Saturday, March 24, 2012

क्या तुम मात्र एक मृत् हो??

क्या तुम मात्र एक मृत् हो??

सच को तुम मिटा चुके हो..
दास्तान आज़ादी की जला चुके हो..
कुर्बानिया अशफ़ाक बिस्मिल की...
लगता तुम भुला चुके हो..

कभी भगत ओर कभी सुभाष
मौत के झूलो पर वो झूले थे..
तुम क़ैद हो चुके हो स्वार्थ की जंजीरो मे
और तुम्हारे लिए वो कभी अपना अस्तित्व भूले थे..

तुम तो मात्र एक मृत् हो..
जो मार चुके हो अपने स्वाभिमान को..
बेच रहे हो जैसे देश को तुम..
ठेस पहुँच रही है शहीदो के अभिमान को..

साँसे चल रही है तुम्हारी सदियो से पर
लाश क्यों बन गये हो तुम..
आवाज़ है तुम्हारे कंठ में अभी..
मूक क्यों बन गये हो तुम..

बहाना मत बनाना घर परिवार का..
शहीदो का क्या एक घर नही था..
पर जंजीरे थी जो गुलामी की..
उन्हे तोड़ने में कोई डर नही था..


सपने है यदि तेरी आँखो में
देश के लिए मर मिट जाने का..
मरने के बाद भी जीवित हो तुम..
अन्यथा तुम मात्र एक मृत् हो..

तुम मात्र एक मृत् हो...

Thursday, March 22, 2012

कभी तो तू जाग भी जा

क्यों तू चुप बैठा है
क्यों तू सब सहता है
कभी तो तू जाग भी जा
कभी तो अपना हक दिखा

जब आकर कोई तेरे दरवाजे पर
तुझ को ही धमकाता है
तू क्यों मन मसोस कर
चुप चाप सब सह जाता है

... जब तेरे बुनियादी ज़रूरत को
कोई तुझसे छीन ले जाता है
क्यों प्रत्युतर में तू
अपना हाथ नही उठाता है

बहुत हो चुका है सहना
खून को तो खौलना होगा
बहुत जल चुका है लाचारी मे
अब इस देश को बदलना होगा

बहुत चल चुका है पीछे दूसरो के तू
अब कमान पकड़ खुद आगे चलना होगा
खोखला कर रहा है जो देश को
उस दीमक को तो अब मरना होगा

भूल कर अपने मतभेदो को
गद्दारो को मिटाओ तुम
युवा हो तुम भविष्य इस देश का
एक खुशनुमा जहाँ बनाओ तुम

तकदीर मे आए जो मिटना
हँसी खुशी जान लूटा देना
बचाने को इस देश की हस्ती
अपनी हस्ती मिटा देना..

Friday, March 16, 2012

मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..


मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..

कभी बंजर था जो टुकड़ा ज़मीन का
मर रहा था जीवन जहाँ हर पल
वहाँ सख़्त माटी की परतो मे
कभी हरी घास को पनपते देखा है..


ढक गया कभी जो हिमालय.
हिम की एक मोटी चादर से..
चाँदनी रातो मे उस
हिम को चमकते देखा है..


उजड़ गये थे जो आशियाने
पतझड़ के मौसम मे..
बसंत में फिर उन्हे..
महकते हुए देखा है..


बुझ गयी सूरज की रोशनी
अंधेरी रातो मे तो क्या..
हर सुबह उस दीये को
फिर से जलते हुए देखा है..


टूट ना जाना तू अपने टूटे सपनो से
बढ़ते रहना एक हर्ष उल्लास से..
हर पल चलते समय के साथ
मैने ज़िंदगी का चेहरा बदलते देखा है


मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..

सच

डरे क्यों मुश्किलो से.. जब ज़िंदगी नाम है इम्तिहानो का..
पल में है खाली हाथ.. पल में तू मालिक ख़ज़ानो का..

पहचान है भीड़ की तू कभी.. कभी अजनबी वीरानो का..
सच भी लगे जूठा कभी.. ओर बन जाए इतिहास कभी बहानो का..

कभी बने दुश्मन ज़माना तेरा.. नायक बन जाए तू कभी अफ़सानो का...
चुप है अरसे से कभी तू.. कभी बन गया स्वर बेजुबानो का...

रख ताक़त बदलने की दुनिया,, ओर बन जा वजूद इन ज़मानो का..
रख भरोसा खुद पर अंजान,,, अक्स बना नयी पहचानो का..

डरे क्यों मुश्किलो से.. जब ज़िंदगी नाम है इम्तिहानो का..
पल में है खाली हाथ.. पल में तू मालिक ख़ज़ानो का..

Thursday, March 8, 2012

रंग ज़िंदगी के

कभी गम के रंगो में डूबा..
कभी खुशियो के रंग उड़ाए..
कभी मुस्कुराते हुए अधरो से..
आँखो की नमी छुपाए..
कई रंगो से रंग चुका हूँ..
ओर कई रंग अभी बाकी है..

कभी माँ के दुलार का रंग..
कभी पिता की फटकार का रंग..
रंग कभी भाइयो के प्यार का..
कभी कलाई पर बहन की राखी का रंग..

दोस्तो के संग कभी उल्लास के रंग..
बिछड़ने के एक अहसास का रंग..
साथ बैठ कहीं झगड़ने का रंग..
कभी ग़लतियो को भूलने का रंग..

रंग कभी मीत से मिलने का..
कभी बिन माँगी जुदाई के रंग..
कभी साथ छोड़ उसके दूर जाने का रंग..
कभी सब कुछ भूल पास आने का रंग..

कभी मिला रंग एक नाकामयाबी का..
कभी शिखर पर पहुँचने का रंग..
रंग कभी ज़िंदगी के थपेड़ो का..
कभी एक उँची उड़ान का रंग..

कई रंगो से रंग चुका हू..
ओर कई रंग अभी बाकी है..
हर पल बदल रहा है रंग मेरे चेहरे पर..
अभी असली रंग दिखना बाकी है...

Thursday, March 1, 2012

कुछ बाते

१) 

थम कर कुछ पल जब...ख्वाब फिर से कोई बुनता हूँ..अक्सर खो जाता हू पुरानी कुछ यादो मे.. बस फिर क्या ख्वाब ओर क्या मोहब्बत, सब एक सूखी बंजर ज़मीन का टुकड़ा नज़र आता है.. मेघो से बैर रखा जिसने पर बरसो इंतज़ार किया हो बारिश का.. ओर फिर निकल पड़ता हू बिना किसी हरे जंगल की आरजू के..


 २)

रात के अंधेरे मे जहाँ कितने ही फूल मुरझा जाते है.. ओर सुबह जन्म लेती है कुछ नयी कोंपले... बगीचा कभी महकना नही छोड़ता.. एक संदेश छोड़ता है अपनी हर खुश्बू के साथ.. नाकाम हुई कोशिशे तेरी तो क्या हुआ अपने सपनो को जीना सीख.. गम मिले है जो तुझे.. हँसी के प्यालो में उन्हे पीना सीख



३)

आँसू है आज किसी की पलको पर.. उम्मीदे आँखो के गहराई मे नज़र आ रही है.. ज़िंदा हू मैं.. सिर्फ़ इसलिए नही की धड़कने चल रही है.. पर एक लक्ष्य है सामने.. पलको के उन आँसुओ को हाथो की अंजलि में थाम कर रखना है.. नक्शा जो बना है उन आँखो मे.. अभी इमारत उसे बनना है...


४)

सो जाता है अक्सर गहरी नींद मे.. अनजान पल पल बदलती दुनिया से... घूमता एक अलग ही दुनिया में.. जहाँ चल रहा है तू साथ साथ.. हंस रही है ज़िंदगी जहाँ पर.. भूलता अंतर सपनो ओर हक़ीकत में.. काश मैं वहीं रह पता.. काश..


५)

बेख़बर हूँ की ज़िंदगी के इस सफ़र में जाने किस चौराहे पर वो मुलाकात होगी तुझसे,,, कितने ही रास्ते काटे है तन्हा सिर्फ़ जिसके लिए.. छुपा का रखना मोतियो को पलको की सीपियो मे.. शिकवे हो या मोहब्बते.. बयान करेंगे हाल ए दिल एक दूजे का.... आज की अवस्था तो बस ये है कि जो रास्ते चुने है हमारे नसीब ने हमारे लिए,, चलना तो होगा उनपर मुस्कुराकर ही.. बस वो मुस्कुराहट अपनी नही ..


६)

कभी जो धड़कता था सीने मे धड़कन बन कर.. गुमशुदा है वो अब... ना जाने कब से धड़कन के आभास से अनजान है. तन्हाई मे खोया है वो कुछ इस तरह की दुआ में भी बस दर्द ही माँगता है. ओर मखौल देखो कि दर्द भी आता है एक खुशी का लिफ़ाफ़ा पहन कर...


७)

लम्हे थे कुछ मेरी ज़िंदगी के.. जिन्हे भूलना चाहा तो सही.. पर कभी भुला नही पाया... ओर आज जब झकझोरा उन लम्हो ने फिर से... समझ आया कि वो लम्हे तो थे किसी ओर की ज़िंदगी के.. बस था नसीब तेरा जो वो तेरी ज़िंदगी का हिस्सा बने... ओर आज आलम ये है की ना वो नसीब मेरा है ओर ना वो लम्हे मेरे है.. बस चल रहा हू भटकते हुए.. किसी अजनबी की तलाश मे..    



अमन बेरीवाल 'अनजान'