Sunday, December 11, 2011

देश

छलनी होता सीना एक माँ का..
मरते बेटे जब उसके सरहद पर..
छलकते आँसू है गर्व के दुख की जगह
वीर यात्रा निकलती जब चार कंधो पर..
इस दर्द को अपने माथे पर लगती है..
चिताओ की राख पर उनकी महकता देश बनाती है..



पर मर जाती है माँ जब..
बेटे उसे बाज़ारो मे नीलाम करते..
अपने ऐशो आराम के खातिर..
हर पल नये हथियारो से उसे लहू लुहान करते..
टपकती बूँद लहू की एक चिंगारी बन जाती है..
उड़ा कर सब कुछ धुओं मे एक जलता देश बनाती है..


संभाल जा ए मेरे देश के वासी..
ये सिर्फ़ धरती नही माँ है कुछ मतवालो की..
निकल पड़े है वो अब माँ के आन बचाने को..
फ़िक्र नही है उन्हे अब जीने मरने के ख्यालो की..
धुन जब देशभक्ति की दिलो मे आती है..
इतिहास बनता फिर एक नया ओर एक नया देश बनाती है


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अंजान

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