फ़ितरत थी उनकी चले जाना
क्यों तू अब इस का गम मानता है
अंधेरे होते है जब..
अपना साया भी तन्हा छोड़ जाता है..
सुख के थे वो साथी तेरे..
दुख मैं कौन अपनापन निभाता है..
चाँद की भी आदत है ये तो ..
काली रातो मे आसमा को तनहा छ्चोड़ जाता है..
सन्नाटा है मरघाट का..
जब बादल गम का छाता है
तू रोता अपने नसीब पर..
पर दर्द तो सबके हिस्से मे आता है
छितिज तक फैला है आसमान.
पर सूरज इस पर भी छिप जाता है.
ओर जिस साथ का तुम गम मानता..
वो वक्त के साथ अक्सर बदल जाता है
ख़ौफ़ तुझे तन्हा चलने का..
क्यों हर पल यू सताता है..
आया है जो अकेला इस जहाँ मे
अंजान अकेला ही वो यहाँ से जाता है
क्यों तू अब इस का गम मानता है
अंधेरे होते है जब..
अपना साया भी तन्हा छोड़ जाता है..
सुख के थे वो साथी तेरे..
दुख मैं कौन अपनापन निभाता है..
चाँद की भी आदत है ये तो ..
काली रातो मे आसमा को तनहा छ्चोड़ जाता है..
सन्नाटा है मरघाट का..
जब बादल गम का छाता है
तू रोता अपने नसीब पर..
पर दर्द तो सबके हिस्से मे आता है
छितिज तक फैला है आसमान.
पर सूरज इस पर भी छिप जाता है.
ओर जिस साथ का तुम गम मानता..
वो वक्त के साथ अक्सर बदल जाता है
ख़ौफ़ तुझे तन्हा चलने का..
क्यों हर पल यू सताता है..
आया है जो अकेला इस जहाँ मे
अंजान अकेला ही वो यहाँ से जाता है
Hey Aman. nice poems dude...
ReplyDeleteIts quite inspiring...
Thanks
Sahil