समझते तुम मैं लिखता कविता..
कोशिश करता मैं एक दर्द बाँटने की..
धड़कनो के इस अकेलेपन को..
कोशिश करता सहारे कलाम के काटने की..
गुज़र चुका है जो सपनो मे ही
कोशिश करता उन लम्हो को छांटने की..
बिखर चुका है जो कानो मे.
कोशिश करता सूत मे उसे फिर से बाँधने की..
समझते तुम मैं लिखता कविता..
कोशिश करता मैं एक दर्द बाँटने की..
कोशिश करता मैं एक दर्द बाँटने की..
धड़कनो के इस अकेलेपन को..
कोशिश करता सहारे कलाम के काटने की..
गुज़र चुका है जो सपनो मे ही
कोशिश करता उन लम्हो को छांटने की..
बिखर चुका है जो कानो मे.
कोशिश करता सूत मे उसे फिर से बाँधने की..
समझते तुम मैं लिखता कविता..
कोशिश करता मैं एक दर्द बाँटने की..
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