Thursday, December 1, 2011

ज़िंदादिली

नही मिलता आसमा पँखो के होने से..

मिलता है ये हॉंसलो की उड़ानो से


किनारे की लहरो से जो डर जाए..

क्या लड़ेगा वो समुंदर के तूफ़ानो से..


पतझड़ को देख मन डोल गया तेरा

बाकी है मिलना अभी रेगिस्तान के वीरानो से


चोट बाकी है अभी तो तेज तलवारो की..

ज़ख्म पड़े है अभी सिर्फ़ म्यानो से..


इंतज़ार कर रहा तू एक मदद का पर.

नही चलती ज़िंदगी दूसरो के अहसानो से .



खवाहिश तेरी सपनो की चादर मे सोने की..

नींद नही आती जब काँटे मिले सिरहानो से..


ज़िक्र करता तू तल्ख़ धूप का हर पल

सीख कुछ हर पल जलते परवानो से..


ज़रूरत नही रास्तो की मंज़िलो के लिए..

अंजान बन जाते है ये जिन्ददिल अरमानो से..


नही मिलता आसमा पँखो के होने से..

मिलता है ये हॉंसलो की उड़ानो से

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