छूटा आसरा रिश्तो का..
बढ़ना तो तन्हा ही था..
पर सहारा मिला चंद दोस्तो का..
अजनबी थे मिले जब पहली बार..
पर एक दूसरे के लिए सब अज़ीज बने..
कट गया सफ़र कॅंटो का फूलो की तरह.
रूप बदल आए जब वो फरिश्तो का..
अहसास खुशियो का उनसे ही आया
टपकते आँसुओ ने कंधा उनका ही पाया..
बरसे वो घनघोर तेरी ग़लतियो पर.
हर मान बैठा जब आसरा उनसे ही पाया..
रिश्ता है दोस्ती का पवित्र गंगा सा..
नाम ज़रूरत रख ना इसे बदनाम करो..
जैसे पूजते हो विरासत मे मिले रिश्तो को..
वैसे ही इसका भी सम्मान करो.
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