Wednesday, August 29, 2012

कुछ बाते


जलना है काम उसका.. वो दो पल की ज़िंदगी से ही खुश है..
सागर किनारे की तरह अपनी खामोशी मे ही खुश है..
गम नही की मिला ना साथ तेरा मेरी मंज़िल की राहो पर..
साथ बीते चाँद पॅलो की अंजान बंदगी से ही खुश है...

पर सपना मेरा बिखर जाता है..


कहीं दूर
क्षितीज़ के पास...
 जहाँ ये आसमान..
धरती से मिल जाता है...

उसी तरह अंत मे
मेरी सोच के हाशिए पर
तेरा मेरा रिश्ता..
हमेशा ही जुड़ जाता है..

समझता है कोई..
कि मैं बीते कल को
अपने मुट्ठी मे
दबाकर साथ चल रहा है..

पर जब
हौंसला देने वाला साथ नही
आगे चलता हुआ अनजान फिर
पीछे मूड जाता है..

पर ये तो कल है
आख़िर बीत चुका है
जो बस अब मैं
देख सकता हू दूर से ही

छूने की कोशिश मे
उस सुंदर लम्हो की दर्शनि को..
मैं हो जाता हू बेसूध अक्सर...
पर सपना मेरा बिखर जाता है..

Monday, August 27, 2012

मैं


मध्यम मध्यम पूर्वा..
अटखेलियाँ करती हुई..
एक जोश भरते हुई..

कंपकपाते हुए  शब्द मेरे..
अब एक आवाज़ बनने लगे है..

मैं भी तो हू झोंका,,
इस मनचली हवा का आख़िर..
सारी हदे तोड़ कर...
अब तूफ़ानो की तरह बहने लगा हू...

मैं उन्मुक्त हो चुका हू फिर अब..
की ज़ंज़ीरे बंदिशो की स्वयं खुलने लगी है..
मैं भँवरा बन अब
इच्छुक फूलो पर रहने लगा हू...


कई मौसम आ चुके है..
कई मौसम अभी आने की राह देख रहा मैं..
शुष्क भी है कुछ.. ओर कुछ तरल भी...
बस अब मैं लग रहा की ये  मैं भी था कहीं..

Wednesday, August 15, 2012

आज जश्न आज़ादी का मानने से पहले..

आज जश्न आज़ादी का मनाने से पहले


शत शत नमन वीरो को करता हू..



जो कुर्बान हुए कभी सरहद पर..

कभी सत्याग्रह मे जिन्होने दम तोड़ा है..

जो पल पल मरे है अपनो से दूर रह कर..

देश की तकदीर से ही अपना नाता जिन्होने जोड़ा है..



एक लक्ष्य था हर एक..

सोच बेशक अलग थी..

हालात थे विरोधी मगर..

आँखो मे जीत की ललक थी



वो कामयाब हुए थे..

अपने मज़बूत इरादो से..

लड़े थे एक सशक्त के खिलाफ..

ताक़त ओर जज्बातो से..



कोई खेलने की उम्र मे फन्दो पर झूला था

आज़ादी के क्रांति का फल दिलो मे कहीं फूला था

कोई अहिंसा की तलवार से बढ़ा था सब को लहू लुहन करते..

देश की खातिर कोई अपनी पहचान तक भूला था..



तमन्ना थी जो उन दिलो की

वो आज भी अधूरी है..

हम दौड़ रहे है बिना किसी दिशा के..

ना जाने कौनसी मजबूरी है..





थमा नही है कारवाँ ये अभी..

अभी तो हाथ पकड़ कर चलना है..

जश्न हम माना रे है गैरो से मिली आज़ादी का..

अपने अंदर के लालची शासन से हमे लड़ना है..

आज जश्न आज़ादी का मानने से पहले..

हुंकार एक नये क्रांति की मैं भरता हू

जो कुर्बान हुए है देश की खातिर..

शत शत नमन वीरो को करता हू..

Sunday, August 12, 2012

मैं आऊँगा लौट कर

हवओ संग आज फिर उड़ने चला हूँ..
सपनो की मंज़िलो से मिलने चला हूँ..
बिछड़ने का अहसास है आज इस ज़मीन से..
जब आज फिर आसमान के रंग मे घुलने चला हूँ..

फिर एक किस्सा बना है आज प्यार का..
अफ़साना बना है कब से दबे उस इकरार का..
बरसते बादल भी थम गये थे आज..
जब मेरे गुलिस्ताँ मे मौसम आया था बहार का..

मुलाक़ते होंगी अब तुमसे पर एक नये आयाम पर
जो यहाँ ना मिली उस अजनबी शाम पर..
राह ताकना मेरी तुम थोड़ी सी..
मैं मिलूँगा तुझसे फिर एक नये मुकाम पर..

जवाब तेरे अनसुलझे सवालो का बन जाऊँगा..
मैं आऊँगा  लौट कर किस्सा उजलो का बन जाऊँगा
नही कोई बहती नदी का पानी नही जो वापिस लौटा नही..
बादलो मे पानी बन फिर तेरे आँचल मे आकर गिर जाऊँगा

ये ना समझना की तुझसे रूठ कर तुझसे दूर चला हूँ..
तुझसे अपनी नज़ारे मोड़ चला हू..
तुझमे तो बसता है रब मेरा.. और बसती मेरी आत्मा यहाँ..
जुदा होकर तुझसे एक बार मैं.. फिर तुझे महसूस करने चला हूँ