Wednesday, August 29, 2012

पर सपना मेरा बिखर जाता है..


कहीं दूर
क्षितीज़ के पास...
 जहाँ ये आसमान..
धरती से मिल जाता है...

उसी तरह अंत मे
मेरी सोच के हाशिए पर
तेरा मेरा रिश्ता..
हमेशा ही जुड़ जाता है..

समझता है कोई..
कि मैं बीते कल को
अपने मुट्ठी मे
दबाकर साथ चल रहा है..

पर जब
हौंसला देने वाला साथ नही
आगे चलता हुआ अनजान फिर
पीछे मूड जाता है..

पर ये तो कल है
आख़िर बीत चुका है
जो बस अब मैं
देख सकता हू दूर से ही

छूने की कोशिश मे
उस सुंदर लम्हो की दर्शनि को..
मैं हो जाता हू बेसूध अक्सर...
पर सपना मेरा बिखर जाता है..

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