Tuesday, December 6, 2011

छोटी सी रुसवाई

कभी हू तनहा भीड़ मैं..
कभी घिरा किसी से तन्हाई मैं.
याद है तेरी या साया तेरा..
मिलता हर बार मेरी परछाई मे

जैसे नादिया तड़पती सागर के लिए..
बहती जाती एक वेग से..
वैसे ही तड़प है दिल मे
मिली सौगात जो तेरी जुदाई मे


शुरू होती एक कहानी नयी
हर पल मेरी ज़िंदगी की.
पर खोजती तेरा अक्स आँखे मेरी
नये पन्नो की लिखाई मे..


वादा था तेरा..
चलने का साथ साथ..
छोड़ गयी तू साथ मेरा.
एक छोटी सी रुसवाई मे..

कमियाँ तूने मेरी सब गिना दी..
दो पल की लड़ाई मैं..
यकीन ना आया तुझको
मेरी मोहब्बत की सचाई मे...

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