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Wednesday, December 26, 2012

कुछ बाते


बदल जाती है इबादत इस ज़माने की बदलते मौसम के साथ..
कभी धूप कभी पानी कभी शीत हवाओ की आस लगाए मिलते है..
चंदन से लिपटा है नाग जैसे वो लिपटे अपने आपसे...
ज़िंदगी की इन रहो पर कितने ही गुमराह ठोकर खाए मिलते है..

दर्द बाँट कर खुशियाँ छानते... फरिश्ते है ऐसे भी..
कोई गली गली नमकीन पानी की मानो दुकान लगाए मिलते है..
सुखी आँखो की नज़र से बिलखती ज़िंदगी का लुत्फ़ उठता है कोई..
और कभी सागर के किनारे भी जल मे समाए लगते है..

मैं भी चल देता हू बंजारो की तरह सच की खोज मे..
ज़िंदगी की इन रहो पर कितने ही गुमराह ठोकर खाए मिलते है..

Sunday, November 25, 2012

इन पलो को चलो फिर से पिरोए हम...


इन पलो को चलो फिर से पिरोए हम...
कुछ सपने खुली आँखो से भी संजोए हम
देखे है बिखरते अपने भी और पराए भी..
आँखे बंद कर अब चैन की नींद सोए हम


कभी दूर थे वो..
कभी साथ तेरा तेरे भाग्य ने छोड़ा था..
कभी तू भी हारा था अपने आप से..
कभी दूसरो की हार ने तुझे झनझोड़ा था

कभी बिलख कर कट  गयी थी शाम कोई..
मुखौटा लगा झूठ का दामन ओढ़ा था..
सच बोल कर भी रोया था जब तू..
ओर सच सुन कर भी अपने ने नाता तोड़ा था..

आज वो समय नही की
उनका गम मनाया जाए...
आज आ गया है मौसम सुबह का..
तन्हाई के अंधेरो मे एक नया दीपक जलाया जाए...

अकेला चलना फ़ितरत बन चुकी है तेरी..
तू बरसेगा कभी पागल मेघ की तरह..
बन जा प्रेमी उस बहती नदी के जैसे ..
जो मिल जाती सागर मे उसी की तरह..

अनजान है तू अब..
पहचान कर इस बदलते रुख़ से..
आज क्यों ना अपने आप को भूल कर...
एक मदहोशी मे फिर से खोया जाए...

चलो आज फिर इन पलो की माला मे
एक और मोटी पिरोया जाए...

Friday, November 9, 2012

सैनिक : ज़िंदगी से अंतिम मुलाकात

वक़्त आ गया है तुझे अलविदा कहने का ए ज़िंदगी..
मैं अब इस पावन भूमि पर मिटने चला हू...
एक और कहानी मौत से प्यार की..
आए ज़िंदगी देख मैं बयान करने चला हू..

मेरी नींद के बिछोने का रंग देख कर
गर्व से छोड़ा होगा सीना मेरे पिता का..
रास्ता देखती बूढ़ी मा को समझा देना तू..
उनका निशान इस माटी की आँचल पर छोड़ चला हू..

देख ना पाऊँगा शायद मैं सूरज कल का
पर था इंतज़ार मुझको कब से सुनहरे पल का,,
कामना नही करता मैं स्वर्ग की ..
देश की मिट्टी की गोद मे ही अब रहने चला हू...

पुनर्जनम होता है यदि तो,,
वापिस इस ज़मीन पर आऊ मैं..
कर दू इस माटी के नाम सारे जन्म..
आँखो मे लेकर ये आस अब सोने चला हू...

ना गिरे मोती किसी आँख से .. जब
आज तिरंगे मे लिपटने का जब दिन है आया...
जश्न मनाना .. मेरी इस उपलब्धि पर..
मैं इसी माटी से पैदा हो इसी मे मिलने चला हू..

मैं बेवफा हू तुझसे फिर भी
ज़िंदगी, एक गुज़ारिश कर रहा हू..

आँच ना आने देना उन पर
जिनका सिर्फ़ मैं ही एक सहारा था..
जिनकी आँखो का मैं तारा था...
कर्ज़ मैं उनके चुका नही पाया..
फ़र्ज़ वो मैं जो निभा ना पाया..
वो मा भी समझ कर जी जाएगी..
आँसुओ को भी अपने वो पी जाएगी..
उन्हे कोई मुश्किले ना आने देना..
भर पेट उन्हे बस हमेशा रोटी खाने देना..
बहन मेरी कलाई नही भूल पाएगी..
मांग की सुनी लकीर मेरी परछाई ना भूल पाएगी...
थोड़ा उनका तू ध्यान रख लेना..
फर्ज़ मेरा वो तू पूरा कर देना..
यूँ तो आऊँगा मैं फिर से
पर अभी कर अलविदा तुझे मैं माटी की गोद मे जीने चला हू
वक़्त आ गया है तुझे अलविदा कहने का ए ज़िंदगी..
मैं अब इस पावन भूमि पर मिटने चला हू....

Monday, November 5, 2012

कुछ बाते


छुपा कर नो रखो आँखो को पलको के पीछे...
इन्ही से आज बात होने दो...
लब तुम्हारे बंद है कब से...
आज इनकी जूस्तजू मे रात होने दो...
दिल की इस सुखी बंजर ज़मीन पर...
इश्क़ वाली एक बरसात होने दो..
मिले है अजनबीयो की तरह हम कई बार..
आज मोहब्बतो वाली एक मुलाकात होने दो...

Sunday, October 28, 2012

क्यों ना एक बार


क्यों ना एक बार सब फ़ासले मिटाए जाए..
क्यों ना एक बार फिर दिल से दिल मिलाए जाए...
क्यों रहे घरोंदा हमारा मातम के साए मे
क्यों ना उस मे एक बार खुशियो के दिये जलाए जाए...

कभी साथ बैठ कर मनाए होली..
गुरु पर्व पर भी हम गाये हमजोली...
क्यों ना हम साथ मनाए पर्व एक दीपो का..
क्यों ना साथ बैठ ईद पर सेंवई खाई जाए


क्यों फ़र्क ढूँढे हम अल्लाह और भगवान मे
मानवता ही लिखी है गीता और क़ुरान मे...
लहू छोड़ बहे नादिया जहाँ दूध की...
चलो फिर एक ऐसा देश बनाया जाए..

खुदा भी वही.. वही है हिंदू पुराण..
वही है ईसा भी.. वही संत नानक महान..
हिंदू सिख मुसलमान बनने से पहले..
क्यों ना एक बार इंसान बना जाए...

क्यों रहे घरोंदा हमारा मातम के साए मे
क्यों ना उस मे एक बार खुशियो के दिये जलाए जाए...

Thursday, October 11, 2012

जब भी ज़िक्र होगा मोहब्बत का ...

समेट लू इन गुज़रते लम्हो को 
अपने मन के किसी कोने मे.. 
ये याद आएँगे हर दूं..
जब भी ज़िक्र होगा मोहब्बत का ...

कि तुम थे एक कोशिश मे.. 
साथ मेरे चलने की..
मेरी रफ़्तार पकड़ने की..
ना थी कोई भावना स्वार्थ की...

इतना अनोखी चाहत..
ना कभी देखी ना कहीं सुनी..
अफ़सोस है मुझे की
ये एक कहानी ना बनी...

तुम्हारी शिकायत कि..
मिलते नही हो ख्वाब मे भी..
मैं असमंजस मे हू..
कि मिल कर नज़ारे कैसे मिलाऊ..
डरता हू खुद से ...
तेरा सामना कैसे कर जाऊ..

साथ चलना मुमकिन नही है..
कसूर कहीं ना कहीं मेरा ही है..
कमजोर नही है मोहब्बत तेरी...
मैं ही हरा हुआ हू खुद से...

याद आएँगे लम्हे तेरे साथ के..
जब भी ज़िक्र होगा मोहब्बत का...

कुछ बाते


कभी रास्तो पर जो मुलाकात हो जाए तुमसे...
नज़र मिला कर फिरा लेना अजनबी हो जैसे..
मेरी एकटक देखती आँखो के चुभते सवालो से..
कही खुद को तुम घायल ना कर लो..

Thursday, October 4, 2012

एक ढके चेहरा का नकाब उतार कर दिखलाता हू..


बँधी है बेड़ियाँ कुछ वो फिर से तुम्हे सुनाता हू.,.
एक ढके चेहरा का नकाब उतार कर दिखलाता हू..

खादी पहन डाकू भी संसद मे पहुँच जाता है..
ओर एक व्यंग करने वाला कलाकार... जेलो मे मिल जाता है..
सीना छलनी करने वाले को.. बिरयानी खिलाई जाती है..
ओर शहीदो की माओ को .. दफ़्तरो की धूल चटाई जाती है
भगत सिंग ओर राजगुरु की कुर्बानी पल पल यहाँ रोती है..
जब सियासत लोगो मे नफ़रत के बीज बोती है..
मैं फिर तुमसे एक बार भारतीयता के बात बताता हू..
क्या हो तुम आज तुम्हारा तुमसे परिचय करवाता हू..

जी रहे हो तुम यहाँ.. वो जीवन बेमानी है..
परंपरा की एक अनसुलझी  कोई कहानी है..
कोई गैर रोज़ तुम्हारा खून चूसने जब आता है..
अपना ही कोई आगे बढ़ उसे फूलो का हार पहनता है..
अपनो के हाथ काट कर.. बेच देता है बाज़ारो मे..
भूखा देश नज़र आता सुबह शाम नज़ारो मे..
बिक जाती है रूह जहाँ.. उस मॅंडी से तुम्हे मिलवाता हू..
एक ढके चेहरा का नकाब उतार कर दिखलता हू..

Monday, September 17, 2012

कुछ बाते

1) 
जब नीली आँखो का सागर
खींचता अपनी ओर हर लहर के साथ... 
कदम जम जाते है ..
आख़िर कभी इनमे डूबने की चाह रखने वाला
आज काश्तियों के सहारे किनारे खोजा करता है...

2)
अजनबी है हसीन वादियाँ यहाँ यो
जो दिल खोल कर बात नही करती दो पल के लिए भी..
एक मिट्टी है मेरे देश की..
जहाँ पतझड़ भी हंसते हुए निकल जाता है,...

Saturday, September 8, 2012

यूँ मेरा देश भी मेरा अपना नही,,,,


कहने को दुनिया मुट्ठी में हैं अपने,,
यूँ मेरा देश भी मेरा अपना नही,,,,
जिन की खातिर कितने कुर्बान हो गये हंसते हंसते..
 मेरी आँखो मे आज वो सपना नही..

मैं लड़ जाऊँगा धर्म के नाम पर..
पर वतन के लिए चेतना मुझे आती नही ..
गुलामी की जंजीरो की आदत मुझको..
दो साँसे आज़ादी की मुझे सुहाति नही...

अच्छा है यदि लड़े दो चार प्रांत के नाम पर,,,
अपना कुछ तो भला होगा..
अपने घर मे आग लगा सोचता में..
आख़िर इससे घर पड़ोसी का भी तो जला होगा...

पढ़ाई पर बच्चो को देकर लालच नयी साइकल का...
महफ़िलो मे भ्रष्टाचार पर मैं बतियता हू...
जब घड़ी आती है ईमान परखने की..
चंद सिक्को से मैं परीक्षा से ही बच जाता हू..

मैं लड़ता हू आरक्षण पर..
पानी ओर रोटी की लड़ाई से भला मुझे क्या करना..
काम है मेरा नारेबाज़ी करना आख़िर..
उसी से शाम को मेरे घर का चूल्हा है जलना...

यूँ ताक़त है मुझमे ज़माने से भीड़ जाने की..
प्रेमियो को सरे आम मार कर.. सभी समाज बनता हू...
और जब कोई मुझसे मेरे हक मार ले जाता है..
मैं मजबूरी का बस झुन्झुना बजता हू...

ये मैं इस अंजान का भी हिस्सा है..
शायद एक दूसरे का यही एक किस्सा है...
मत समझना मेरा उद्देशय है सिर्फ़ व्यंग्य..
मैं तो आत्मा मेरी जगाना चाहता हू..
देश के लिए मर मिटे जो..
शब्दो के सहारे एक ऐसे पीढ़ी बनाना चाहता हू...

Wednesday, August 29, 2012

कुछ बाते


जलना है काम उसका.. वो दो पल की ज़िंदगी से ही खुश है..
सागर किनारे की तरह अपनी खामोशी मे ही खुश है..
गम नही की मिला ना साथ तेरा मेरी मंज़िल की राहो पर..
साथ बीते चाँद पॅलो की अंजान बंदगी से ही खुश है...

पर सपना मेरा बिखर जाता है..


कहीं दूर
क्षितीज़ के पास...
 जहाँ ये आसमान..
धरती से मिल जाता है...

उसी तरह अंत मे
मेरी सोच के हाशिए पर
तेरा मेरा रिश्ता..
हमेशा ही जुड़ जाता है..

समझता है कोई..
कि मैं बीते कल को
अपने मुट्ठी मे
दबाकर साथ चल रहा है..

पर जब
हौंसला देने वाला साथ नही
आगे चलता हुआ अनजान फिर
पीछे मूड जाता है..

पर ये तो कल है
आख़िर बीत चुका है
जो बस अब मैं
देख सकता हू दूर से ही

छूने की कोशिश मे
उस सुंदर लम्हो की दर्शनि को..
मैं हो जाता हू बेसूध अक्सर...
पर सपना मेरा बिखर जाता है..

Monday, August 27, 2012

मैं


मध्यम मध्यम पूर्वा..
अटखेलियाँ करती हुई..
एक जोश भरते हुई..

कंपकपाते हुए  शब्द मेरे..
अब एक आवाज़ बनने लगे है..

मैं भी तो हू झोंका,,
इस मनचली हवा का आख़िर..
सारी हदे तोड़ कर...
अब तूफ़ानो की तरह बहने लगा हू...

मैं उन्मुक्त हो चुका हू फिर अब..
की ज़ंज़ीरे बंदिशो की स्वयं खुलने लगी है..
मैं भँवरा बन अब
इच्छुक फूलो पर रहने लगा हू...


कई मौसम आ चुके है..
कई मौसम अभी आने की राह देख रहा मैं..
शुष्क भी है कुछ.. ओर कुछ तरल भी...
बस अब मैं लग रहा की ये  मैं भी था कहीं..

Wednesday, August 15, 2012

आज जश्न आज़ादी का मानने से पहले..

आज जश्न आज़ादी का मनाने से पहले


शत शत नमन वीरो को करता हू..



जो कुर्बान हुए कभी सरहद पर..

कभी सत्याग्रह मे जिन्होने दम तोड़ा है..

जो पल पल मरे है अपनो से दूर रह कर..

देश की तकदीर से ही अपना नाता जिन्होने जोड़ा है..



एक लक्ष्य था हर एक..

सोच बेशक अलग थी..

हालात थे विरोधी मगर..

आँखो मे जीत की ललक थी



वो कामयाब हुए थे..

अपने मज़बूत इरादो से..

लड़े थे एक सशक्त के खिलाफ..

ताक़त ओर जज्बातो से..



कोई खेलने की उम्र मे फन्दो पर झूला था

आज़ादी के क्रांति का फल दिलो मे कहीं फूला था

कोई अहिंसा की तलवार से बढ़ा था सब को लहू लुहन करते..

देश की खातिर कोई अपनी पहचान तक भूला था..



तमन्ना थी जो उन दिलो की

वो आज भी अधूरी है..

हम दौड़ रहे है बिना किसी दिशा के..

ना जाने कौनसी मजबूरी है..





थमा नही है कारवाँ ये अभी..

अभी तो हाथ पकड़ कर चलना है..

जश्न हम माना रे है गैरो से मिली आज़ादी का..

अपने अंदर के लालची शासन से हमे लड़ना है..

आज जश्न आज़ादी का मानने से पहले..

हुंकार एक नये क्रांति की मैं भरता हू

जो कुर्बान हुए है देश की खातिर..

शत शत नमन वीरो को करता हू..

Sunday, August 12, 2012

मैं आऊँगा लौट कर

हवओ संग आज फिर उड़ने चला हूँ..
सपनो की मंज़िलो से मिलने चला हूँ..
बिछड़ने का अहसास है आज इस ज़मीन से..
जब आज फिर आसमान के रंग मे घुलने चला हूँ..

फिर एक किस्सा बना है आज प्यार का..
अफ़साना बना है कब से दबे उस इकरार का..
बरसते बादल भी थम गये थे आज..
जब मेरे गुलिस्ताँ मे मौसम आया था बहार का..

मुलाक़ते होंगी अब तुमसे पर एक नये आयाम पर
जो यहाँ ना मिली उस अजनबी शाम पर..
राह ताकना मेरी तुम थोड़ी सी..
मैं मिलूँगा तुझसे फिर एक नये मुकाम पर..

जवाब तेरे अनसुलझे सवालो का बन जाऊँगा..
मैं आऊँगा  लौट कर किस्सा उजलो का बन जाऊँगा
नही कोई बहती नदी का पानी नही जो वापिस लौटा नही..
बादलो मे पानी बन फिर तेरे आँचल मे आकर गिर जाऊँगा

ये ना समझना की तुझसे रूठ कर तुझसे दूर चला हूँ..
तुझसे अपनी नज़ारे मोड़ चला हू..
तुझमे तो बसता है रब मेरा.. और बसती मेरी आत्मा यहाँ..
जुदा होकर तुझसे एक बार मैं.. फिर तुझे महसूस करने चला हूँ

Tuesday, July 10, 2012

ज़िंदगी का नाम तो बस चलते जाना है


ज़िंदगी का नाम तो चलते जाना है..
मिलते है मुसाफिर काई अक्सर.. उसमे से कुछ हमराही भी होंगे...
कोई लौ है नयी उमीद का.. कोई उसमे तेरी परछाई भी होंगे
सुख दुख गुम खुशिया घड़ी दो घड़ी का आना जाना है,,
आख़िर ज़िंदगी का नाम तो बस चलते जाना है..


उँचाइयाँ होगी आसमानो की..
उन उँचे अरमानो की..
गहराइयाँ सोच की भी तो होती है..
ज़िंदगी अक्सर खुली आँखो से सोती है..
नींद की फ़िक्र कहाँ जब घर कोई बनाना है..
ज़िंदगी का नाम तो बस चलते जाना है..

गुलाब समझ जिससे महकाया हो गया बाघ कोई,,
शूलो मे हाथ तो लहू मे सना  होगा..
जो सोचा होगा लड़ने का उमड़ते तूफ़ानो से..
कभी पाषान सा सख़्त भी तू बना होगा..
ये सख्ती ओर नरमी.. गुज़रते वक्त का सिर्फ़ एक बहाना है..
ज़िंदगी का नाम तो बस चलते जाना है

Saturday, July 7, 2012

बीते पलो की तो बस इतनी सी कहानी है..


बीते पलो की तो बस इतनी सी कहानी है..
होंठो पर है मुस्कान कंपकपाती हुई..
और आँखो मे समुंदर जितना पानी है..

आज मौसम इतना हसीं है
शामे तो कल भी गमगीन ना थी..
पर इन सपनो के पंछी की तकदीर मे
आसमान तो था पर ज़मीन ना थी..
बीतो पलो की कही ये ज़ुबानी है..
रोक सकते तो रोक लेते उड़ने से
चलती कहाँ है आख़िर दिलो की ये नादानी है..


आने वाला पल भी आज ज़िद पर आड़ गया है
ज़िंदगी के लिए एक कल दूसरे कल से झगड़ गया है..
कल की इस जंग को देखो दोस्तो..
साथी कोई मुझसे बिछड़ गया.. पर
आने वाले पलो की बस अब इतनी सी कहानी है
दर्द को छुपा कर रखो सारे ज़माने से
बाँटो खुशिया आख़िर दो पल की ये ज़िंदगानी है..

Saturday, June 30, 2012

अंश


बिखरे शब्दो को
जोड़ता कभी
कोशिश करता उन को
लिखने की ज़िंदगी के कोरे पन्नो पर
कला बना कर उजड़े सपनो की
उकेरता तस्वीर सुनहरे कल की

कुछ छूट चुका पीछे..
भूत ओर वर्तमान है बिखरा हुआ..
यादो को किसी कोने मे छुपा
मैं कर रहा कोशिशे
उन बिखरे अंशो जोड़ने की..

मिलते है कई  आयाम ..
एक निशान मुद्रित कर जाते है..
उजड़े सपनो ओर बिखरे  शब्दो मे
फिर जान नयी भर जाते है..

कलम भी अब मेरी झुकने लगी है
विचारो मे कोई बात अब रुकने लगी है
ठहर जाता है जब सोचता हू कभी.
कोरे पन्नो की इस गाँठ मे.
एक पन्ना गुम गया है कहीं..

उम्मीद नही मिलने की
फिर भी इंतज़ार है मिलने का..
उस अनछुए हिस्से के बिना तो
ये बिखरी चीज़े जुड़ती नही है..

Wednesday, May 30, 2012

कुछ बाते

1) चल रही थी ज़िंदगी चंद बहानो से.. तुम मिले हो एक वजह बन कर.. सागर की लहरो के संग साहिल पर जैसे कुछ मोती आ गये हो.. ओर ज़िंदगी गुज़र जाएगी जैसे उन्हे समेटने.. बस दुआ कर अब रेत पर बैठे बैठे दूर छिपते सूरज को देखते हुए.. तेरे आगोश मे यूँही ज़िंदगी चलती रहे...




2) पलको के झरोखे से झाँकती वो नज़र.. धीरे से अपने मुखपृष्ठ का आकर्षण चुराते केसुओ को सुलझाती हुई वो.. धीमे धीमे मुस्कुराती है.. मानो एक भीगी सुबह में कोई कली पंखुड़िया फैला कर गुलाब बनी हो.. और मैं उलझ जाता हू एक प्रीत के पाश मे..


3) मेरी पलको पर सपने रख कोई मुझसे दूर जाकर बैठ गया है.. सपने है जो होश मे आने नही देते.. ओर एक चेहरा उनका जो कभी सोने नही देता..


4) बरसो से जिसका इंतज़ार किया है.. वो सामने है मेरे.. बस छूने से डर लग रहा है.. कि कहीं कोई सपना बन बिखर ना जाए.. अब यकीन तुझे ही दिलाना होगा मीत मेरे.. कि सामने जो हो मेरे.. वो तुम ही हो.. तुम्हारा कोई अक्स नही..


5) यकीन आता नही है पल पल बदलते मौसम की मिज़ाज़ पर.. दिल मे उतरते किसी अहसास पर... ये लम्हे कुछ है जाने पहचाने.. पहले सुन चुका हू ये अफ़साने.. हक़ीकत है मैं यकीन करना नही चाहता... क्योंकि जूठे सपनो से सच के दर्द कहीं ज़्यादा सुकून दे रहे है..


6) चेहरा बदल सामने आए है वो.. बरकत हुई है मेरे नसीब की..
खुली जुल्फे उनकी मदहोश कर रही है क़ि.. सपना है या हक़ीकत.. फ़र्क करना मुश्किल है अब...
जाग रहा हू बंद पलको के पीछे .. आँखे खोल मैं अब सो रहा हू..
डूब रहा हू उनकी आँखो मैं हर पल.. आगोश मे उनके खो रहा हू..



7) दुआ कर रहा है तू कि एक मुलाकात काश उनसे हो जाए.. ,, पर कुछ ख्यालो में ही गुमशुदा है अब तक.. .. चाहत रखी है जैसे क्षितिज को छूने की साहिल पर खड़े रहकर... दुआ भी कैसे रंग लाएगी बता मुझे तू ये.. जब तुझे अब तक डर लगता है तूफ़ानी लहरो का... तेरी कश्ती तो डूब चुकी है कब की.. अब मुलाकात करनी है तो तूफ़ानो को तो चीरना ही होगा.,,


8) क्यों आज यूँ बेचैन है तू.. जब गिरा है ज़मीन पर एक आसमान से... उँचाइयो की आदत होती है गिराना गर्त की गहराइओ में. पर तू ही तो था जिसने आसमानो से दोस्ती की थी ज़मीन को गैर बना कर... मत भूल तू अहसान ज़मीन का.. आख़िर इसी के आँचल मे तूने आँखे खोली थी ओर इसी के आँचल मे तुझे सो जाना है


9)  हाथो मे हाथ थामने के बहाने से... मत रोक मुझे उड़ान भरने से.. तू वक़्त है कोई ठहरा हुआ.. ओर मंज़िल मेरी अभी एक अनसुलझी पहेली है... सूरज की तपिश मे अभी मुझे जलना है... बदलो पर अभी मुझे चलना है.. मुझे अभी बहुत दूर तक उड़ना है...


10) एक याद जब कभी नींद से जगा देती है.. गहरी रात के अंधेरो मे कांप उठता हूँ तन्हाई से.. विचलित मन को समझाता हूँ.. और फिर खो जाता हू.. एक गहरी नीद मे.. जहाँ कोई सपना नही.. बस फैला है तो अंधकार अनंत तक ,, बस उसी अंधकार का प्रकाश हो तुम.. एक अहसास हो तुम...कुछ खास हो तुम,,,

Monday, May 28, 2012

कुछ बाते

लम्हो से मुलाकात होती है अक्सर जब.. ठहर कर सवाल पूछता हूँ उनसे.. क्या वापिस फिर साथ चलोगे हाथो मे हाथ डालकर.. मुस्कुरा कर लम्हे मुझसे ये कहते है.... यादे बन तेरे दिल के किसी कोने मे हम रहते है... तू खोजता हमें इस ज़माने की भीड़ मे.. हम अक्सर तन्हाइओ की हवा संग बहते है..

Sunday, May 27, 2012

कुछ बाते

मुलाक़ातो की इस खुशनुमा दौर से डर लगने लगा है अब .. ऐसा ना हो कहीं कि मैं समझ रहा जिसे व्योम .. और वो सिर्फ़ एक धुआँ हो.. जिसे समझ रहा हूँ गहरा सागर प्रेम का.. वो कहीं सूखा हुआ कुआँ हो.. परदा है कोई खूबसूरत इन आँखो पर या किसी कहानी की शुरूवात है.. इतना सोचता हूँ जाने क्यों.. अजनबी ये मुलाकात है..

Sunday, April 1, 2012

तेरी परछाई खोजता हूँ

मेरी किताब के पन्नो पर
लिख दे जो कहानी तेरी
वो स्याही खोजता हूँ

जहाँ मिले तुम मुझसे
सब गम भूलकर..
दिलो की वो गहराई खोजता हूँ

वो कोई ओर है जो तलाश में
भटकते है हर नगर हर डगर

मैं तो खुद की परछाई मे ही
तेरी परछाई खोजता हूँ

Saturday, March 24, 2012

क्या तुम मात्र एक मृत् हो??

क्या तुम मात्र एक मृत् हो??

सच को तुम मिटा चुके हो..
दास्तान आज़ादी की जला चुके हो..
कुर्बानिया अशफ़ाक बिस्मिल की...
लगता तुम भुला चुके हो..

कभी भगत ओर कभी सुभाष
मौत के झूलो पर वो झूले थे..
तुम क़ैद हो चुके हो स्वार्थ की जंजीरो मे
और तुम्हारे लिए वो कभी अपना अस्तित्व भूले थे..

तुम तो मात्र एक मृत् हो..
जो मार चुके हो अपने स्वाभिमान को..
बेच रहे हो जैसे देश को तुम..
ठेस पहुँच रही है शहीदो के अभिमान को..

साँसे चल रही है तुम्हारी सदियो से पर
लाश क्यों बन गये हो तुम..
आवाज़ है तुम्हारे कंठ में अभी..
मूक क्यों बन गये हो तुम..

बहाना मत बनाना घर परिवार का..
शहीदो का क्या एक घर नही था..
पर जंजीरे थी जो गुलामी की..
उन्हे तोड़ने में कोई डर नही था..


सपने है यदि तेरी आँखो में
देश के लिए मर मिट जाने का..
मरने के बाद भी जीवित हो तुम..
अन्यथा तुम मात्र एक मृत् हो..

तुम मात्र एक मृत् हो...

Thursday, March 22, 2012

कभी तो तू जाग भी जा

क्यों तू चुप बैठा है
क्यों तू सब सहता है
कभी तो तू जाग भी जा
कभी तो अपना हक दिखा

जब आकर कोई तेरे दरवाजे पर
तुझ को ही धमकाता है
तू क्यों मन मसोस कर
चुप चाप सब सह जाता है

... जब तेरे बुनियादी ज़रूरत को
कोई तुझसे छीन ले जाता है
क्यों प्रत्युतर में तू
अपना हाथ नही उठाता है

बहुत हो चुका है सहना
खून को तो खौलना होगा
बहुत जल चुका है लाचारी मे
अब इस देश को बदलना होगा

बहुत चल चुका है पीछे दूसरो के तू
अब कमान पकड़ खुद आगे चलना होगा
खोखला कर रहा है जो देश को
उस दीमक को तो अब मरना होगा

भूल कर अपने मतभेदो को
गद्दारो को मिटाओ तुम
युवा हो तुम भविष्य इस देश का
एक खुशनुमा जहाँ बनाओ तुम

तकदीर मे आए जो मिटना
हँसी खुशी जान लूटा देना
बचाने को इस देश की हस्ती
अपनी हस्ती मिटा देना..

Friday, March 16, 2012

मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..


मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..

कभी बंजर था जो टुकड़ा ज़मीन का
मर रहा था जीवन जहाँ हर पल
वहाँ सख़्त माटी की परतो मे
कभी हरी घास को पनपते देखा है..


ढक गया कभी जो हिमालय.
हिम की एक मोटी चादर से..
चाँदनी रातो मे उस
हिम को चमकते देखा है..


उजड़ गये थे जो आशियाने
पतझड़ के मौसम मे..
बसंत में फिर उन्हे..
महकते हुए देखा है..


बुझ गयी सूरज की रोशनी
अंधेरी रातो मे तो क्या..
हर सुबह उस दीये को
फिर से जलते हुए देखा है..


टूट ना जाना तू अपने टूटे सपनो से
बढ़ते रहना एक हर्ष उल्लास से..
हर पल चलते समय के साथ
मैने ज़िंदगी का चेहरा बदलते देखा है


मैने इस दुनिया को बदलते देखा है..

सच

डरे क्यों मुश्किलो से.. जब ज़िंदगी नाम है इम्तिहानो का..
पल में है खाली हाथ.. पल में तू मालिक ख़ज़ानो का..

पहचान है भीड़ की तू कभी.. कभी अजनबी वीरानो का..
सच भी लगे जूठा कभी.. ओर बन जाए इतिहास कभी बहानो का..

कभी बने दुश्मन ज़माना तेरा.. नायक बन जाए तू कभी अफ़सानो का...
चुप है अरसे से कभी तू.. कभी बन गया स्वर बेजुबानो का...

रख ताक़त बदलने की दुनिया,, ओर बन जा वजूद इन ज़मानो का..
रख भरोसा खुद पर अंजान,,, अक्स बना नयी पहचानो का..

डरे क्यों मुश्किलो से.. जब ज़िंदगी नाम है इम्तिहानो का..
पल में है खाली हाथ.. पल में तू मालिक ख़ज़ानो का..

Thursday, March 8, 2012

रंग ज़िंदगी के

कभी गम के रंगो में डूबा..
कभी खुशियो के रंग उड़ाए..
कभी मुस्कुराते हुए अधरो से..
आँखो की नमी छुपाए..
कई रंगो से रंग चुका हूँ..
ओर कई रंग अभी बाकी है..

कभी माँ के दुलार का रंग..
कभी पिता की फटकार का रंग..
रंग कभी भाइयो के प्यार का..
कभी कलाई पर बहन की राखी का रंग..

दोस्तो के संग कभी उल्लास के रंग..
बिछड़ने के एक अहसास का रंग..
साथ बैठ कहीं झगड़ने का रंग..
कभी ग़लतियो को भूलने का रंग..

रंग कभी मीत से मिलने का..
कभी बिन माँगी जुदाई के रंग..
कभी साथ छोड़ उसके दूर जाने का रंग..
कभी सब कुछ भूल पास आने का रंग..

कभी मिला रंग एक नाकामयाबी का..
कभी शिखर पर पहुँचने का रंग..
रंग कभी ज़िंदगी के थपेड़ो का..
कभी एक उँची उड़ान का रंग..

कई रंगो से रंग चुका हू..
ओर कई रंग अभी बाकी है..
हर पल बदल रहा है रंग मेरे चेहरे पर..
अभी असली रंग दिखना बाकी है...

Thursday, March 1, 2012

कुछ बाते

१) 

थम कर कुछ पल जब...ख्वाब फिर से कोई बुनता हूँ..अक्सर खो जाता हू पुरानी कुछ यादो मे.. बस फिर क्या ख्वाब ओर क्या मोहब्बत, सब एक सूखी बंजर ज़मीन का टुकड़ा नज़र आता है.. मेघो से बैर रखा जिसने पर बरसो इंतज़ार किया हो बारिश का.. ओर फिर निकल पड़ता हू बिना किसी हरे जंगल की आरजू के..


 २)

रात के अंधेरे मे जहाँ कितने ही फूल मुरझा जाते है.. ओर सुबह जन्म लेती है कुछ नयी कोंपले... बगीचा कभी महकना नही छोड़ता.. एक संदेश छोड़ता है अपनी हर खुश्बू के साथ.. नाकाम हुई कोशिशे तेरी तो क्या हुआ अपने सपनो को जीना सीख.. गम मिले है जो तुझे.. हँसी के प्यालो में उन्हे पीना सीख



३)

आँसू है आज किसी की पलको पर.. उम्मीदे आँखो के गहराई मे नज़र आ रही है.. ज़िंदा हू मैं.. सिर्फ़ इसलिए नही की धड़कने चल रही है.. पर एक लक्ष्य है सामने.. पलको के उन आँसुओ को हाथो की अंजलि में थाम कर रखना है.. नक्शा जो बना है उन आँखो मे.. अभी इमारत उसे बनना है...


४)

सो जाता है अक्सर गहरी नींद मे.. अनजान पल पल बदलती दुनिया से... घूमता एक अलग ही दुनिया में.. जहाँ चल रहा है तू साथ साथ.. हंस रही है ज़िंदगी जहाँ पर.. भूलता अंतर सपनो ओर हक़ीकत में.. काश मैं वहीं रह पता.. काश..


५)

बेख़बर हूँ की ज़िंदगी के इस सफ़र में जाने किस चौराहे पर वो मुलाकात होगी तुझसे,,, कितने ही रास्ते काटे है तन्हा सिर्फ़ जिसके लिए.. छुपा का रखना मोतियो को पलको की सीपियो मे.. शिकवे हो या मोहब्बते.. बयान करेंगे हाल ए दिल एक दूजे का.... आज की अवस्था तो बस ये है कि जो रास्ते चुने है हमारे नसीब ने हमारे लिए,, चलना तो होगा उनपर मुस्कुराकर ही.. बस वो मुस्कुराहट अपनी नही ..


६)

कभी जो धड़कता था सीने मे धड़कन बन कर.. गुमशुदा है वो अब... ना जाने कब से धड़कन के आभास से अनजान है. तन्हाई मे खोया है वो कुछ इस तरह की दुआ में भी बस दर्द ही माँगता है. ओर मखौल देखो कि दर्द भी आता है एक खुशी का लिफ़ाफ़ा पहन कर...


७)

लम्हे थे कुछ मेरी ज़िंदगी के.. जिन्हे भूलना चाहा तो सही.. पर कभी भुला नही पाया... ओर आज जब झकझोरा उन लम्हो ने फिर से... समझ आया कि वो लम्हे तो थे किसी ओर की ज़िंदगी के.. बस था नसीब तेरा जो वो तेरी ज़िंदगी का हिस्सा बने... ओर आज आलम ये है की ना वो नसीब मेरा है ओर ना वो लम्हे मेरे है.. बस चल रहा हू भटकते हुए.. किसी अजनबी की तलाश मे..    



अमन बेरीवाल 'अनजान'




Saturday, February 25, 2012

कभी तो गरज तू

कभी तो गरज तू
कभी बरस भी जा
सहने  की जो फ़ितरत है  तेरी
कभी तो उससे बाहर भी आ..

क्यों रोका है  उमँगो को
उड़ने दे बिना डोर पतंगो को
कर यकीन थोडा  सा हवाओ पर भी
उड़ने दे इन पागल रंगो को

तू मचल जा अब एक तूफान सा
बदल दे तकदीर का लिखा आज..
बहने दे मन को एक वेग से..
हवाओ को भी बहना सिखा आज

अद्भुत आनंद

प्यासी धरती
बात जोहती एक आगमन का
देखा होगा तुमने भी
आनंद उसकी आँखो में
नीर बरसता जब आकाश से

ठीक वैसे ही
मैं अधीर था
तेरे आगमन की प्रतीक्षा में
आज जब तुम मिले हो
अनुभूति हुई है अद्भुत एक आनंद की

Tuesday, February 21, 2012

मौसम चुनाव का

मौसम फिर से आया है..
गली गली घूम कर आने का..
चलो वोटो के बहाने ही सही
अपनी प्रजा से मिल कर आने का,,,

पूछेगा कोई हमसे..
क्यों तुम मारू के मेघ हुए.
वादा किया था सुध लेने का..
वृधा गये पर तेरे इंतेज़ार मे

समझा देंगे उन नादानो को
व्यस्त थे हम अपने निवास मे
32 रुपय मे चले दिन तुम्हारा.
बस उसी के एक प्रयास मे

रोटी हम दे या ना दे पाए..
आरक्षण हम तुम्हे दिलाएँगे..
ठिकाना नही है जहाँ बिजली की रोशनी का..
'आकाश' हम तुम तक पहुँचाएंगे

हम है राजा यहाँ पर..
अपना राज धर्म निभाते है..
प्रजा सोए भूखी यहाँ
पर अपना मुद्राकोष बढ़ाते है

Monday, February 20, 2012

बदलाव

क्या किसी ध्वनि ने तुम्हारे
कर्ण पटल पर दी थी दस्तक
जब छिन्न भिन्न हुआ था व्योम
उसकी एक ललकार से..

क्या तुम जागे थे अपनी चिरनिद्रा से
स्वप्न बुन रहे थे तुम जहाँ
परदेसी देश बनाने का..
ख्याली बदलाव की बयार से..

कोसते हो तुम जब
अपनी हालत अपनी व्यवस्था को
सुईया चुभती है ऐसे..
घाव बने हो तलवार के प्रहार से.

कर सकते हो युध जब..
मिलकर स्वार्थी आरक्षण का..
क्यों नही तुम एक जुट हुए..
नयी क्रांति के विचार से..

बदलना है यदि ये देश..
अपनी सीमित सोच को बदलना होगा
निज हित को पीछे छोड़..
कदम मिलाकर चलना होगा..

भूलना होगा भेद धर्म ओर जाति का..
जन मानुस को भीड़ मे बदलना होगा
तपती धूप हो या निर्मल चाँदनी
नंगे पाँव उस पर चलना होगा..

Thursday, February 16, 2012

कोशिश करता मैं एक दर्द बाँटने की..

समझते तुम मैं लिखता कविता..
कोशिश करता मैं एक दर्द बाँटने की..

धड़कनो के इस अकेलेपन को..
कोशिश करता सहारे कलाम के काटने की..

गुज़र चुका है जो सपनो मे ही
कोशिश करता उन लम्हो को छांटने की..

बिखर चुका है जो कानो मे.
कोशिश करता सूत मे उसे फिर से बाँधने की..

समझते तुम मैं लिखता कविता..
कोशिश करता मैं एक दर्द बाँटने की..

Friday, February 10, 2012

रिश्ता दोस्ती का


सफ़र पर जब चले तन्हा..
छूटा आसरा रिश्तो का..
बढ़ना तो तन्हा ही था..
पर सहारा मिला चंद दोस्तो का..


अजनबी थे मिले जब पहली बार..
पर एक दूसरे के लिए सब अज़ीज बने..
कट गया सफ़र कॅंटो का फूलो की तरह.
रूप बदल आए जब वो फरिश्तो का..

अहसास खुशियो का उनसे ही आया
टपकते आँसुओ ने कंधा उनका ही पाया..
बरसे वो घनघोर तेरी ग़लतियो पर.
हर मान बैठा जब आसरा उनसे ही पाया..

रिश्ता है दोस्ती का पवित्र गंगा सा..
नाम ज़रूरत रख ना इसे बदनाम करो..
जैसे पूजते हो विरासत मे मिले रिश्तो को..
वैसे ही इसका भी सम्मान करो.

नीला समुंदर

कोई पार ले चले मुझे..
आँखो के इस नीले समुंदर से..
डर लगता है कहीं
इसकी गहराई मैं डूब ना जाऊ..

आवरण है जो पलको को इस पर..
सहारा है डूबते तिनके का वो..
पर छुपना इस समुंदर का कवच मे
मैं सह वो भी ना पाऊ..

नशीला इतना ये नीलम है..
बिखर रहा पानी मे आग सा..
डर लगता है कहीं..
इसके नशे से बहक ना जाऊ..

डूबने के इस भय से..
सोचा जो निगाहे फेरने का..
पल मे मैं ये महसूस हुआ
कि इसके बिना मैं जी ही ना पाऊ

Monday, February 6, 2012

फ़र्क

बात यदि करते हो उड़ने की तो
उड़ तो मैं भी रहा हू..
फ़र्क सिर्फ़ इतना है की
तुम उड़ रहे हो पंख लगा कर ..
और मैं उड़ रहा हू
टहनी से टूटे सूखे पत्ते की तरह,,,,


बात करते हो चलने की तो..
चल तो मैं भी रहा हू..
फ़र्क सिर्फ़ इतना है की
तुम चल रहे हो नयी मंज़िलो की राह पर
और मैं नाप रहा हू रास्ता.
अजनबी राहो का अंजान की तरह.


बात करते हो जो तुम जीने की तो
जी तो मैं भी रहा हू
फ़र्क सिर्फ़ इतना है की
जी रहे हो ज़िंदगी तुम ख्वाबो मे खोए हुए
ओर ज़िंदगी मेरी काट रही है कुछ यू की
नींद आती है बस एक मूर्छा की तरह..

Thursday, January 19, 2012

फरियाद माटी की

प्यार ही करना है
तो करो अपने देश की माटी से..
करो गे जब तक मोहब्बत
ये तुम्हारे माथे पर
जीत का तिलक लगाएगी..
ओर जो हो गये कुर्बान कभी
अपनी ममतमयी गोद मैं
प्यार से तुम्हे सुलाएगी..


प्यार ही करना है
तो करो अपने देश की माटी से..
दिया है इसने आँगन तुम्हे
जहाँ तुमने अपना बचपन बिताया
ज़रूरत थी जब आशियाने की
इसी धरती पर तुमने था घर बसाया

भूख जब लगी तुम्हे..
इसका सीना चीर तुमने अनाज उगाया..
जब आई नींद थक हार कर..
सिरहाना मखमल का इससे ही था पाया

ऋणी हो तुम उतने ही
जितनी तुमने यहाँ साँसे बिताई है..
नही चुका पाओगे मोल इस ममता का..
ये तो तुम्हारी नस नस मे समाई है..


आन पड़ी है आज फिर..
उन शब्दो के ज़िक्र की..
लिखे थे जो शहीदो ने..
माटी की जिन्होने फ़िक्र की

नही मांगती ज़िंदगी तेरी ये माटी
बदले अपने अहसानो के..
बस करती है आज एक फरियाद
बेच ना देना इसे फिर से
हाथ मे किन्ही बेगानो के..

Sunday, January 15, 2012

बचपन

दिन वो बड़े सुहाने थे..
जब रूठते थे हम झूठ से
छोटी छोटी बात पर..
ओर माँ मनाती गोद मे बिठाकर,,
पूछती आसुओं को अपने आँचल से..


ना थी कोई फ़िक्र कल की,,
ना कोई स्पर्धा हर पल की..
मस्ती मे कटते थे दिन..
इंतज़ार  बस रात का होता था,,
जब चंदा मामा झाँकता बादल से..


झगड़ते थे जब हम किसी से
छोटी सी किसी बात पर..
मासूम थे हम दिल से फिर भी.
शिकायत ना थी कभी..
झूमते थे फिर उसकी एक आवाज़ से..

आगे बढ़ने की चाह में
देखो हम कहाँ आ गये है..
रूठे है तो कोई मनाने  वाला नही..
झगड़े तो कोई लौट कर आने वाला नही..
इंतज़ार अब सिर्फ़
लम्हो के गुज़रने का होता है..
जब बचपन था इतना अच्छा तो
इंसान क्यों बड़ा होता है...


पिता की उंगली हमेशा 
तुम्हारा हाथ जहाँ पकड़े थी..
माँ की कहानियाँ वो..
सुंदर सपनो मे तुम्हे जकड़े थी..
आज हम खड़े है उस जगह
लंबी राते जाग कर बिताते है..
हर पल एक बेहतर ज़िंदगी के लिए..
आँखे हो नम पर झूठमूठ मुस्कुराते है

Saturday, January 14, 2012

आस

मौसम मे सर्द हवाओ के
कंपकपाता पिंजर..
खड़ा है सामने डॅट कर.
आस उसे तब भी है एक धूप की..

हार नही मान सकता वो..
क्या हुआ जो चंद लम्हो के लिए..
एक किरण उससे ना टकराए..
आस उसे तब भी है एक धूप की..

प्रचंड होती तीव्रता ..
जमा देती बहते लहू को भी..
झुकना उसे तब भी मंजूर नही है
आस उसे तब भी है एक धूप की..


लड़ता वो बिना किसी हथियार के..
ना कोई साथी ना आसरा.
साथ छोड़ती साँसे हर लम्हे के साथ..
आस उसे तब भी है एक धूप की..

Friday, January 6, 2012

साथ तकदीर ने भी निभाया है

जब सामने देखा
जो आईने मे
साया जो नज़र आया है

जाना पहचाना है कुछ ये
गिर कर उठने की अदा से
वजूद खोया हुआ पाया है

है अनुभव ज़िंदगी
का ये हसीन
वक्त ने बड़े नाज़ो से सिखाया है

भूल गया था जो
मैं खोकर किसी को.
नसीब ने वापिस याद दिलाया है

यकीन नही था कभी
अपनी इस तकदीर पर
आख़िर साथ आज उसने भी निभाया है

Thursday, January 5, 2012

दोस्ती

नही हिसाब किसी फ़ायदे नुकसान का..
नही है कोई सौदा ये दोस्ती...

रंग घोलती ज़िंदगी के पटल पर
मानो अक इंद्रधनुष है दोस्ती

जहाँ छोड़ता साथ तेरा साया भी..
उन अंधेरो का प्रकाश है दोस्ती

खुशियो का कराती अहसास हर पल..
साथ ज़िंदगी का निभाती है दोस्ती..

कुछ पल ज़िंदगी के

कुछ पल ज़िंदगी के
बस ओर उधार दे दो

बिछड़े है जो अपनो से
कभी उन्हे भी प्यार दे दो

सशक्त हो तुम वो है मज़बूर
खुशियो का कभी उन्हे उपहार दे दो..

महके दुनिया खुश्बुओ से उनकी भी
उन्हे जीने का अधिकार दे दो..

Sunday, January 1, 2012

नाम तेरा

रख जब नाम तेरा एक ख्वाब..
हज़ारो टुकड़ो मैं शीशा वो बिखर गया...

रखा जब नाम तेरा दौर खुशियो का..
चाँद लम्हो के दरम्यान वो गुज़र गया...

रखा जब नाम तेरा मोहब्बत..
कुछ पल के लिए मन मेरा निखार गया

रखा जब नाम तेरा ज़िंदगी..
आया ना वक़्त मेरा पर मैं मर गया...

तुम हो ज़िंदगी की राह..

तुम एक महकता गुलिस्ताँ
मैं तो कॅंटो का उजड़ा जाल हू 

तुम बरसता बादल किसान का..
मैं उसका अनचाहा अकाल हू..

तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..



तुम हो सुरम्यी नज़म
मैं तो बिगड़ी एक ताल हू..

तू पंक्ति किसी की कविताओ की..
मैं बिखरे शब्दो का जाल हू..


तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..



सपना हो तुम किसी की आँखो का
मैं तो बस एक नकली मायाजाल हू..

आवाज़ हो तुम किसी की ज़ुबान की..
मैं तो एक मूक के मन का हाल हू..

तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..



जवाब तुम किसी की सवालो का..
मैं तो खुद ही एक सवाल हू

तुम हो ज्योति सूरज की..
मैं रात का घना अंधकाल हू

तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..

आज की महाभारत

आज की इस महाभारत मैं..
हर कोई दुर्योधन नज़र आता है..

कृष्ण तो बन जाता है युध मे कोई
पर अर्जुन ना कहीं नज़र आता है..

चीर जब खींचता द्रोप्दि का..
कृष्ण आँख मूंद धीर्तरास्ट्र बन जाता है...

जब बात आए प्रतिग्या की..
तोड़ उसे भीष्म आगे बढ़ जाता है..

क्या ग़लत ओर क्या सही..
यहाँ हर कोई कौरव ही नज़र आता है..


चीर जब खींचता द्रोप्दि का..
कृष्ण आँख मूंद धीर्तरास्ट्र बन जाता है...

नववर्ष पर बधाई

नववर्ष के शुभ आगमन पर..
सबको हार्दिक बधाई,,

याद रखना बीते पल खुशियो के..
भूल जाना थी जो रुसवाई...


करता हू कामना एक नयी शुरुआत की..
ख़त्म हो इस संसार से सब बुराई..

भूखा ना सोए अब कोई इंसान..
ख़त्म हो अब ये महँगाई..

फले फूले ओर जिए सब चैन से...
बहे हर सुबह  एक मीठी पुरवाई

नववर्ष के शुभ आगमन पर..
सबको हार्दिक बधाई,,