आज की इस महाभारत मैं..
हर कोई दुर्योधन नज़र आता है..
कृष्ण तो बन जाता है युध मे कोई
पर अर्जुन ना कहीं नज़र आता है..
चीर जब खींचता द्रोप्दि का..
कृष्ण आँख मूंद धीर्तरास्ट्र बन जाता है...
जब बात आए प्रतिग्या की..
तोड़ उसे भीष्म आगे बढ़ जाता है..
क्या ग़लत ओर क्या सही..
यहाँ हर कोई कौरव ही नज़र आता है..
चीर जब खींचता द्रोप्दि का..
कृष्ण आँख मूंद धीर्तरास्ट्र बन जाता है...
हर कोई दुर्योधन नज़र आता है..
कृष्ण तो बन जाता है युध मे कोई
पर अर्जुन ना कहीं नज़र आता है..
चीर जब खींचता द्रोप्दि का..
कृष्ण आँख मूंद धीर्तरास्ट्र बन जाता है...
जब बात आए प्रतिग्या की..
तोड़ उसे भीष्म आगे बढ़ जाता है..
क्या ग़लत ओर क्या सही..
यहाँ हर कोई कौरव ही नज़र आता है..
चीर जब खींचता द्रोप्दि का..
कृष्ण आँख मूंद धीर्तरास्ट्र बन जाता है...
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