पर ..
खुद ही अक्सर यहाँ संभलना पड़ता है..


जी अपनी ज़िंदगी एक काफ़िर की तरह
अक्सर अपना ठिकाना बदलना पड़ता है..


क्यों बेचैन तू अपनी तकलीफो से
इनका सामना तो हर मुसाफिर को करना पड़ता है


आते है काँटे  हज़ार रास्ते मैं..
चलना है तो दर्द सहना ही पड़ता है..





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