Friday, November 9, 2012

सैनिक : ज़िंदगी से अंतिम मुलाकात

वक़्त आ गया है तुझे अलविदा कहने का ए ज़िंदगी..
मैं अब इस पावन भूमि पर मिटने चला हू...
एक और कहानी मौत से प्यार की..
आए ज़िंदगी देख मैं बयान करने चला हू..

मेरी नींद के बिछोने का रंग देख कर
गर्व से छोड़ा होगा सीना मेरे पिता का..
रास्ता देखती बूढ़ी मा को समझा देना तू..
उनका निशान इस माटी की आँचल पर छोड़ चला हू..

देख ना पाऊँगा शायद मैं सूरज कल का
पर था इंतज़ार मुझको कब से सुनहरे पल का,,
कामना नही करता मैं स्वर्ग की ..
देश की मिट्टी की गोद मे ही अब रहने चला हू...

पुनर्जनम होता है यदि तो,,
वापिस इस ज़मीन पर आऊ मैं..
कर दू इस माटी के नाम सारे जन्म..
आँखो मे लेकर ये आस अब सोने चला हू...

ना गिरे मोती किसी आँख से .. जब
आज तिरंगे मे लिपटने का जब दिन है आया...
जश्न मनाना .. मेरी इस उपलब्धि पर..
मैं इसी माटी से पैदा हो इसी मे मिलने चला हू..

मैं बेवफा हू तुझसे फिर भी
ज़िंदगी, एक गुज़ारिश कर रहा हू..

आँच ना आने देना उन पर
जिनका सिर्फ़ मैं ही एक सहारा था..
जिनकी आँखो का मैं तारा था...
कर्ज़ मैं उनके चुका नही पाया..
फ़र्ज़ वो मैं जो निभा ना पाया..
वो मा भी समझ कर जी जाएगी..
आँसुओ को भी अपने वो पी जाएगी..
उन्हे कोई मुश्किले ना आने देना..
भर पेट उन्हे बस हमेशा रोटी खाने देना..
बहन मेरी कलाई नही भूल पाएगी..
मांग की सुनी लकीर मेरी परछाई ना भूल पाएगी...
थोड़ा उनका तू ध्यान रख लेना..
फर्ज़ मेरा वो तू पूरा कर देना..
यूँ तो आऊँगा मैं फिर से
पर अभी कर अलविदा तुझे मैं माटी की गोद मे जीने चला हू
वक़्त आ गया है तुझे अलविदा कहने का ए ज़िंदगी..
मैं अब इस पावन भूमि पर मिटने चला हू....

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