कहते है वो..
कोशिश नही की तुमने मुझे भूलने की..
इतनी तड़प तुम्हे ना हुई होती..
कसूर मेरा नही की
चाहा तुमने मुझको
पर ज़िंदगी कभी तो तुमने जी होती..
समझाओ कोई उस नादान को..
कहीं साँसे भी बिना धड़कन चला करती है.
जब होती है आरजू मिलने की.
भला आँखो मे नींद कहा बसा करती है..
कसूरवार ठहराते हर पल हमे जैसे वो
मेरी मोहब्बत का मानो मखोल बनाते..
खुश है गम हमको जुदाई का देकर वो..
ओर हमको ही ख़ुदग़र्ज़ बताते..
जब मिलने की एक गुज़ारिश की..
मानो उनसे उनकी ज़िंदगी माँग ली..
आया ना जवाब उनका .. ओर हमने
सपनो मे मुलाकात करने की था ली..
दूर हो तो दूर सही..
अहसास इश्क़ का काफ़ी है..
जागती आँखो को चाहे नज़र ना आओ..
सपने मे मिलना काफ़ी है
कोशिश नही की तुमने मुझे भूलने की..
इतनी तड़प तुम्हे ना हुई होती..
कसूर मेरा नही की
चाहा तुमने मुझको
पर ज़िंदगी कभी तो तुमने जी होती..
समझाओ कोई उस नादान को..
कहीं साँसे भी बिना धड़कन चला करती है.
जब होती है आरजू मिलने की.
भला आँखो मे नींद कहा बसा करती है..
कसूरवार ठहराते हर पल हमे जैसे वो
मेरी मोहब्बत का मानो मखोल बनाते..
खुश है गम हमको जुदाई का देकर वो..
ओर हमको ही ख़ुदग़र्ज़ बताते..
जब मिलने की एक गुज़ारिश की..
मानो उनसे उनकी ज़िंदगी माँग ली..
आया ना जवाब उनका .. ओर हमने
सपनो मे मुलाकात करने की था ली..
दूर हो तो दूर सही..
अहसास इश्क़ का काफ़ी है..
जागती आँखो को चाहे नज़र ना आओ..
सपने मे मिलना काफ़ी है
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