प्यार ही करना है
तो करो अपने देश की माटी से..
करो गे जब तक मोहब्बत
ये तुम्हारे माथे पर
जीत का तिलक लगाएगी..
ओर जो हो गये कुर्बान कभी
अपनी ममतमयी गोद मैं
प्यार से तुम्हे सुलाएगी..
प्यार ही करना है
तो करो अपने देश की माटी से..
दिया है इसने आँगन तुम्हे
जहाँ तुमने अपना बचपन बिताया
ज़रूरत थी जब आशियाने की
इसी धरती पर तुमने था घर बसाया
भूख जब लगी तुम्हे..
इसका सीना चीर तुमने अनाज उगाया..
जब आई नींद थक हार कर..
सिरहाना मखमल का इससे ही था पाया
ऋणी हो तुम उतने ही
जितनी तुमने यहाँ साँसे बिताई है..
नही चुका पाओगे मोल इस ममता का..
ये तो तुम्हारी नस नस मे समाई है..
आन पड़ी है आज फिर..
उन शब्दो के ज़िक्र की..
लिखे थे जो शहीदो ने..
माटी की जिन्होने फ़िक्र की
नही मांगती ज़िंदगी तेरी ये माटी
बदले अपने अहसानो के..
बस करती है आज एक फरियाद
बेच ना देना इसे फिर से
हाथ मे किन्ही बेगानो के..
तो करो अपने देश की माटी से..
करो गे जब तक मोहब्बत
ये तुम्हारे माथे पर
जीत का तिलक लगाएगी..
ओर जो हो गये कुर्बान कभी
अपनी ममतमयी गोद मैं
प्यार से तुम्हे सुलाएगी..
प्यार ही करना है
तो करो अपने देश की माटी से..
दिया है इसने आँगन तुम्हे
जहाँ तुमने अपना बचपन बिताया
ज़रूरत थी जब आशियाने की
इसी धरती पर तुमने था घर बसाया
भूख जब लगी तुम्हे..
इसका सीना चीर तुमने अनाज उगाया..
जब आई नींद थक हार कर..
सिरहाना मखमल का इससे ही था पाया
ऋणी हो तुम उतने ही
जितनी तुमने यहाँ साँसे बिताई है..
नही चुका पाओगे मोल इस ममता का..
ये तो तुम्हारी नस नस मे समाई है..
आन पड़ी है आज फिर..
उन शब्दो के ज़िक्र की..
लिखे थे जो शहीदो ने..
माटी की जिन्होने फ़िक्र की
नही मांगती ज़िंदगी तेरी ये माटी
बदले अपने अहसानो के..
बस करती है आज एक फरियाद
बेच ना देना इसे फिर से
हाथ मे किन्ही बेगानो के..
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