कोई पार ले चले मुझे..
आँखो के इस नीले समुंदर से..
डर लगता है कहीं
इसकी गहराई मैं डूब ना जाऊ..
आवरण है जो पलको को इस पर..
सहारा है डूबते तिनके का वो..
पर छुपना इस समुंदर का कवच मे
मैं सह वो भी ना पाऊ..
नशीला इतना ये नीलम है..
बिखर रहा पानी मे आग सा..
डर लगता है कहीं..
इसके नशे से बहक ना जाऊ..
डूबने के इस भय से..
सोचा जो निगाहे फेरने का..
पल मे मैं ये महसूस हुआ
कि इसके बिना मैं जी ही ना पाऊ
आँखो के इस नीले समुंदर से..
डर लगता है कहीं
इसकी गहराई मैं डूब ना जाऊ..
आवरण है जो पलको को इस पर..
सहारा है डूबते तिनके का वो..
पर छुपना इस समुंदर का कवच मे
मैं सह वो भी ना पाऊ..
नशीला इतना ये नीलम है..
बिखर रहा पानी मे आग सा..
डर लगता है कहीं..
इसके नशे से बहक ना जाऊ..
डूबने के इस भय से..
सोचा जो निगाहे फेरने का..
पल मे मैं ये महसूस हुआ
कि इसके बिना मैं जी ही ना पाऊ
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