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Friday, June 14, 2013

कुछ बाते,

शाम ढले कभी चेहरा तेरा नज़र आ जाए तो कुछ बात हो...
याद आए तेरी और तू बाहो मे आ जाए तो कुछ बात हो..
कट रहे है मिलन के इंतज़ार मे दिन मेरे सदियो के जैसे...
कभी ये मौसम कुछ लम्हो मे बीत जाए तो कुछ बात हो...




जो गुम गये शब्द मेरे तुझसे मुलाकात मे तो क्या..
शब्दो की मोहताज़ नही है मोहब्बत मेरी..
कुछ कहना थी जो इस दिल को उस दिल से...
तेरे चेहरे मे खोई मेरी आँखे ही काफ़ी है उस बात के लिए..

Friday, March 29, 2013

ग़ज़ल लिखु.. कहानी लिखु..


ग़ज़ल लिखु.. कहानी लिखु..
या मेरी सांसो की कोई रवानी लिखु...
या तेरे इश्क़ के सजदे मे गुजरती..
तन्हा पलो की ये ज़िंदगानी लिखु...

शाम लिखु.. चाँदनी लिखू..
या मेघो का बरसता पानी लिखु...
सदियो से गुज़रते हुए ये दिन लिखु..
या सपनो की एक मुलाकात बेगानी  लिखु...

लिख दूं इन आँखो के समंदर की गहराई को..
लिख दू यादे संग लाने वाली पुर्वायी को...
पल पल मजबूत होता एक विश्वास लिखु या
लिख दू सुबह की उस मीठी अंगड़ाई को..

खुद से जुदाई की दास्तान लिखु..
कलम की ज़ुबान से दिल का ब्यान लिखु..
जो मिल कर बुन रहे है सपने अपने
उन सपनो की एक खोई हुई ज़ुबान लिखु..

Wednesday, March 27, 2013

कुछ बाते,

जाने किसकी दुआ के असर से साथ मिला है तेरा मुझको... 
मुझे मेरी किस्मत पर इतना यकीन ना था और ना है.. 
बस मेरी इतनी सी इनायत है तुमसे कि..
जो थाम लिया है हाथ तो सफ़र मे साथ ना छूटने पाए..
रूठ जाए जो मौसम कभी.. प्यार की डोर ये ना टूटने पाए...





फ़ासले है लंबे इतने पर कर कुछ नही सकता.. 
हाँ प्रेम का ये दीपक अब बुझ नही सकता..
जिस दिन याद ना आए अपने महबूब की चाहत
उस दिन सांझ ढले सूरज छुप नही सकता...



तस्वीर तुम्हारी अब बाते कुछ करती है...
दिल के तन्हा कमरो मे रंग नये भारती है..
मीलो के जो फ़ासले है तेरे मेरे दरम्यान... 
रुसवा कर उन्हे सपनो मे रोज़ अब मुलाकात करती है...

कुछ अनकही बाते जो तुम्हारी आँखे कह गयी...
कुछ अरमानो की जूस्तजू तो बातो मे रह गयी.,..
मुलाक़ते तो हो जाएगी कभी फिर से...
आज के आलम तो ये मुलाकात अधूरी रह गयी

Thursday, January 31, 2013

कुछ बाते,


सीपियो मे था जब तक मोती था मैं...
बाहर निकल तो पत्थरो मे पहचान तलाशता मैं
खो गया है जो ज़माने की भीड़ मे...
अपनी हस्ती का वो निशान तलाशता मैं
बदल सकता तेरी मर्ज़ी काश ए खुदा..
हाथो के लकीरो के सहारे अपनी तकदीर ना छोड़ता..
आज इन लकीरो के इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए..
अभिमन्यु सा एक धनुष बान तलाशता मैं...

Saturday, January 5, 2013

कुछ बाते


बूँदो को मैने भी बरसते देखा है...
धरती को मैने भी तरसते देखा है...
दिल से दिल लगा कर पूछ लेता है हाल कोई सिरफिरा...
यूँ जिंदगी को गमो मे मैने भी हंसते हुए देखा है...

अक्स जब कल का सोने नही देता...
साया भी खुद का जब रोने नही देता...
बिखर जाता है टूट कर कोई राही जब..
लहू लुहान उसे अकेले बिलखते हुए भी देखा है...

पर ये इस ज़िंदगी का अंजाम हो नही सकता...
एक कल के लिए दूसरे कल को खो नही सकता...
मैं तो कश्ती हूँ तूफ़ानो से लड़ने की पहचान है...
जानते है लोग मुझे फिर भी गुमशुदा ये अनजान है...

मैं तैरना भी जानता हूँ ओर डूबना भी...
निपुणता के कौशल से जनता हू जूझना भी..
आँधी सी चलती है जब यादो की बिखरेती सब कुछ..
जानता हूँ मिट्टी से ढके अंधेरे रास्तो को बुझना भी...


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