जब सूरज अपनी क़िरण बिखेरता सुबह..
एक ताज़गी हवा मे लाता हुआ..
छँटता हुआ कोहरा आँखो के सामने से
अंबर नीला नज़र आता हुआ...
बूंदे ठंडी ओस की..
नयी कलियो पर दमकती हुई..
ओर खेतो पर किसान कोई
हाल से फसले बोता हुआ..
कोयल अपनी आवाज़ से..
कानो मे रस घोलती हुई..
ओर पपीहा अपने सुरीली ताल से
एक नया समाँ बनता हुआ..
है ये कितना सुहाना..
मौसम ये मदमस्त सुबह का..
एक नये दिन का ये आभास
एक नवजीवन संजोता हुआ...
आती है हर काली रात के बाद सुबह
ये संदेश छोड़ता हुआ..
सूरज हंस कर अपनी किरण अंजान..
धरती के उजले मुख पर बिखेरता हुआ..
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