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Sunday, December 4, 2011

चेहरा

अंधेरो को कुछ यू
सूरज की किरन  हटती है..
जैसे वो अपने मुखड़े से
काली जुल्फे हटती है..

प्रकाश फैलता सुबह के सूरज
आसमान मे धीरे धीरे
एक नयी आभा हर पल ऐसे
चहरे से उसके उभर आती है..

ठंडी ओस की बूंदे
दमकती हुई कलियो पर..
जैसे माथे पर वो अपने
चमकता कुमकुम लगती है...

बादलो की एक चादर जब
सूरज को छिपाती अपने आगोश मे यू
जैसे शर्मा कर वो..
अपना चेहरा हाथो मैं छुपात्ती है.

झाँकती किरण जब
बादलो के बीच से कभी..
जैसे वो चलते चलते
मुड़कर पीछे अपना चेहरा दिखती है..


उसपर ठंडी हवा सुबह की
जब हलके से छेड़ जाती है..
नज़र उसकी प्यार भरी अंजान
बस एक जादू सा कर जाती है

3 comments:

  1. This is really Nice Anjaan.. Keep writing

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  2. shraddha: Use the word Aashig rather than Anjaan.. Aman.. nice poems anyways

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