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Thursday, January 19, 2012

फरियाद माटी की

प्यार ही करना है
तो करो अपने देश की माटी से..
करो गे जब तक मोहब्बत
ये तुम्हारे माथे पर
जीत का तिलक लगाएगी..
ओर जो हो गये कुर्बान कभी
अपनी ममतमयी गोद मैं
प्यार से तुम्हे सुलाएगी..


प्यार ही करना है
तो करो अपने देश की माटी से..
दिया है इसने आँगन तुम्हे
जहाँ तुमने अपना बचपन बिताया
ज़रूरत थी जब आशियाने की
इसी धरती पर तुमने था घर बसाया

भूख जब लगी तुम्हे..
इसका सीना चीर तुमने अनाज उगाया..
जब आई नींद थक हार कर..
सिरहाना मखमल का इससे ही था पाया

ऋणी हो तुम उतने ही
जितनी तुमने यहाँ साँसे बिताई है..
नही चुका पाओगे मोल इस ममता का..
ये तो तुम्हारी नस नस मे समाई है..


आन पड़ी है आज फिर..
उन शब्दो के ज़िक्र की..
लिखे थे जो शहीदो ने..
माटी की जिन्होने फ़िक्र की

नही मांगती ज़िंदगी तेरी ये माटी
बदले अपने अहसानो के..
बस करती है आज एक फरियाद
बेच ना देना इसे फिर से
हाथ मे किन्ही बेगानो के..

Sunday, January 15, 2012

बचपन

दिन वो बड़े सुहाने थे..
जब रूठते थे हम झूठ से
छोटी छोटी बात पर..
ओर माँ मनाती गोद मे बिठाकर,,
पूछती आसुओं को अपने आँचल से..


ना थी कोई फ़िक्र कल की,,
ना कोई स्पर्धा हर पल की..
मस्ती मे कटते थे दिन..
इंतज़ार  बस रात का होता था,,
जब चंदा मामा झाँकता बादल से..


झगड़ते थे जब हम किसी से
छोटी सी किसी बात पर..
मासूम थे हम दिल से फिर भी.
शिकायत ना थी कभी..
झूमते थे फिर उसकी एक आवाज़ से..

आगे बढ़ने की चाह में
देखो हम कहाँ आ गये है..
रूठे है तो कोई मनाने  वाला नही..
झगड़े तो कोई लौट कर आने वाला नही..
इंतज़ार अब सिर्फ़
लम्हो के गुज़रने का होता है..
जब बचपन था इतना अच्छा तो
इंसान क्यों बड़ा होता है...


पिता की उंगली हमेशा 
तुम्हारा हाथ जहाँ पकड़े थी..
माँ की कहानियाँ वो..
सुंदर सपनो मे तुम्हे जकड़े थी..
आज हम खड़े है उस जगह
लंबी राते जाग कर बिताते है..
हर पल एक बेहतर ज़िंदगी के लिए..
आँखे हो नम पर झूठमूठ मुस्कुराते है

Saturday, January 14, 2012

आस

मौसम मे सर्द हवाओ के
कंपकपाता पिंजर..
खड़ा है सामने डॅट कर.
आस उसे तब भी है एक धूप की..

हार नही मान सकता वो..
क्या हुआ जो चंद लम्हो के लिए..
एक किरण उससे ना टकराए..
आस उसे तब भी है एक धूप की..

प्रचंड होती तीव्रता ..
जमा देती बहते लहू को भी..
झुकना उसे तब भी मंजूर नही है
आस उसे तब भी है एक धूप की..


लड़ता वो बिना किसी हथियार के..
ना कोई साथी ना आसरा.
साथ छोड़ती साँसे हर लम्हे के साथ..
आस उसे तब भी है एक धूप की..

Friday, January 6, 2012

साथ तकदीर ने भी निभाया है

जब सामने देखा
जो आईने मे
साया जो नज़र आया है

जाना पहचाना है कुछ ये
गिर कर उठने की अदा से
वजूद खोया हुआ पाया है

है अनुभव ज़िंदगी
का ये हसीन
वक्त ने बड़े नाज़ो से सिखाया है

भूल गया था जो
मैं खोकर किसी को.
नसीब ने वापिस याद दिलाया है

यकीन नही था कभी
अपनी इस तकदीर पर
आख़िर साथ आज उसने भी निभाया है

Thursday, January 5, 2012

दोस्ती

नही हिसाब किसी फ़ायदे नुकसान का..
नही है कोई सौदा ये दोस्ती...

रंग घोलती ज़िंदगी के पटल पर
मानो अक इंद्रधनुष है दोस्ती

जहाँ छोड़ता साथ तेरा साया भी..
उन अंधेरो का प्रकाश है दोस्ती

खुशियो का कराती अहसास हर पल..
साथ ज़िंदगी का निभाती है दोस्ती..

कुछ पल ज़िंदगी के

कुछ पल ज़िंदगी के
बस ओर उधार दे दो

बिछड़े है जो अपनो से
कभी उन्हे भी प्यार दे दो

सशक्त हो तुम वो है मज़बूर
खुशियो का कभी उन्हे उपहार दे दो..

महके दुनिया खुश्बुओ से उनकी भी
उन्हे जीने का अधिकार दे दो..

Sunday, January 1, 2012

नाम तेरा

रख जब नाम तेरा एक ख्वाब..
हज़ारो टुकड़ो मैं शीशा वो बिखर गया...

रखा जब नाम तेरा दौर खुशियो का..
चाँद लम्हो के दरम्यान वो गुज़र गया...

रखा जब नाम तेरा मोहब्बत..
कुछ पल के लिए मन मेरा निखार गया

रखा जब नाम तेरा ज़िंदगी..
आया ना वक़्त मेरा पर मैं मर गया...

तुम हो ज़िंदगी की राह..

तुम एक महकता गुलिस्ताँ
मैं तो कॅंटो का उजड़ा जाल हू 

तुम बरसता बादल किसान का..
मैं उसका अनचाहा अकाल हू..

तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..



तुम हो सुरम्यी नज़म
मैं तो बिगड़ी एक ताल हू..

तू पंक्ति किसी की कविताओ की..
मैं बिखरे शब्दो का जाल हू..


तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..



सपना हो तुम किसी की आँखो का
मैं तो बस एक नकली मायाजाल हू..

आवाज़ हो तुम किसी की ज़ुबान की..
मैं तो एक मूक के मन का हाल हू..

तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..



जवाब तुम किसी की सवालो का..
मैं तो खुद ही एक सवाल हू

तुम हो ज्योति सूरज की..
मैं रात का घना अंधकाल हू

तुम हो ज़िंदगी की राह..
ओर मैं बस एक मौत का ख्याल हू..

आज की महाभारत

आज की इस महाभारत मैं..
हर कोई दुर्योधन नज़र आता है..

कृष्ण तो बन जाता है युध मे कोई
पर अर्जुन ना कहीं नज़र आता है..

चीर जब खींचता द्रोप्दि का..
कृष्ण आँख मूंद धीर्तरास्ट्र बन जाता है...

जब बात आए प्रतिग्या की..
तोड़ उसे भीष्म आगे बढ़ जाता है..

क्या ग़लत ओर क्या सही..
यहाँ हर कोई कौरव ही नज़र आता है..


चीर जब खींचता द्रोप्दि का..
कृष्ण आँख मूंद धीर्तरास्ट्र बन जाता है...

नववर्ष पर बधाई

नववर्ष के शुभ आगमन पर..
सबको हार्दिक बधाई,,

याद रखना बीते पल खुशियो के..
भूल जाना थी जो रुसवाई...


करता हू कामना एक नयी शुरुआत की..
ख़त्म हो इस संसार से सब बुराई..

भूखा ना सोए अब कोई इंसान..
ख़त्म हो अब ये महँगाई..

फले फूले ओर जिए सब चैन से...
बहे हर सुबह  एक मीठी पुरवाई

नववर्ष के शुभ आगमन पर..
सबको हार्दिक बधाई,,