मौसम मे सर्द हवाओ के
कंपकपाता पिंजर..
खड़ा है सामने डॅट कर.
आस उसे तब भी है एक धूप की..
हार नही मान सकता वो..
क्या हुआ जो चंद लम्हो के लिए..
एक किरण उससे ना टकराए..
आस उसे तब भी है एक धूप की..
प्रचंड होती तीव्रता ..
जमा देती बहते लहू को भी..
झुकना उसे तब भी मंजूर नही है
आस उसे तब भी है एक धूप की..
लड़ता वो बिना किसी हथियार के..
ना कोई साथी ना आसरा.
साथ छोड़ती साँसे हर लम्हे के साथ..
आस उसे तब भी है एक धूप की..
कंपकपाता पिंजर..
खड़ा है सामने डॅट कर.
आस उसे तब भी है एक धूप की..
हार नही मान सकता वो..
क्या हुआ जो चंद लम्हो के लिए..
एक किरण उससे ना टकराए..
आस उसे तब भी है एक धूप की..
प्रचंड होती तीव्रता ..
जमा देती बहते लहू को भी..
झुकना उसे तब भी मंजूर नही है
आस उसे तब भी है एक धूप की..
लड़ता वो बिना किसी हथियार के..
ना कोई साथी ना आसरा.
साथ छोड़ती साँसे हर लम्हे के साथ..
आस उसे तब भी है एक धूप की..
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