Sunday, January 1, 2012

तुम हो ज़िंदगी की राह..

तुम एक महकता गुलिस्ताँ
मैं तो कॅंटो का उजड़ा जाल हू 

तुम बरसता बादल किसान का..
मैं उसका अनचाहा अकाल हू..

तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..



तुम हो सुरम्यी नज़म
मैं तो बिगड़ी एक ताल हू..

तू पंक्ति किसी की कविताओ की..
मैं बिखरे शब्दो का जाल हू..


तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..



सपना हो तुम किसी की आँखो का
मैं तो बस एक नकली मायाजाल हू..

आवाज़ हो तुम किसी की ज़ुबान की..
मैं तो एक मूक के मन का हाल हू..

तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..



जवाब तुम किसी की सवालो का..
मैं तो खुद ही एक सवाल हू

तुम हो ज्योति सूरज की..
मैं रात का घना अंधकाल हू

तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..

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