Sunday, December 25, 2011

बस कुछ दूर ओर

सन्नाटा है पैर फैलाए हुए..
ना कोई कसक है ना कोई आवाज़..

खामोशी इतनी है की..
हवा भी सुनाई देती है.....
 
 
बस कुछ दूर ओर..
एक रोशनी नज़र आती हुई..

अंधेरे के आँचल से झाँकती हुई..
एक परछाई दिखाई देती है..

बस कुछ दूर ओर..
कोई मुझे पुकारता हुआ,,

उड़ाती सन्नाटे के बिखरे बादल को..
एक आवाज़ सुनाई देती है..

मिला दे कोई उस परछाई से
मिला दे कोई उस आवाज़ से

नसो मे जो घुलती हुई..
लहू बन बहती दिखाई देती है

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