कभी तो गरज तू
कभी बरस भी जा
सहने की जो फ़ितरत है तेरी
कभी तो उससे बाहर भी आ..
क्यों रोका है उमँगो को
उड़ने दे बिना डोर पतंगो को
कर यकीन थोडा सा हवाओ पर भी
उड़ने दे इन पागल रंगो को
तू मचल जा अब एक तूफान सा
बदल दे तकदीर का लिखा आज..
बहने दे मन को एक वेग से..
हवाओ को भी बहना सिखा आज
कभी बरस भी जा
सहने की जो फ़ितरत है तेरी
कभी तो उससे बाहर भी आ..
क्यों रोका है उमँगो को
उड़ने दे बिना डोर पतंगो को
कर यकीन थोडा सा हवाओ पर भी
उड़ने दे इन पागल रंगो को
तू मचल जा अब एक तूफान सा
बदल दे तकदीर का लिखा आज..
बहने दे मन को एक वेग से..
हवाओ को भी बहना सिखा आज
Too good :)
ReplyDeleteThanks Preeti..
ReplyDelete