Saturday, December 24, 2011

आभार

कफ़न जब आए चेहरे पर..
आँखे मेरी खुली रखना.

देख सकु जाते जाते मैं.
कौन मेरा अपना था..
किसकी आँखो का मैं सपना था..


झुका सकु पलके मेरी..
उनके सामने जो मेरे लिए खास थे..
मुश्किलो मे मेरी वो आस थे..

छोड़ सकु पैगाम एक नाम उनके
जो मेरे जाने का दुख मनाएँगे..
मेरे मृत देह पर उनके आँसू छलक जाएँगे,,,


कफ़न जब आए चेहरे पर..
आँखे मेरी खुली रखना.

देख सक चमकते उस सूरज को..
जिसने हर पल जीना का अहसास कारया..
पर सच मौत का भी उसने हर शाम सबको समझाया..


करू आभार उस जीवन का मैं..
जिसने मुझे मेरे अपनो से मिलाया ओर.
जाते जाते जहाँ मुझको परायो ने भी अपनाया..

सच है ये की
उमर दुश्मनी की ज़िंदगी से बड़ी नही होती..
कर लो दोस्ती सब से जीते जी..
मरते वक़्त हाथ मिलाने की घड़ी नही होती..

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