क्या किसी ध्वनि ने तुम्हारे
कर्ण पटल पर दी थी दस्तक
जब छिन्न भिन्न हुआ था व्योम
उसकी एक ललकार से..
क्या तुम जागे थे अपनी चिरनिद्रा से
स्वप्न बुन रहे थे तुम जहाँ
परदेसी देश बनाने का..
ख्याली बदलाव की बयार से..
कोसते हो तुम जब
अपनी हालत अपनी व्यवस्था को
सुईया चुभती है ऐसे..
घाव बने हो तलवार के प्रहार से.
कर सकते हो युध जब..
मिलकर स्वार्थी आरक्षण का..
क्यों नही तुम एक जुट हुए..
नयी क्रांति के विचार से..
बदलना है यदि ये देश..
अपनी सीमित सोच को बदलना होगा
निज हित को पीछे छोड़..
कदम मिलाकर चलना होगा..
भूलना होगा भेद धर्म ओर जाति का..
जन मानुस को भीड़ मे बदलना होगा
तपती धूप हो या निर्मल चाँदनी
नंगे पाँव उस पर चलना होगा..
कर्ण पटल पर दी थी दस्तक
जब छिन्न भिन्न हुआ था व्योम
उसकी एक ललकार से..
क्या तुम जागे थे अपनी चिरनिद्रा से
स्वप्न बुन रहे थे तुम जहाँ
परदेसी देश बनाने का..
ख्याली बदलाव की बयार से..
कोसते हो तुम जब
अपनी हालत अपनी व्यवस्था को
सुईया चुभती है ऐसे..
घाव बने हो तलवार के प्रहार से.
कर सकते हो युध जब..
मिलकर स्वार्थी आरक्षण का..
क्यों नही तुम एक जुट हुए..
नयी क्रांति के विचार से..
बदलना है यदि ये देश..
अपनी सीमित सोच को बदलना होगा
निज हित को पीछे छोड़..
कदम मिलाकर चलना होगा..
भूलना होगा भेद धर्म ओर जाति का..
जन मानुस को भीड़ मे बदलना होगा
तपती धूप हो या निर्मल चाँदनी
नंगे पाँव उस पर चलना होगा..
उम्दा रचना
ReplyDeleteबढ़िया रचना...
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