Sunday, October 28, 2012

क्यों ना एक बार


क्यों ना एक बार सब फ़ासले मिटाए जाए..
क्यों ना एक बार फिर दिल से दिल मिलाए जाए...
क्यों रहे घरोंदा हमारा मातम के साए मे
क्यों ना उस मे एक बार खुशियो के दिये जलाए जाए...

कभी साथ बैठ कर मनाए होली..
गुरु पर्व पर भी हम गाये हमजोली...
क्यों ना हम साथ मनाए पर्व एक दीपो का..
क्यों ना साथ बैठ ईद पर सेंवई खाई जाए


क्यों फ़र्क ढूँढे हम अल्लाह और भगवान मे
मानवता ही लिखी है गीता और क़ुरान मे...
लहू छोड़ बहे नादिया जहाँ दूध की...
चलो फिर एक ऐसा देश बनाया जाए..

खुदा भी वही.. वही है हिंदू पुराण..
वही है ईसा भी.. वही संत नानक महान..
हिंदू सिख मुसलमान बनने से पहले..
क्यों ना एक बार इंसान बना जाए...

क्यों रहे घरोंदा हमारा मातम के साए मे
क्यों ना उस मे एक बार खुशियो के दिये जलाए जाए...

Thursday, October 11, 2012

जब भी ज़िक्र होगा मोहब्बत का ...

समेट लू इन गुज़रते लम्हो को 
अपने मन के किसी कोने मे.. 
ये याद आएँगे हर दूं..
जब भी ज़िक्र होगा मोहब्बत का ...

कि तुम थे एक कोशिश मे.. 
साथ मेरे चलने की..
मेरी रफ़्तार पकड़ने की..
ना थी कोई भावना स्वार्थ की...

इतना अनोखी चाहत..
ना कभी देखी ना कहीं सुनी..
अफ़सोस है मुझे की
ये एक कहानी ना बनी...

तुम्हारी शिकायत कि..
मिलते नही हो ख्वाब मे भी..
मैं असमंजस मे हू..
कि मिल कर नज़ारे कैसे मिलाऊ..
डरता हू खुद से ...
तेरा सामना कैसे कर जाऊ..

साथ चलना मुमकिन नही है..
कसूर कहीं ना कहीं मेरा ही है..
कमजोर नही है मोहब्बत तेरी...
मैं ही हरा हुआ हू खुद से...

याद आएँगे लम्हे तेरे साथ के..
जब भी ज़िक्र होगा मोहब्बत का...

कुछ बाते


कभी रास्तो पर जो मुलाकात हो जाए तुमसे...
नज़र मिला कर फिरा लेना अजनबी हो जैसे..
मेरी एकटक देखती आँखो के चुभते सवालो से..
कही खुद को तुम घायल ना कर लो..

Thursday, October 4, 2012

एक ढके चेहरा का नकाब उतार कर दिखलाता हू..


बँधी है बेड़ियाँ कुछ वो फिर से तुम्हे सुनाता हू.,.
एक ढके चेहरा का नकाब उतार कर दिखलाता हू..

खादी पहन डाकू भी संसद मे पहुँच जाता है..
ओर एक व्यंग करने वाला कलाकार... जेलो मे मिल जाता है..
सीना छलनी करने वाले को.. बिरयानी खिलाई जाती है..
ओर शहीदो की माओ को .. दफ़्तरो की धूल चटाई जाती है
भगत सिंग ओर राजगुरु की कुर्बानी पल पल यहाँ रोती है..
जब सियासत लोगो मे नफ़रत के बीज बोती है..
मैं फिर तुमसे एक बार भारतीयता के बात बताता हू..
क्या हो तुम आज तुम्हारा तुमसे परिचय करवाता हू..

जी रहे हो तुम यहाँ.. वो जीवन बेमानी है..
परंपरा की एक अनसुलझी  कोई कहानी है..
कोई गैर रोज़ तुम्हारा खून चूसने जब आता है..
अपना ही कोई आगे बढ़ उसे फूलो का हार पहनता है..
अपनो के हाथ काट कर.. बेच देता है बाज़ारो मे..
भूखा देश नज़र आता सुबह शाम नज़ारो मे..
बिक जाती है रूह जहाँ.. उस मॅंडी से तुम्हे मिलवाता हू..
एक ढके चेहरा का नकाब उतार कर दिखलता हू..