लड़ते है सब धर्म के नाम से..
भला कहीं धर्म भी बुरा होता है..
कसूर नही है ये किसी धर्म का..
स्वार्थ तो इंसान का ही बुरा होता है
कमजोर कहते हम दूसरो की बुनियाद को..
नीचा दिखाते दूसरो के मान को..
कमज़ोर नही बनती बुनियाद कभी ज्ञान की..
यकीन उस पर इंसान का ही कमज़ोर होता है..
खो देगा इस वजूद तू अपना ..
बदलने मे जो अब देर लगाई..
रखना नज़रिया अपना कुछ इस तरह की
मिटा दे जो फ़ासले सब वो ही सच्चा इंसान होता है..
भला कहीं धर्म भी बुरा होता है..
कसूर नही है ये किसी धर्म का..
स्वार्थ तो इंसान का ही बुरा होता है
कमजोर कहते हम दूसरो की बुनियाद को..
नीचा दिखाते दूसरो के मान को..
कमज़ोर नही बनती बुनियाद कभी ज्ञान की..
यकीन उस पर इंसान का ही कमज़ोर होता है..
खो देगा इस वजूद तू अपना ..
बदलने मे जो अब देर लगाई..
रखना नज़रिया अपना कुछ इस तरह की
मिटा दे जो फ़ासले सब वो ही सच्चा इंसान होता है..
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