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Saturday, December 31, 2011

जन्नत से अज़ीज है तू..

तुझे खो कर पाया है जो..
दुनिया की नज़र मैं जन्नत हैं

जन्नत से अज़ीज है तू..
मेरी दुआओ की मन्नत है..

उलझानो मे हू कि
हाल ए दिल बयाँ कैसे हो

कसम्कश है सब कह देने की पर.
चाँद लॅफ्ज़ो मे ये बयाँ कैसे हो...

नही भूल पाता हू आज भी..
तुम्हारा वो धीरे से मुस्कुराना..

मुझको अपने इंतेज़ार मैं जगा कर..
खुद गहरी नींद सो जाना...

किसे बताऊ अब मैं बाते अपनी..
किसकी बातो को सांसो की रवानी बनाऊ

किसे बनाऊ चैन अब आँखो का
किन मुलाक़ातो की अब एक कहानी बनाऊ


तुझे खो कर पाया है जो..
दुनिया की नज़र मैं जन्नत हैं

जन्नत से अज़ीज है तू..
मेरी दुआओ की मन्नत है..

Thursday, December 29, 2011

जो होता पास तू मेरे..


जो होता पास तू मेरे..
दिन गुज़रता..
पकड़े तेरा हाथ
तस्वीर होती आँखो मे हर शाम
सपनो का बिस्तर पर जब सोता

जो होता पास तू मेरे..
ना होती सुबह..
इतनी अकेली..
ना हर शाम..
चुपके से मैं कहीं रोता..


जो होता पास तू मेरे..
जीता मैं भी
हर पल एक नयी मौज़ से.
मरने से पहले
यू एक लाश ना बना होता..


जो होता पास तू मेरे..

Monday, December 26, 2011

अभी तो मुझे बहुत दूर जाना है..

ज़िंदगी का यूँ साथ निभाना है..
अभी तो मुझे बहुत दूर जाना है..

वादे किए थे किसी से जो..
अभी तो मुझे उनको निभाना है..

चला था जब घर से कल
देखा था एक सपना किसी के पलको पर

थाम कर रखना है उसे आँखो मे
उस सपने को अभी पूरा कर दिखना है..

कैसे थम जाऊ अभी से..
कर्ज़ है अभी बाकी कुछ मुझ पर

मिला है जो अब तक इस ज़िंदगी से
अभी उस का एक मोल चुकाना है..


ज़िंदगी का यू साथ निभाना है..
अभी तो मुझे बहुत दूर जाना है..

Sunday, December 25, 2011

बस कुछ दूर ओर

सन्नाटा है पैर फैलाए हुए..
ना कोई कसक है ना कोई आवाज़..

खामोशी इतनी है की..
हवा भी सुनाई देती है.....
 
 
बस कुछ दूर ओर..
एक रोशनी नज़र आती हुई..

अंधेरे के आँचल से झाँकती हुई..
एक परछाई दिखाई देती है..

बस कुछ दूर ओर..
कोई मुझे पुकारता हुआ,,

उड़ाती सन्नाटे के बिखरे बादल को..
एक आवाज़ सुनाई देती है..

मिला दे कोई उस परछाई से
मिला दे कोई उस आवाज़ से

नसो मे जो घुलती हुई..
लहू बन बहती दिखाई देती है

बुनियाद

लड़ते है सब धर्म के नाम से..
भला कहीं धर्म भी बुरा होता है..
कसूर नही है ये किसी धर्म का..
स्वार्थ तो इंसान का ही बुरा होता है


कमजोर कहते हम दूसरो की बुनियाद को..
नीचा दिखाते दूसरो के मान को..
कमज़ोर नही बनती बुनियाद कभी ज्ञान की..
यकीन उस पर इंसान का ही कमज़ोर होता है..

खो देगा इस वजूद तू अपना ..
बदलने मे जो अब देर लगाई..
रखना नज़रिया अपना कुछ इस तरह की
मिटा दे जो फ़ासले सब वो ही सच्चा इंसान होता है..

Saturday, December 24, 2011

आभार

कफ़न जब आए चेहरे पर..
आँखे मेरी खुली रखना.

देख सकु जाते जाते मैं.
कौन मेरा अपना था..
किसकी आँखो का मैं सपना था..


झुका सकु पलके मेरी..
उनके सामने जो मेरे लिए खास थे..
मुश्किलो मे मेरी वो आस थे..

छोड़ सकु पैगाम एक नाम उनके
जो मेरे जाने का दुख मनाएँगे..
मेरे मृत देह पर उनके आँसू छलक जाएँगे,,,


कफ़न जब आए चेहरे पर..
आँखे मेरी खुली रखना.

देख सक चमकते उस सूरज को..
जिसने हर पल जीना का अहसास कारया..
पर सच मौत का भी उसने हर शाम सबको समझाया..


करू आभार उस जीवन का मैं..
जिसने मुझे मेरे अपनो से मिलाया ओर.
जाते जाते जहाँ मुझको परायो ने भी अपनाया..

सच है ये की
उमर दुश्मनी की ज़िंदगी से बड़ी नही होती..
कर लो दोस्ती सब से जीते जी..
मरते वक़्त हाथ मिलाने की घड़ी नही होती..

Tuesday, December 20, 2011

धड़कता दिल आज भी है

नामो के इस हुज़ूम के बीच
एक नाम एक ऐसा भी..
सुनके जिसे.
धड़कता दिल आज भी है..


लंबी इन रातो की.
पल पल बढ़ती हुई
तन्हाई से
तड़पता दिल आज भी है..


धड़कनो के खामोशी के,,
बीच आती अचानक एक
आहट से
बहकता दिल आज भी है..


ठंडी पड़ चुकी सांसो से.
आती खुश्बू जब तेरे
यादो से
धड़कता दिल आज भी है ..

इन रास्तो का ज़िक्र नही करता


दिल चाहता है कि
तेरे आवाज़ से एक
स्वर चुरा लू..

खोकर तेरी आँखो मे
तेरे दिल मैं
अपनी जगह बना लू..

पर डर लगता है,,
मोहब्बत की इन गलियो मे अब

कि कहीं चलु मैं एक
नयी ज़िंदगी के लिए ओर
रास्ते मैं अपनी कब्र बना लू..


मत समझना तू ये
मैं तेरी चाहत की
कद्र नही करता..

तेरी उस बेदाग
मोहब्बतो की मैं
फ़िक्र नही करता

पर रोया था मैं
कभी इतना इन्ही रास्तो पर की.

सफ़र मैं अब अपने
इन रास्तो का ज़िक्र नही करता..

Tuesday, December 13, 2011

कविता..

चंद शब्दो का शब्द जाल नही..
किसी के दिल का हाल है कविता..

कभी बीता कल किसी का
कभी नया एक ख़याल है कविता..

देती जवाब कई सवालो का कभी..
ओर स्वयं एक सवाल है कविता...

तलवारो से तेज़ी है कभी.
ओर कभी मजबूत ढाल है कविता..

सच से रूबरू करती कभी..
कभी बनती एक मायाजाल है कविता..

किसी की बेवफ़ाई की दास्तान ओर..
किसी की चाहतो की ताल है कविता..



चाँद शब्दो का शब्द जाल नही..
किसी के दिल का हाल है कविता..


Monday, December 12, 2011

लगता किसी तूफान के आने की आहट है..


खामोशियाँ फैली है सब ओर.
लगता किसी तूफान के आने की आहट है..

जलता है जहान ये अंगारो पर..
लगता प्रकति की ये बग़ावत है..

धधकता लावा ज्वालामुखियो का..
पिघलती पल पल हिम की जमावट है..

डूबते किनारे अब तेज़ी से यू
बदलती हर पल सागर की बनावट है..


खामोशियाँ फैले है सब ओर.
लगता किसी तूफान के आने की आहट है..

वक़्त है तू मेरा गुज़रा हुआ..

वक़्त है तू मेरा गुज़रा हुआ..
बसा लिया तुझको मेरी यादो मे

छुपा के रखा है तुझको ऐसे.
गुलाब रखते है जैसे किताबो मे..

नाम सुनके तेरा किसी के लफ़ज़ो मे
आता है एक तूफान जैसे मेरी सांसो मे..

कोशिश करता सुनने की तेरी आवाज़ फ़िज़ा मे.
मुलाकात होती रोज़ तुझसे मेरे ख्वाबो मे..

सोच

झील के किनारो पर
बैठा जब कभी सोचता
श्रुन्खला अल्फाज़ो की
बन जाए आवाज़ जो
बिखरते इस ज़माने की


जम चुका है कहीं
समय के साथ साथ..
अहसास कुछ कर जाने का
सोचता एक अग्नि जो
आस दिखाए उसे सुलगाने की


खोजता परछाई जो
साया बन जाए
गिरते हमारे ज़मीर का
संभाले उसे हर ठोकर पर..
कला बताए गिर कर उठ जाने की..


देखता दर्पण वो
दिखाए चेहरा सबको
अंधे इन रिवाज़ो का..
संवारे उनको एक नये रूप मे
कसमे बन जाए जो हो निभाने की..

Sunday, December 11, 2011

यू तो कोई गम नही है

तुम नही हो यू तो कोई गम नही है
पर जो थे हम अब वो हम नही है..


उड़ रहे हो तुम अपने प्यार की वादियो मे
ओर मेरे पँखो मे अब कोई दम नही है..

आता नज़र चेहरा मेरे मुस्कुराता हुआ
पर गहराई मेरे दर्द की कम नही है..


गुजर रहा है सफ़र ज़माने की भीड़ मे
पर भरते तन्हाई के जख्म नही है..

लिखता है नजमे आज भी अंजान यू तो..
लिख दे कहानी तेरी जो वो अब कलम नही है

तुम नही हो यू तो कोई गम नही है
पर जो थे हम अब वो हम नही है..

देश

छलनी होता सीना एक माँ का..
मरते बेटे जब उसके सरहद पर..
छलकते आँसू है गर्व के दुख की जगह
वीर यात्रा निकलती जब चार कंधो पर..
इस दर्द को अपने माथे पर लगती है..
चिताओ की राख पर उनकी महकता देश बनाती है..



पर मर जाती है माँ जब..
बेटे उसे बाज़ारो मे नीलाम करते..
अपने ऐशो आराम के खातिर..
हर पल नये हथियारो से उसे लहू लुहान करते..
टपकती बूँद लहू की एक चिंगारी बन जाती है..
उड़ा कर सब कुछ धुओं मे एक जलता देश बनाती है..


संभाल जा ए मेरे देश के वासी..
ये सिर्फ़ धरती नही माँ है कुछ मतवालो की..
निकल पड़े है वो अब माँ के आन बचाने को..
फ़िक्र नही है उन्हे अब जीने मरने के ख्यालो की..
धुन जब देशभक्ति की दिलो मे आती है..
इतिहास बनता फिर एक नया ओर एक नया देश बनाती है


----
अंजान

Saturday, December 10, 2011

मोहब्बत बंजारो से

ना करना बंजारो से मोहब्बत ..
पिघलते देखा है पत्थर को अंगरो मे..


बुनते ख्वाब दिल की आवाज़ से..
जूझते देखा उनको तन्हाई के अँधियारो मे..


चले तैरने इस अजनबी समंदर मे
डूबते देखा उनको उफनती मझधारो माए

लगाई चिंगारी प्यार की दिल से
काँपते देखा उनको अक्सर ठंडे जाड़ो मे


लगाया है नकाब खुशियो का पर..
ठहराते देखा एक आँसू आँखो के किनारो मे..

--
अंजान

Friday, December 9, 2011

वापसी

कहते है वो हम फिर से मिल जाए..
जहाँ बिछड़े थे अभी तो हम वहीं है.
समझाता उनको मे बदले हुए रिश्तो को..
कि अब मैं भी मैं नही ओर तू भी तू नही है..


प्यार के गीत वो अब पुराने है..
मिट चुके वो बेकार जो अफ़साने है..
आप बात करते हो दिल म्व बसी मोहब्बत की..
पर हमारे लिए तो आप कब से बेगाने है..


दुहाई ना देना तुम मोहब्बत की..
हँसी अपनी ना रोक पाऊँगा..
कैसे जवाब दोगे तुम मेरे सवालो को..
कहानी तन्हा पल की जब तुम्हे बताऊँगा


नही है कोई ओर ज़िंदगी मे माना..
पर यकीन तुम पर अब आता नही है..
कसमे दो तुम मोहब्बत की कितनी भी
पर दर्द दिया जो तुमने वो जाता नही है..


तनहा रहा है हमेशा..
ओर ज़िंदगी तुम बिन ही निकल जाएगी..
पर पकड़ा हाथ जो मोहब्बतो का..
किस मोड़ पर जाने उंगली अंजान की फिसल जाएगी..

उड़ान स्वार्थ की


सवेरे जो उड़े परिंदे
नयी घोसलो की चाह मैं..
शाम तक आई याद लम्हो की..
बिताए जो पुराने घोसलो की राह मे

उड़ चुका है बहुत दूर तक..
पर सफ़र कहीं ख़त्म होता नही है.
थक जाता है अक्सर उड़ते उड़ते.
पर घोसलो की फ़िक्र मे सोता नही है..


अपनी स्वार्थ की उड़ान पर..
एक नया समा बनता...
उड़ता अपनी धुन मे इस तरह..
कि सब कुछ पीछे छोड़ता जाता

बना रहा है या बिगाड़ रहा है
ये कभी समझ ना पाता
या समझ कर भी बनता नासमझ
ओर अपनी दुनिया रोन्दता जाता

अरमान


चला था घर से जब
अरमान थे कुछ कर दिखाने के..
सामने थी ज़िंदगी चमकती हुई..
ओर इरादे आसमानो पर छा जाने के..

पर ज़िंदगी के थपेड़ो से..
धीरे धीरे ये समझ आया
मिलता नही सब कुछ सिर्फ़ अरमानो से..
चमकता है तारा वो
जिसने जलने का जिगर है पाया


किया एक फ़ैसला अंजान..
कि अब सोने सा तपना है..
अंधेरो मे भी तुझको अब
दीपक सा जलना है..

कांटो सी है ये ज़िंदगी..
ओर तुझको नंगे पांवा चलना है.
चुनौती हो चाहे कोई भी..
निडर होकर लड़ना है..


साथ मिलेगा तेरे होंसलो का जब,,
सर आसमानो का तू झुकाएगा..
मिट गया इन राहो पर तो क्या..
अंजान एक निशान अपना छोड़ जाएगा..

Thursday, December 8, 2011

आम इंसान

घर मे ना हो बेशक
रोटी दो वक़्त की.
खेत मे करता मेहनत..
दूसरो की भूख के लिए..
मेरे देश का किसान है वो..


सरहद की सलामती करता..
सोता नही कई रातो तक..
लड़ता अपने आखरी साँस तक.
ओर मरता देश के रसूख के लिए
मेरे देश का जवान है वो..


ओर फ़ितरत से भिखारी जो..
माँगता भीख वोटो की..
करता राज़ निरंकुश्ता से..
जीता सिर्फ़ अपने सुख के लिए..
मेरे देश को वो नेता महान है..


पल पल कोसता ओर झगड़ता..
सरकारी विभाग के तरीक़ो से..
घिसता सारी उमर एक उम्मीद मे
हर पल मरता वो जीने के लिए..
मेरे देश का वो आम इंसान है..

ख़ुदग़र्ज़

कहते है वो..
कोशिश नही की तुमने मुझे भूलने की..
इतनी तड़प तुम्हे ना हुई होती..
कसूर मेरा नही की
चाहा तुमने मुझको
पर ज़िंदगी कभी तो तुमने जी होती..

समझाओ कोई उस नादान को..
कहीं साँसे भी बिना धड़कन चला करती है.
जब होती है आरजू मिलने की.
भला आँखो मे नींद कहा बसा करती है..


कसूरवार ठहराते हर पल हमे जैसे वो
मेरी मोहब्बत का मानो मखोल बनाते..
खुश है गम हमको जुदाई का देकर वो..
ओर हमको ही ख़ुदग़र्ज़ बताते..


जब मिलने की एक गुज़ारिश की..
मानो उनसे उनकी ज़िंदगी माँग ली..
आया ना जवाब उनका .. ओर हमने
सपनो मे मुलाकात करने की था ली..

दूर हो तो दूर सही..
अहसास इश्क़ का काफ़ी है..
जागती आँखो को चाहे नज़र ना आओ..
सपने मे मिलना काफ़ी है

प्रलय

धुँआ बहता हवा मे अब..
ज्वालामुखी ये अब उफनता है...
जलती सतह रवि की पल पल..
ठंडा ये हिमालय अब पिघलता है..

हर लम्हा फटती ज़मीन..
दरारे कभी छोड़ जाती है..
जहाँ थी हँसती सभ्यता..
मंज़र तबाही का वहाँ छोड़ जाती है..

उफनता सागर..
सबब प्रलय का बन जाता है..
लहरे लगती है कोई दुश्मनी निकलती.
सब कुछ डूबा हुआ नज़र आता है..

फटता व्योम सिर्फ़ कुछ हवाओ से.
बरसता ही जाता है..
बिना रुत के गिरता हिम..
बस एक डर कहीं घर कर जाता है..

Wednesday, December 7, 2011

देश मेरा


समझ सको तो समझो इसको..
देश ये मेरा बड़ा अजीब है..
दूरीया हो चाहे समुन्देरो की
पर दिल एक दूसरे के करीब है..


ईद मुबारक कहते हम सारे
मनती खुशिया दीवाली की शोर से..
खीर बनती गुरुपर्व पर.
मनाते होली बड़े ज़ोर से..


होंसला आगे बादने का हर नज़र मे
ओर मिले जो उसे मानते अपना नसीब है..
समझ सको तो समझो इसको..
देश ये मेरा बड़ा अजीब है..


विज्ञान को हम देते चुनोती..
ओर रस्मो भी अपनी निभाते है..
खोजते भगवान की मूरत पत्‍थर मे..
ओर दिए नदियो मे बहाते है..


चाँद पर पहुँच चुके है..
ओर ताक़त की एक नयी उचान है..
गुरूर नही करते इस पर भी..
रखते हर इंसान का मान है..

कमिया मेरे देश मे लाख सही..
दुनिया को एक नयी राह दिखाते है..
आती जब विपदा कहीं पर..
मदद करने हम पहुँच जाते है..


समझ सको तो समझो इसको..
देश ये मेरा बड़ा अजीब है..
दूरीया हो चाहे समुन्देरो की
पर दिल एक दूसरे के करीब है..

अंजान

किसी के लिए मैं हू एक सवाल..
ओर किसी के लिए हर सवाल का ज्वाब हू...

बनता सबब नफ़रत का किसी के लिए..
ओर किसी का पूरा होता ख्वाब हू..

जो ना समझे उसके लिए हूँ अंजान
समझे जो उसके लिए खुली किताब हू..

कभी आवारा पंछी सा बेफ़िक्र..
कभी हर पल एक नयी सोच को बेताब हू..

कभी बनाता नयी राहे मुश्किलो के बीच से..
बिखरा कभी तो सर्वनाशी सैलाब हू..

Tuesday, December 6, 2011

सीना आसमान का

चोडा सीना नीले आसमान का..
खुद मे इतने राज़ छुपाए हुए.
देखे है इसने कितने ही राजा ज़मीन पर.
ओर कितने ही फरियादी झोली फैलाए हुए..


देखा किस्मत बदलती फकिरो की..
ओर नीलाम होती तकदीर अमीरो की..
नज़ाकत देखी इसने फूलो की
ताक़त देखी इसने कभी लोहे की जंजीरो की

सपनो को इसने टूटते देखा.
देखा बिखरते अरमानो को..
हार मान कर बैठ गये  जो
देखा उन नासमझ इंसानो को.

देखा है इसने बनते इतिहास को.
हर पल बदलते रिश्तो के अहसास को..
कभी अपनी स्वार्थ की ज़मीन पर..
बदलते देखा लोगो के निवास को..


देखा कभी फ़िज़ा को महकते हुए.
पंछियो को खुशी से चहकते हुए..
देखी लहरे बहती जज्बातो मे
बादल भी बरसे मानो बहकते हुए..

कभी इसने देखा त्योहार
घर मे नवशिशु के आने का
देखा घर मे फैला सन्नाटा..
कभी दूर किसी के जाने का..

कभी देखा इसने मरते एक
भगत सिंग को देश के लिए
कभी देखते इसने बिकते इंसान..
अपने फरेबी परिवेश के लिए..


चोडा सीना नीले आसमान का..
खुद मे इतने राज़ छुपाए हुए.
अपनी जगह पर है अडिग ये
अपने सभी दर्द छुपाए हुए

पल खुशी के कम ओर गम के ज़्यादा है..
पर इसने निभाया वो जो इसकी मर्यादा है..
आसमान की इस खामोशी समझ इंसान.
ज़िंदगी के युद्ध मे तू सिर्फ़ एक प्यादा है.


ANJAAN - The UnKnown: मूरत

ANJAAN - The UnKnown: मूरत

मूरत


ज़िंदगी ऐसे मैं बिता रहा हू..
पत्‍थर मे मूरत तेरी बना रहा हू..


पैगाम आया तेरा जो मेरे लिए
वो हर एक को मैं अब सुना रहा हू...


दर्द जो तुमने दिया प्यार की राहो पर..
नीलाम उसको अब मैं करवा रहा हू..


मोहब्बत है सफ़र कांटो का..
दास्तान ए इश्क़ मैं अब बता रहा हू..


लफ़ज़ो मैं लिखा थी जो अब तक..
वो गीत सुबको अब सुना रहा हू..


ज़िंदगी ऐसे मैं बिता रहा हू..
पत्‍थर मे मूरत तेरी बना रहा हू.

छोटी सी रुसवाई

कभी हू तनहा भीड़ मैं..
कभी घिरा किसी से तन्हाई मैं.
याद है तेरी या साया तेरा..
मिलता हर बार मेरी परछाई मे

जैसे नादिया तड़पती सागर के लिए..
बहती जाती एक वेग से..
वैसे ही तड़प है दिल मे
मिली सौगात जो तेरी जुदाई मे


शुरू होती एक कहानी नयी
हर पल मेरी ज़िंदगी की.
पर खोजती तेरा अक्स आँखे मेरी
नये पन्नो की लिखाई मे..


वादा था तेरा..
चलने का साथ साथ..
छोड़ गयी तू साथ मेरा.
एक छोटी सी रुसवाई मे..

कमियाँ तूने मेरी सब गिना दी..
दो पल की लड़ाई मैं..
यकीन ना आया तुझको
मेरी मोहब्बत की सचाई मे...

Monday, December 5, 2011

चाँदनी रात

ठंडी चाँदनी इस चाँद की..
रोम रोम इस जिस्म का लुभाती हुई..
ओर फिर तस्वीर उनकी ..
आँखो के सामने आती हुई..

सितारे सजाते हुए..
रात के इस आँचल को..
ओर ठंडी हवा फिर से..
फ़िज़ा को महकती हुई...


खेलता चाँद छुपने का खेल.
बादलो की उस भीड़ के बीच..
ओर फिर एक खुशबू..
मुझे सच से बहकाती हुई...


हिलोरे मरता गहरा सागर प्रेम का
दिल के किसी कोने से..
ओर उफनती लहरे ख्वाहिशो की..
जूस्तजू मिलन की जागती हुई..


छाया है नशा मोहब्बत का..
कुछ दिल पर इस तरह की.
चाँदनी इस रात के अंबर पर.
परछाई उनकी नज़र आती हुई..


खोया है ख्यालो मे यू
रात चाँद लम्हो मैं जाती हुई
ओर झलक रोशनी की अंजान को..
अहसास हक़ीकत का करती हुई

Sunday, December 4, 2011

चेहरा

अंधेरो को कुछ यू
सूरज की किरन  हटती है..
जैसे वो अपने मुखड़े से
काली जुल्फे हटती है..

प्रकाश फैलता सुबह के सूरज
आसमान मे धीरे धीरे
एक नयी आभा हर पल ऐसे
चहरे से उसके उभर आती है..

ठंडी ओस की बूंदे
दमकती हुई कलियो पर..
जैसे माथे पर वो अपने
चमकता कुमकुम लगती है...

बादलो की एक चादर जब
सूरज को छिपाती अपने आगोश मे यू
जैसे शर्मा कर वो..
अपना चेहरा हाथो मैं छुपात्ती है.

झाँकती किरण जब
बादलो के बीच से कभी..
जैसे वो चलते चलते
मुड़कर पीछे अपना चेहरा दिखती है..


उसपर ठंडी हवा सुबह की
जब हलके से छेड़ जाती है..
नज़र उसकी प्यार भरी अंजान
बस एक जादू सा कर जाती है

तन्हाई

फ़ितरत थी उनकी चले जाना
क्यों तू अब इस का गम मानता है
अंधेरे होते है जब..
अपना साया भी तन्हा छोड़ जाता है..


सुख के थे वो साथी तेरे..
दुख मैं कौन अपनापन निभाता है..
चाँद की भी आदत है ये तो ..
काली रातो मे आसमा को तनहा छ्चोड़ जाता है..




सन्नाटा है मरघाट का..
जब बादल गम का छाता है
तू रोता अपने नसीब पर..
पर दर्द तो सबके हिस्से मे आता है


छितिज तक फैला है आसमान.
पर सूरज इस पर भी छिप जाता है.
ओर जिस साथ का तुम गम मानता..
वो वक्त के साथ अक्सर बदल जाता है


ख़ौफ़ तुझे तन्हा चलने का..
क्यों हर पल यू सताता है..
आया है जो अकेला इस जहाँ मे
अंजान अकेला ही वो यहाँ से जाता है

सुबह का सूरज


जब सूरज अपनी क़िरण बिखेरता सुबह..
एक ताज़गी हवा मे लाता हुआ..
छँटता हुआ कोहरा आँखो के सामने से
अंबर नीला नज़र आता हुआ...

बूंदे ठंडी ओस की..
नयी कलियो पर दमकती हुई..
ओर खेतो पर किसान कोई
हाल से फसले बोता हुआ..

कोयल अपनी आवाज़ से..
कानो मे रस घोलती हुई..
ओर पपीहा अपने सुरीली ताल से
एक नया समाँ बनता हुआ..

है ये कितना सुहाना..
मौसम ये मदमस्त सुबह का..
एक नये दिन का ये आभास
एक नवजीवन संजोता हुआ...

आती है हर काली रात के बाद सुबह
ये संदेश छोड़ता हुआ..
सूरज हंस कर अपनी किरण अंजान..
धरती के उजले मुख पर बिखेरता हुआ..

Saturday, December 3, 2011

नादानी लम्हो की

गुज़रते लम्हे
मुझे अचरज से घूरते हुए..
आँसू है जो पलको पर..
उन आँसुओ को पोंछते हुए...
एक दर्द अपन बयान करते है

मिला था एक राही उन्हे भी
अपने वक़्त को कोसता हुआ
चल रहा था मायूस वो.
आँखो मैं बुझे सपने लिए..
वो भी अपनी मंज़िलो से मिलते है


गुज़रते लम्हे
मुझे धीरे से समझाते हुए
लड़ कर लिखी जाती जब तकदीर..
अहसास करती वो सुकून का
जैसे नासूर जख्म पर मरहम कभी मलते है

इतना सुनकर मैं भी
अपने कहानी बयान करता हू
गम नही है पलको पर है जो
ये है पैगाम किसी के मिलने का..
नज़र आता है ये जब पत्थर दिल पिघलते है


पलको पर आकर थम गया है जो
वो खुशियाँ है किसी के घर आने की..
यकीन आता है हक़ीकत का इससे.
ये प्रमाण है उसकी मोहब्बत का..
इस पल के लिए तो दिल बरसो तरसते है..



सुनकर मेरा तराना
समझ आया लम्हो को की
फ़ितरत है आँसुओ की बहना
कभी खुशी कभी गम के
ये हमेशा पलको पर ही मिलते है

-- By Anjaan

Friday, December 2, 2011

सवाल

अंगड़ाई लेती शाम पूछती है मुझसे..

की क्यों उसका तू इंतज़ार करता है...

क्यों अपनी ज़िंदगी को

उसके गम मे बेकार करता है..

कह देता हू शाम से मैं भी..

कि बेवजह नही है इंतज़ार मेरा..

ये भी एक अदा है अंजान की..

जो उनकी बेवफ़ाई से भी प्यार करता है..


महकता गुलिस्ताँ अक्सर पूछता है..

कि क्यों तू अपनी खुशबू खोता है..

बावरा है अंजान तू..

जो उसकी यादो के संग सोता है..

कहता हू मैं गुलिस्ताँ से..

पागल है फिर तो तू भी क्योंकि

फूल चाहे हो मुरझाए

टूटने पर उनके दर्द तुझको भी होता है


बहती हुई ठंडी हवा का झोंका..

कहता मुझसे की मैं उसे भुला दू..

लालच देता वो मुघे संग ले चलने का

कहता की आ दुनिया की सैर करा दू..

हंस पड़ता है उसकी इस नादानी पर..

ओर नासमझ से पूछता अंजान.

  कि यदि मिला सकता है तो मिला दे मेरे महबूब से..

फिर देख तुझे मैं जन्नत की सैर करा दू..



आवारा बदल भी अब तो

एक सवाल सा पूछ जाता है...

क्यों उसकी तू उसे नही भूल पता

याद मे जिसकी तू सारा जहाँ भूल जाता है

 समझाओ कोई इन बादलो को..

पूछते मुझसे ये वजह भूलने की..

की मोहब्बत है ये कोई सौदा नही..

ये जहाँ क्या यहाँ अंजान अपना वजूद भूल जाता है

मुलाकात

महफ़िलो का दौर था.. जब उनसे नज़र लगी..

हुई तेज धड़कने दिलो की.. एक अजीब से कसक जगी..

आँखो मे था नशा उनके ओर जानी पहचानी सूरत लगी,,

उलझ गया अंजान सवाल मे की ..दिल्लगी है या दिल की लगी..

माँ

चुपके से सुबह को उठाती वो

प्यार से बालो को सहलाती वो

तकलीफो मे भी मुस्कुराती वो..

उंगली पकड़ चलना सीखती वो..

तेरी हर बुराई को छिपाती वो..

तुझे अच्छा इंसान बनाती वो..

ग़लती पर तुझे डाँट्ती वो..

रूठने पर फिर मनाती वो..

पहचान तेरी एक बनाती वो..

मुश्किलो मे रास्ता दिखलाती वो..

तेरी हँसी पर अपना सब लुटाती वो..

सूरत तेरी आँखो मे बसाती वो..

निस्वार्थ प्यार की मूरत है जो

माँ कहते है अंजान उसको..

Thursday, December 1, 2011

ज़िंदादिली

नही मिलता आसमा पँखो के होने से..

मिलता है ये हॉंसलो की उड़ानो से


किनारे की लहरो से जो डर जाए..

क्या लड़ेगा वो समुंदर के तूफ़ानो से..


पतझड़ को देख मन डोल गया तेरा

बाकी है मिलना अभी रेगिस्तान के वीरानो से


चोट बाकी है अभी तो तेज तलवारो की..

ज़ख्म पड़े है अभी सिर्फ़ म्यानो से..


इंतज़ार कर रहा तू एक मदद का पर.

नही चलती ज़िंदगी दूसरो के अहसानो से .



खवाहिश तेरी सपनो की चादर मे सोने की..

नींद नही आती जब काँटे मिले सिरहानो से..


ज़िक्र करता तू तल्ख़ धूप का हर पल

सीख कुछ हर पल जलते परवानो से..


ज़रूरत नही रास्तो की मंज़िलो के लिए..

अंजान बन जाते है ये जिन्ददिल अरमानो से..


नही मिलता आसमा पँखो के होने से..

मिलता है ये हॉंसलो की उड़ानो से