मुलाक़ातो की इस खुशनुमा दौर से डर लगने लगा है अब .. ऐसा ना हो कहीं कि मैं समझ रहा जिसे व्योम .. और वो सिर्फ़ एक धुआँ हो.. जिसे समझ रहा हूँ गहरा सागर प्रेम का.. वो कहीं सूखा हुआ कुआँ हो.. परदा है कोई खूबसूरत इन आँखो पर या किसी कहानी की शुरूवात है.. इतना सोचता हूँ जाने क्यों.. अजनबी ये मुलाकात है..
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