सीपियो मे था जब तक मोती था मैं...
बाहर निकल तो पत्थरो मे पहचान तलाशता मैं
खो गया है जो ज़माने की भीड़ मे...
अपनी हस्ती का वो निशान तलाशता मैं
बदल सकता तेरी मर्ज़ी काश ए खुदा..
हाथो के लकीरो के सहारे अपनी तकदीर ना छोड़ता..
आज इन लकीरो के इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए..
अभिमन्यु सा एक धनुष बान तलाशता मैं...
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