Friday, March 16, 2012

मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..


मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..

कभी बंजर था जो टुकड़ा ज़मीन का
मर रहा था जीवन जहाँ हर पल
वहाँ सख़्त माटी की परतो मे
कभी हरी घास को पनपते देखा है..


ढक गया कभी जो हिमालय.
हिम की एक मोटी चादर से..
चाँदनी रातो मे उस
हिम को चमकते देखा है..


उजड़ गये थे जो आशियाने
पतझड़ के मौसम मे..
बसंत में फिर उन्हे..
महकते हुए देखा है..


बुझ गयी सूरज की रोशनी
अंधेरी रातो मे तो क्या..
हर सुबह उस दीये को
फिर से जलते हुए देखा है..


टूट ना जाना तू अपने टूटे सपनो से
बढ़ते रहना एक हर्ष उल्लास से..
हर पल चलते समय के साथ
मैने ज़िंदगी का चेहरा बदलते देखा है


मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..

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