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Thursday, January 31, 2013

कुछ बाते,


सीपियो मे था जब तक मोती था मैं...
बाहर निकल तो पत्थरो मे पहचान तलाशता मैं
खो गया है जो ज़माने की भीड़ मे...
अपनी हस्ती का वो निशान तलाशता मैं
बदल सकता तेरी मर्ज़ी काश ए खुदा..
हाथो के लकीरो के सहारे अपनी तकदीर ना छोड़ता..
आज इन लकीरो के इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए..
अभिमन्यु सा एक धनुष बान तलाशता मैं...

Saturday, January 5, 2013

कुछ बाते


बूँदो को मैने भी बरसते देखा है...
धरती को मैने भी तरसते देखा है...
दिल से दिल लगा कर पूछ लेता है हाल कोई सिरफिरा...
यूँ जिंदगी को गमो मे मैने भी हंसते हुए देखा है...

अक्स जब कल का सोने नही देता...
साया भी खुद का जब रोने नही देता...
बिखर जाता है टूट कर कोई राही जब..
लहू लुहान उसे अकेले बिलखते हुए भी देखा है...

पर ये इस ज़िंदगी का अंजाम हो नही सकता...
एक कल के लिए दूसरे कल को खो नही सकता...
मैं तो कश्ती हूँ तूफ़ानो से लड़ने की पहचान है...
जानते है लोग मुझे फिर भी गुमशुदा ये अनजान है...

मैं तैरना भी जानता हूँ ओर डूबना भी...
निपुणता के कौशल से जनता हू जूझना भी..
आँधी सी चलती है जब यादो की बिखरेती सब कुछ..
जानता हूँ मिट्टी से ढके अंधेरे रास्तो को बुझना भी...


Wednesday, January 2, 2013

कुछ बाते,

कलम मोहताज़ नही होती ज़माने की अनुशंसा की..
अपने बूते कभी इतिहास ओर कभी भूगोल बदल दिया करती है...
चल पड़ती है जब ये मदमस्त हो कर गलियो से गुज़रती है..
आँखे मूंद ज़माने की रूह भी पीछे चल दिया करती है..

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