कलम मोहताज़ नही होती ज़माने की अनुशंसा की..
अपने बूते कभी इतिहास ओर कभी भूगोल बदल दिया करती है...
चल पड़ती है जब ये मदमस्त हो कर गलियो से गुज़रती है..
आँखे मूंद ज़माने की रूह भी पीछे चल दिया करती है..
अपने बूते कभी इतिहास ओर कभी भूगोल बदल दिया करती है...
चल पड़ती है जब ये मदमस्त हो कर गलियो से गुज़रती है..
आँखे मूंद ज़माने की रूह भी पीछे चल दिया करती है..
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