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Monday, December 5, 2011

चाँदनी रात

ठंडी चाँदनी इस चाँद की..
रोम रोम इस जिस्म का लुभाती हुई..
ओर फिर तस्वीर उनकी ..
आँखो के सामने आती हुई..

सितारे सजाते हुए..
रात के इस आँचल को..
ओर ठंडी हवा फिर से..
फ़िज़ा को महकती हुई...


खेलता चाँद छुपने का खेल.
बादलो की उस भीड़ के बीच..
ओर फिर एक खुशबू..
मुझे सच से बहकाती हुई...


हिलोरे मरता गहरा सागर प्रेम का
दिल के किसी कोने से..
ओर उफनती लहरे ख्वाहिशो की..
जूस्तजू मिलन की जागती हुई..


छाया है नशा मोहब्बत का..
कुछ दिल पर इस तरह की.
चाँदनी इस रात के अंबर पर.
परछाई उनकी नज़र आती हुई..


खोया है ख्यालो मे यू
रात चाँद लम्हो मैं जाती हुई
ओर झलक रोशनी की अंजान को..
अहसास हक़ीकत का करती हुई

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