1) चल रही थी ज़िंदगी चंद बहानो से.. तुम मिले हो एक वजह बन कर.. सागर की लहरो के संग साहिल पर जैसे कुछ मोती आ गये हो.. ओर ज़िंदगी गुज़र जाएगी जैसे उन्हे समेटने.. बस दुआ कर अब रेत पर बैठे बैठे दूर छिपते सूरज को देखते हुए.. तेरे आगोश मे यूँही ज़िंदगी चलती रहे...
2) पलको के झरोखे से झाँकती वो नज़र.. धीरे से अपने मुखपृष्ठ का आकर्षण चुराते केसुओ को सुलझाती हुई वो.. धीमे धीमे मुस्कुराती है.. मानो एक भीगी सुबह में कोई कली पंखुड़िया फैला कर गुलाब बनी हो.. और मैं उलझ जाता हू एक प्रीत के पाश मे..
3) मेरी पलको पर सपने रख कोई मुझसे दूर जाकर बैठ गया है.. सपने है जो होश मे आने नही देते.. ओर एक चेहरा उनका जो कभी सोने नही देता..
4) बरसो से जिसका इंतज़ार किया है.. वो सामने है मेरे.. बस छूने से डर लग रहा है.. कि कहीं कोई सपना बन बिखर ना जाए.. अब यकीन तुझे ही दिलाना होगा मीत मेरे.. कि सामने जो हो मेरे.. वो तुम ही हो.. तुम्हारा कोई अक्स नही..
5) यकीन आता नही है पल पल बदलते मौसम की मिज़ाज़ पर.. दिल मे उतरते किसी अहसास पर... ये लम्हे कुछ है जाने पहचाने.. पहले सुन चुका हू ये अफ़साने.. हक़ीकत है मैं यकीन करना नही चाहता... क्योंकि जूठे सपनो से सच के दर्द कहीं ज़्यादा सुकून दे रहे है..
6) चेहरा बदल सामने आए है वो.. बरकत हुई है मेरे नसीब की..
खुली जुल्फे उनकी मदहोश कर रही है क़ि.. सपना है या हक़ीकत.. फ़र्क करना मुश्किल है अब...
जाग रहा हू बंद पलको के पीछे .. आँखे खोल मैं अब सो रहा हू..
डूब रहा हू उनकी आँखो मैं हर पल.. आगोश मे उनके खो रहा हू..
7) दुआ कर रहा है तू कि एक मुलाकात काश उनसे हो जाए.. ,, पर कुछ ख्यालो में ही गुमशुदा है अब तक.. .. चाहत रखी है जैसे क्षितिज को छूने की साहिल पर खड़े रहकर... दुआ भी कैसे रंग लाएगी बता मुझे तू ये.. जब तुझे अब तक डर लगता है तूफ़ानी लहरो का... तेरी कश्ती तो डूब चुकी है कब की.. अब मुलाकात करनी है तो तूफ़ानो को तो चीरना ही होगा.,,
8) क्यों आज यूँ बेचैन है तू.. जब गिरा है ज़मीन पर एक आसमान से... उँचाइयो की आदत होती है गिराना गर्त की गहराइओ में. पर तू ही तो था जिसने आसमानो से दोस्ती की थी ज़मीन को गैर बना कर... मत भूल तू अहसान ज़मीन का.. आख़िर इसी के आँचल मे तूने आँखे खोली थी ओर इसी के आँचल मे तुझे सो जाना है
9) हाथो मे हाथ थामने के बहाने से... मत रोक मुझे उड़ान भरने से.. तू वक़्त है कोई ठहरा हुआ.. ओर मंज़िल मेरी अभी एक अनसुलझी पहेली है... सूरज की तपिश मे अभी मुझे जलना है... बदलो पर अभी मुझे चलना है.. मुझे अभी बहुत दूर तक उड़ना है...
10) एक याद जब कभी नींद से जगा देती है.. गहरी रात के अंधेरो मे कांप उठता हूँ तन्हाई से.. विचलित मन को समझाता हूँ.. और फिर खो जाता हू.. एक गहरी नीद मे.. जहाँ कोई सपना नही.. बस फैला है तो अंधकार अनंत तक ,, बस उसी अंधकार का प्रकाश हो तुम.. एक अहसास हो तुम...कुछ खास हो तुम,,,
2) पलको के झरोखे से झाँकती वो नज़र.. धीरे से अपने मुखपृष्ठ का आकर्षण चुराते केसुओ को सुलझाती हुई वो.. धीमे धीमे मुस्कुराती है.. मानो एक भीगी सुबह में कोई कली पंखुड़िया फैला कर गुलाब बनी हो.. और मैं उलझ जाता हू एक प्रीत के पाश मे..
3) मेरी पलको पर सपने रख कोई मुझसे दूर जाकर बैठ गया है.. सपने है जो होश मे आने नही देते.. ओर एक चेहरा उनका जो कभी सोने नही देता..
4) बरसो से जिसका इंतज़ार किया है.. वो सामने है मेरे.. बस छूने से डर लग रहा है.. कि कहीं कोई सपना बन बिखर ना जाए.. अब यकीन तुझे ही दिलाना होगा मीत मेरे.. कि सामने जो हो मेरे.. वो तुम ही हो.. तुम्हारा कोई अक्स नही..
5) यकीन आता नही है पल पल बदलते मौसम की मिज़ाज़ पर.. दिल मे उतरते किसी अहसास पर... ये लम्हे कुछ है जाने पहचाने.. पहले सुन चुका हू ये अफ़साने.. हक़ीकत है मैं यकीन करना नही चाहता... क्योंकि जूठे सपनो से सच के दर्द कहीं ज़्यादा सुकून दे रहे है..
6) चेहरा बदल सामने आए है वो.. बरकत हुई है मेरे नसीब की..
खुली जुल्फे उनकी मदहोश कर रही है क़ि.. सपना है या हक़ीकत.. फ़र्क करना मुश्किल है अब...
जाग रहा हू बंद पलको के पीछे .. आँखे खोल मैं अब सो रहा हू..
डूब रहा हू उनकी आँखो मैं हर पल.. आगोश मे उनके खो रहा हू..
7) दुआ कर रहा है तू कि एक मुलाकात काश उनसे हो जाए.. ,, पर कुछ ख्यालो में ही गुमशुदा है अब तक.. .. चाहत रखी है जैसे क्षितिज को छूने की साहिल पर खड़े रहकर... दुआ भी कैसे रंग लाएगी बता मुझे तू ये.. जब तुझे अब तक डर लगता है तूफ़ानी लहरो का... तेरी कश्ती तो डूब चुकी है कब की.. अब मुलाकात करनी है तो तूफ़ानो को तो चीरना ही होगा.,,
8) क्यों आज यूँ बेचैन है तू.. जब गिरा है ज़मीन पर एक आसमान से... उँचाइयो की आदत होती है गिराना गर्त की गहराइओ में. पर तू ही तो था जिसने आसमानो से दोस्ती की थी ज़मीन को गैर बना कर... मत भूल तू अहसान ज़मीन का.. आख़िर इसी के आँचल मे तूने आँखे खोली थी ओर इसी के आँचल मे तुझे सो जाना है
9) हाथो मे हाथ थामने के बहाने से... मत रोक मुझे उड़ान भरने से.. तू वक़्त है कोई ठहरा हुआ.. ओर मंज़िल मेरी अभी एक अनसुलझी पहेली है... सूरज की तपिश मे अभी मुझे जलना है... बदलो पर अभी मुझे चलना है.. मुझे अभी बहुत दूर तक उड़ना है...
10) एक याद जब कभी नींद से जगा देती है.. गहरी रात के अंधेरो मे कांप उठता हूँ तन्हाई से.. विचलित मन को समझाता हूँ.. और फिर खो जाता हू.. एक गहरी नीद मे.. जहाँ कोई सपना नही.. बस फैला है तो अंधकार अनंत तक ,, बस उसी अंधकार का प्रकाश हो तुम.. एक अहसास हो तुम...कुछ खास हो तुम,,,
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