Saturday, February 25, 2012

कभी तो गरज तू

कभी तो गरज तू
कभी बरस भी जा
सहने  की जो फ़ितरत है  तेरी
कभी तो उससे बाहर भी आ..

क्यों रोका है  उमँगो को
उड़ने दे बिना डोर पतंगो को
कर यकीन थोडा  सा हवाओ पर भी
उड़ने दे इन पागल रंगो को

तू मचल जा अब एक तूफान सा
बदल दे तकदीर का लिखा आज..
बहने दे मन को एक वेग से..
हवाओ को भी बहना सिखा आज

अद्भुत आनंद

प्यासी धरती
बात जोहती एक आगमन का
देखा होगा तुमने भी
आनंद उसकी आँखो में
नीर बरसता जब आकाश से

ठीक वैसे ही
मैं अधीर था
तेरे आगमन की प्रतीक्षा में
आज जब तुम मिले हो
अनुभूति हुई है अद्भुत एक आनंद की

Tuesday, February 21, 2012

मौसम चुनाव का

मौसम फिर से आया है..
गली गली घूम कर आने का..
चलो वोटो के बहाने ही सही
अपनी प्रजा से मिल कर आने का,,,

पूछेगा कोई हमसे..
क्यों तुम मारू के मेघ हुए.
वादा किया था सुध लेने का..
वृधा गये पर तेरे इंतेज़ार मे

समझा देंगे उन नादानो को
व्यस्त थे हम अपने निवास मे
32 रुपय मे चले दिन तुम्हारा.
बस उसी के एक प्रयास मे

रोटी हम दे या ना दे पाए..
आरक्षण हम तुम्हे दिलाएँगे..
ठिकाना नही है जहाँ बिजली की रोशनी का..
'आकाश' हम तुम तक पहुँचाएंगे

हम है राजा यहाँ पर..
अपना राज धर्म निभाते है..
प्रजा सोए भूखी यहाँ
पर अपना मुद्राकोष बढ़ाते है

Monday, February 20, 2012

बदलाव

क्या किसी ध्वनि ने तुम्हारे
कर्ण पटल पर दी थी दस्तक
जब छिन्न भिन्न हुआ था व्योम
उसकी एक ललकार से..

क्या तुम जागे थे अपनी चिरनिद्रा से
स्वप्न बुन रहे थे तुम जहाँ
परदेसी देश बनाने का..
ख्याली बदलाव की बयार से..

कोसते हो तुम जब
अपनी हालत अपनी व्यवस्था को
सुईया चुभती है ऐसे..
घाव बने हो तलवार के प्रहार से.

कर सकते हो युध जब..
मिलकर स्वार्थी आरक्षण का..
क्यों नही तुम एक जुट हुए..
नयी क्रांति के विचार से..

बदलना है यदि ये देश..
अपनी सीमित सोच को बदलना होगा
निज हित को पीछे छोड़..
कदम मिलाकर चलना होगा..

भूलना होगा भेद धर्म ओर जाति का..
जन मानुस को भीड़ मे बदलना होगा
तपती धूप हो या निर्मल चाँदनी
नंगे पाँव उस पर चलना होगा..

Thursday, February 16, 2012

कोशिश करता मैं एक दर्द बाँटने की..

समझते तुम मैं लिखता कविता..
कोशिश करता मैं एक दर्द बाँटने की..

धड़कनो के इस अकेलेपन को..
कोशिश करता सहारे कलाम के काटने की..

गुज़र चुका है जो सपनो मे ही
कोशिश करता उन लम्हो को छांटने की..

बिखर चुका है जो कानो मे.
कोशिश करता सूत मे उसे फिर से बाँधने की..

समझते तुम मैं लिखता कविता..
कोशिश करता मैं एक दर्द बाँटने की..

Friday, February 10, 2012

रिश्ता दोस्ती का


सफ़र पर जब चले तन्हा..
छूटा आसरा रिश्तो का..
बढ़ना तो तन्हा ही था..
पर सहारा मिला चंद दोस्तो का..


अजनबी थे मिले जब पहली बार..
पर एक दूसरे के लिए सब अज़ीज बने..
कट गया सफ़र कॅंटो का फूलो की तरह.
रूप बदल आए जब वो फरिश्तो का..

अहसास खुशियो का उनसे ही आया
टपकते आँसुओ ने कंधा उनका ही पाया..
बरसे वो घनघोर तेरी ग़लतियो पर.
हर मान बैठा जब आसरा उनसे ही पाया..

रिश्ता है दोस्ती का पवित्र गंगा सा..
नाम ज़रूरत रख ना इसे बदनाम करो..
जैसे पूजते हो विरासत मे मिले रिश्तो को..
वैसे ही इसका भी सम्मान करो.

नीला समुंदर

कोई पार ले चले मुझे..
आँखो के इस नीले समुंदर से..
डर लगता है कहीं
इसकी गहराई मैं डूब ना जाऊ..

आवरण है जो पलको को इस पर..
सहारा है डूबते तिनके का वो..
पर छुपना इस समुंदर का कवच मे
मैं सह वो भी ना पाऊ..

नशीला इतना ये नीलम है..
बिखर रहा पानी मे आग सा..
डर लगता है कहीं..
इसके नशे से बहक ना जाऊ..

डूबने के इस भय से..
सोचा जो निगाहे फेरने का..
पल मे मैं ये महसूस हुआ
कि इसके बिना मैं जी ही ना पाऊ

Monday, February 6, 2012

फ़र्क

बात यदि करते हो उड़ने की तो
उड़ तो मैं भी रहा हू..
फ़र्क सिर्फ़ इतना है की
तुम उड़ रहे हो पंख लगा कर ..
और मैं उड़ रहा हू
टहनी से टूटे सूखे पत्ते की तरह,,,,


बात करते हो चलने की तो..
चल तो मैं भी रहा हू..
फ़र्क सिर्फ़ इतना है की
तुम चल रहे हो नयी मंज़िलो की राह पर
और मैं नाप रहा हू रास्ता.
अजनबी राहो का अंजान की तरह.


बात करते हो जो तुम जीने की तो
जी तो मैं भी रहा हू
फ़र्क सिर्फ़ इतना है की
जी रहे हो ज़िंदगी तुम ख्वाबो मे खोए हुए
ओर ज़िंदगी मेरी काट रही है कुछ यू की
नींद आती है बस एक मूर्छा की तरह..