चला था घर से जब
अरमान थे कुछ कर दिखाने के..
सामने थी ज़िंदगी चमकती हुई..
ओर इरादे आसमानो पर छा जाने के..
पर ज़िंदगी के थपेड़ो से..
धीरे धीरे ये समझ आया
मिलता नही सब कुछ सिर्फ़ अरमानो से..
चमकता है तारा वो
जिसने जलने का जिगर है पाया
किया एक फ़ैसला अंजान..
कि अब सोने सा तपना है..
अंधेरो मे भी तुझको अब
दीपक सा जलना है..
कांटो सी है ये ज़िंदगी..
ओर तुझको नंगे पांवा चलना है.
चुनौती हो चाहे कोई भी..
निडर होकर लड़ना है..
साथ मिलेगा तेरे होंसलो का जब,,
सर आसमानो का तू झुकाएगा..
मिट गया इन राहो पर तो क्या..
अंजान एक निशान अपना छोड़ जाएगा..
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