बिखरे शब्दो को
जोड़ता कभी
कोशिश करता उन को
लिखने की ज़िंदगी के कोरे पन्नो पर
कला बना कर उजड़े सपनो की
उकेरता तस्वीर सुनहरे कल की
कुछ छूट चुका पीछे..
भूत ओर वर्तमान है बिखरा हुआ..
यादो को किसी कोने मे छुपा
मैं कर रहा कोशिशे
उन बिखरे अंशो जोड़ने की..
मिलते है कई आयाम ..
एक निशान मुद्रित कर जाते है..
उजड़े सपनो ओर बिखरे शब्दो मे
फिर जान नयी भर जाते है..
कलम भी अब मेरी झुकने लगी है
विचारो मे कोई बात अब रुकने लगी है
ठहर जाता है जब सोचता हू कभी.
कोरे पन्नो की इस गाँठ मे.
एक पन्ना गुम गया है कहीं..
उम्मीद नही मिलने की
फिर भी इंतज़ार है मिलने का..
उस अनछुए हिस्से के बिना तो
ये बिखरी चीज़े जुड़ती नही है..