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Sunday, August 12, 2012

मैं आऊँगा लौट कर

हवओ संग आज फिर उड़ने चला हूँ..
सपनो की मंज़िलो से मिलने चला हूँ..
बिछड़ने का अहसास है आज इस ज़मीन से..
जब आज फिर आसमान के रंग मे घुलने चला हूँ..

फिर एक किस्सा बना है आज प्यार का..
अफ़साना बना है कब से दबे उस इकरार का..
बरसते बादल भी थम गये थे आज..
जब मेरे गुलिस्ताँ मे मौसम आया था बहार का..

मुलाक़ते होंगी अब तुमसे पर एक नये आयाम पर
जो यहाँ ना मिली उस अजनबी शाम पर..
राह ताकना मेरी तुम थोड़ी सी..
मैं मिलूँगा तुझसे फिर एक नये मुकाम पर..

जवाब तेरे अनसुलझे सवालो का बन जाऊँगा..
मैं आऊँगा  लौट कर किस्सा उजलो का बन जाऊँगा
नही कोई बहती नदी का पानी नही जो वापिस लौटा नही..
बादलो मे पानी बन फिर तेरे आँचल मे आकर गिर जाऊँगा

ये ना समझना की तुझसे रूठ कर तुझसे दूर चला हूँ..
तुझसे अपनी नज़ारे मोड़ चला हू..
तुझमे तो बसता है रब मेरा.. और बसती मेरी आत्मा यहाँ..
जुदा होकर तुझसे एक बार मैं.. फिर तुझे महसूस करने चला हूँ

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