Sunday, November 25, 2012

इन पलो को चलो फिर से पिरोए हम...


इन पलो को चलो फिर से पिरोए हम...
कुछ सपने खुली आँखो से भी संजोए हम
देखे है बिखरते अपने भी और पराए भी..
आँखे बंद कर अब चैन की नींद सोए हम


कभी दूर थे वो..
कभी साथ तेरा तेरे भाग्य ने छोड़ा था..
कभी तू भी हारा था अपने आप से..
कभी दूसरो की हार ने तुझे झनझोड़ा था

कभी बिलख कर कट  गयी थी शाम कोई..
मुखौटा लगा झूठ का दामन ओढ़ा था..
सच बोल कर भी रोया था जब तू..
ओर सच सुन कर भी अपने ने नाता तोड़ा था..

आज वो समय नही की
उनका गम मनाया जाए...
आज आ गया है मौसम सुबह का..
तन्हाई के अंधेरो मे एक नया दीपक जलाया जाए...

अकेला चलना फ़ितरत बन चुकी है तेरी..
तू बरसेगा कभी पागल मेघ की तरह..
बन जा प्रेमी उस बहती नदी के जैसे ..
जो मिल जाती सागर मे उसी की तरह..

अनजान है तू अब..
पहचान कर इस बदलते रुख़ से..
आज क्यों ना अपने आप को भूल कर...
एक मदहोशी मे फिर से खोया जाए...

चलो आज फिर इन पलो की माला मे
एक और मोटी पिरोया जाए...

Friday, November 9, 2012

सैनिक : ज़िंदगी से अंतिम मुलाकात

वक़्त आ गया है तुझे अलविदा कहने का ए ज़िंदगी..
मैं अब इस पावन भूमि पर मिटने चला हू...
एक और कहानी मौत से प्यार की..
आए ज़िंदगी देख मैं बयान करने चला हू..

मेरी नींद के बिछोने का रंग देख कर
गर्व से छोड़ा होगा सीना मेरे पिता का..
रास्ता देखती बूढ़ी मा को समझा देना तू..
उनका निशान इस माटी की आँचल पर छोड़ चला हू..

देख ना पाऊँगा शायद मैं सूरज कल का
पर था इंतज़ार मुझको कब से सुनहरे पल का,,
कामना नही करता मैं स्वर्ग की ..
देश की मिट्टी की गोद मे ही अब रहने चला हू...

पुनर्जनम होता है यदि तो,,
वापिस इस ज़मीन पर आऊ मैं..
कर दू इस माटी के नाम सारे जन्म..
आँखो मे लेकर ये आस अब सोने चला हू...

ना गिरे मोती किसी आँख से .. जब
आज तिरंगे मे लिपटने का जब दिन है आया...
जश्न मनाना .. मेरी इस उपलब्धि पर..
मैं इसी माटी से पैदा हो इसी मे मिलने चला हू..

मैं बेवफा हू तुझसे फिर भी
ज़िंदगी, एक गुज़ारिश कर रहा हू..

आँच ना आने देना उन पर
जिनका सिर्फ़ मैं ही एक सहारा था..
जिनकी आँखो का मैं तारा था...
कर्ज़ मैं उनके चुका नही पाया..
फ़र्ज़ वो मैं जो निभा ना पाया..
वो मा भी समझ कर जी जाएगी..
आँसुओ को भी अपने वो पी जाएगी..
उन्हे कोई मुश्किले ना आने देना..
भर पेट उन्हे बस हमेशा रोटी खाने देना..
बहन मेरी कलाई नही भूल पाएगी..
मांग की सुनी लकीर मेरी परछाई ना भूल पाएगी...
थोड़ा उनका तू ध्यान रख लेना..
फर्ज़ मेरा वो तू पूरा कर देना..
यूँ तो आऊँगा मैं फिर से
पर अभी कर अलविदा तुझे मैं माटी की गोद मे जीने चला हू
वक़्त आ गया है तुझे अलविदा कहने का ए ज़िंदगी..
मैं अब इस पावन भूमि पर मिटने चला हू....

Monday, November 5, 2012

कुछ बाते


छुपा कर नो रखो आँखो को पलको के पीछे...
इन्ही से आज बात होने दो...
लब तुम्हारे बंद है कब से...
आज इनकी जूस्तजू मे रात होने दो...
दिल की इस सुखी बंजर ज़मीन पर...
इश्क़ वाली एक बरसात होने दो..
मिले है अजनबीयो की तरह हम कई बार..
आज मोहब्बतो वाली एक मुलाकात होने दो...