Saturday, February 25, 2012

कभी तो गरज तू

कभी तो गरज तू
कभी बरस भी जा
सहने  की जो फ़ितरत है  तेरी
कभी तो उससे बाहर भी आ..

क्यों रोका है  उमँगो को
उड़ने दे बिना डोर पतंगो को
कर यकीन थोडा  सा हवाओ पर भी
उड़ने दे इन पागल रंगो को

तू मचल जा अब एक तूफान सा
बदल दे तकदीर का लिखा आज..
बहने दे मन को एक वेग से..
हवाओ को भी बहना सिखा आज

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