बूँदो को मैने भी बरसते देखा है...
धरती को मैने भी तरसते देखा है...
दिल से दिल लगा कर पूछ लेता है हाल कोई सिरफिरा...
यूँ जिंदगी को गमो मे मैने भी हंसते हुए देखा है...
अक्स जब कल का सोने नही देता...
साया भी खुद का जब रोने नही देता...
बिखर जाता है टूट कर कोई राही जब..
लहू लुहान उसे अकेले बिलखते हुए भी देखा है...
पर ये इस ज़िंदगी का अंजाम हो नही सकता...
एक कल के लिए दूसरे कल को खो नही सकता...
मैं तो कश्ती हूँ तूफ़ानो से लड़ने की पहचान है...
जानते है लोग मुझे फिर भी गुमशुदा ये अनजान है...
मैं तैरना भी जानता हूँ ओर डूबना भी...
निपुणता के कौशल से जनता हू जूझना भी..
आँधी सी चलती है जब यादो की बिखरेती सब कुछ..
जानता हूँ मिट्टी से ढके अंधेरे रास्तो को बुझना भी...
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