Saturday, December 31, 2011

जन्नत से अज़ीज है तू..

तुझे खो कर पाया है जो..
दुनिया की नज़र मैं जन्नत हैं

जन्नत से अज़ीज है तू..
मेरी दुआओ की मन्नत है..

उलझानो मे हू कि
हाल ए दिल बयाँ कैसे हो

कसम्कश है सब कह देने की पर.
चाँद लॅफ्ज़ो मे ये बयाँ कैसे हो...

नही भूल पाता हू आज भी..
तुम्हारा वो धीरे से मुस्कुराना..

मुझको अपने इंतेज़ार मैं जगा कर..
खुद गहरी नींद सो जाना...

किसे बताऊ अब मैं बाते अपनी..
किसकी बातो को सांसो की रवानी बनाऊ

किसे बनाऊ चैन अब आँखो का
किन मुलाक़ातो की अब एक कहानी बनाऊ


तुझे खो कर पाया है जो..
दुनिया की नज़र मैं जन्नत हैं

जन्नत से अज़ीज है तू..
मेरी दुआओ की मन्नत है..

Thursday, December 29, 2011

जो होता पास तू मेरे..


जो होता पास तू मेरे..
दिन गुज़रता..
पकड़े तेरा हाथ
तस्वीर होती आँखो मे हर शाम
सपनो का बिस्तर पर जब सोता

जो होता पास तू मेरे..
ना होती सुबह..
इतनी अकेली..
ना हर शाम..
चुपके से मैं कहीं रोता..


जो होता पास तू मेरे..
जीता मैं भी
हर पल एक नयी मौज़ से.
मरने से पहले
यू एक लाश ना बना होता..


जो होता पास तू मेरे..

Monday, December 26, 2011

अभी तो मुझे बहुत दूर जाना है..

ज़िंदगी का यूँ साथ निभाना है..
अभी तो मुझे बहुत दूर जाना है..

वादे किए थे किसी से जो..
अभी तो मुझे उनको निभाना है..

चला था जब घर से कल
देखा था एक सपना किसी के पलको पर

थाम कर रखना है उसे आँखो मे
उस सपने को अभी पूरा कर दिखना है..

कैसे थम जाऊ अभी से..
कर्ज़ है अभी बाकी कुछ मुझ पर

मिला है जो अब तक इस ज़िंदगी से
अभी उस का एक मोल चुकाना है..


ज़िंदगी का यू साथ निभाना है..
अभी तो मुझे बहुत दूर जाना है..

Sunday, December 25, 2011

बस कुछ दूर ओर

सन्नाटा है पैर फैलाए हुए..
ना कोई कसक है ना कोई आवाज़..

खामोशी इतनी है की..
हवा भी सुनाई देती है.....
 
 
बस कुछ दूर ओर..
एक रोशनी नज़र आती हुई..

अंधेरे के आँचल से झाँकती हुई..
एक परछाई दिखाई देती है..

बस कुछ दूर ओर..
कोई मुझे पुकारता हुआ,,

उड़ाती सन्नाटे के बिखरे बादल को..
एक आवाज़ सुनाई देती है..

मिला दे कोई उस परछाई से
मिला दे कोई उस आवाज़ से

नसो मे जो घुलती हुई..
लहू बन बहती दिखाई देती है

बुनियाद

लड़ते है सब धर्म के नाम से..
भला कहीं धर्म भी बुरा होता है..
कसूर नही है ये किसी धर्म का..
स्वार्थ तो इंसान का ही बुरा होता है


कमजोर कहते हम दूसरो की बुनियाद को..
नीचा दिखाते दूसरो के मान को..
कमज़ोर नही बनती बुनियाद कभी ज्ञान की..
यकीन उस पर इंसान का ही कमज़ोर होता है..

खो देगा इस वजूद तू अपना ..
बदलने मे जो अब देर लगाई..
रखना नज़रिया अपना कुछ इस तरह की
मिटा दे जो फ़ासले सब वो ही सच्चा इंसान होता है..

Saturday, December 24, 2011

आभार

कफ़न जब आए चेहरे पर..
आँखे मेरी खुली रखना.

देख सकु जाते जाते मैं.
कौन मेरा अपना था..
किसकी आँखो का मैं सपना था..


झुका सकु पलके मेरी..
उनके सामने जो मेरे लिए खास थे..
मुश्किलो मे मेरी वो आस थे..

छोड़ सकु पैगाम एक नाम उनके
जो मेरे जाने का दुख मनाएँगे..
मेरे मृत देह पर उनके आँसू छलक जाएँगे,,,


कफ़न जब आए चेहरे पर..
आँखे मेरी खुली रखना.

देख सक चमकते उस सूरज को..
जिसने हर पल जीना का अहसास कारया..
पर सच मौत का भी उसने हर शाम सबको समझाया..


करू आभार उस जीवन का मैं..
जिसने मुझे मेरे अपनो से मिलाया ओर.
जाते जाते जहाँ मुझको परायो ने भी अपनाया..

सच है ये की
उमर दुश्मनी की ज़िंदगी से बड़ी नही होती..
कर लो दोस्ती सब से जीते जी..
मरते वक़्त हाथ मिलाने की घड़ी नही होती..

Tuesday, December 20, 2011

धड़कता दिल आज भी है

नामो के इस हुज़ूम के बीच
एक नाम एक ऐसा भी..
सुनके जिसे.
धड़कता दिल आज भी है..


लंबी इन रातो की.
पल पल बढ़ती हुई
तन्हाई से
तड़पता दिल आज भी है..


धड़कनो के खामोशी के,,
बीच आती अचानक एक
आहट से
बहकता दिल आज भी है..


ठंडी पड़ चुकी सांसो से.
आती खुश्बू जब तेरे
यादो से
धड़कता दिल आज भी है ..

इन रास्तो का ज़िक्र नही करता


दिल चाहता है कि
तेरे आवाज़ से एक
स्वर चुरा लू..

खोकर तेरी आँखो मे
तेरे दिल मैं
अपनी जगह बना लू..

पर डर लगता है,,
मोहब्बत की इन गलियो मे अब

कि कहीं चलु मैं एक
नयी ज़िंदगी के लिए ओर
रास्ते मैं अपनी कब्र बना लू..


मत समझना तू ये
मैं तेरी चाहत की
कद्र नही करता..

तेरी उस बेदाग
मोहब्बतो की मैं
फ़िक्र नही करता

पर रोया था मैं
कभी इतना इन्ही रास्तो पर की.

सफ़र मैं अब अपने
इन रास्तो का ज़िक्र नही करता..

Tuesday, December 13, 2011

कविता..

चंद शब्दो का शब्द जाल नही..
किसी के दिल का हाल है कविता..

कभी बीता कल किसी का
कभी नया एक ख़याल है कविता..

देती जवाब कई सवालो का कभी..
ओर स्वयं एक सवाल है कविता...

तलवारो से तेज़ी है कभी.
ओर कभी मजबूत ढाल है कविता..

सच से रूबरू करती कभी..
कभी बनती एक मायाजाल है कविता..

किसी की बेवफ़ाई की दास्तान ओर..
किसी की चाहतो की ताल है कविता..



चाँद शब्दो का शब्द जाल नही..
किसी के दिल का हाल है कविता..


Monday, December 12, 2011

लगता किसी तूफान के आने की आहट है..


खामोशियाँ फैली है सब ओर.
लगता किसी तूफान के आने की आहट है..

जलता है जहान ये अंगारो पर..
लगता प्रकति की ये बग़ावत है..

धधकता लावा ज्वालामुखियो का..
पिघलती पल पल हिम की जमावट है..

डूबते किनारे अब तेज़ी से यू
बदलती हर पल सागर की बनावट है..


खामोशियाँ फैले है सब ओर.
लगता किसी तूफान के आने की आहट है..

वक़्त है तू मेरा गुज़रा हुआ..

वक़्त है तू मेरा गुज़रा हुआ..
बसा लिया तुझको मेरी यादो मे

छुपा के रखा है तुझको ऐसे.
गुलाब रखते है जैसे किताबो मे..

नाम सुनके तेरा किसी के लफ़ज़ो मे
आता है एक तूफान जैसे मेरी सांसो मे..

कोशिश करता सुनने की तेरी आवाज़ फ़िज़ा मे.
मुलाकात होती रोज़ तुझसे मेरे ख्वाबो मे..

सोच

झील के किनारो पर
बैठा जब कभी सोचता
श्रुन्खला अल्फाज़ो की
बन जाए आवाज़ जो
बिखरते इस ज़माने की


जम चुका है कहीं
समय के साथ साथ..
अहसास कुछ कर जाने का
सोचता एक अग्नि जो
आस दिखाए उसे सुलगाने की


खोजता परछाई जो
साया बन जाए
गिरते हमारे ज़मीर का
संभाले उसे हर ठोकर पर..
कला बताए गिर कर उठ जाने की..


देखता दर्पण वो
दिखाए चेहरा सबको
अंधे इन रिवाज़ो का..
संवारे उनको एक नये रूप मे
कसमे बन जाए जो हो निभाने की..

Sunday, December 11, 2011

यू तो कोई गम नही है

तुम नही हो यू तो कोई गम नही है
पर जो थे हम अब वो हम नही है..


उड़ रहे हो तुम अपने प्यार की वादियो मे
ओर मेरे पँखो मे अब कोई दम नही है..

आता नज़र चेहरा मेरे मुस्कुराता हुआ
पर गहराई मेरे दर्द की कम नही है..


गुजर रहा है सफ़र ज़माने की भीड़ मे
पर भरते तन्हाई के जख्म नही है..

लिखता है नजमे आज भी अंजान यू तो..
लिख दे कहानी तेरी जो वो अब कलम नही है

तुम नही हो यू तो कोई गम नही है
पर जो थे हम अब वो हम नही है..

देश

छलनी होता सीना एक माँ का..
मरते बेटे जब उसके सरहद पर..
छलकते आँसू है गर्व के दुख की जगह
वीर यात्रा निकलती जब चार कंधो पर..
इस दर्द को अपने माथे पर लगती है..
चिताओ की राख पर उनकी महकता देश बनाती है..



पर मर जाती है माँ जब..
बेटे उसे बाज़ारो मे नीलाम करते..
अपने ऐशो आराम के खातिर..
हर पल नये हथियारो से उसे लहू लुहान करते..
टपकती बूँद लहू की एक चिंगारी बन जाती है..
उड़ा कर सब कुछ धुओं मे एक जलता देश बनाती है..


संभाल जा ए मेरे देश के वासी..
ये सिर्फ़ धरती नही माँ है कुछ मतवालो की..
निकल पड़े है वो अब माँ के आन बचाने को..
फ़िक्र नही है उन्हे अब जीने मरने के ख्यालो की..
धुन जब देशभक्ति की दिलो मे आती है..
इतिहास बनता फिर एक नया ओर एक नया देश बनाती है


----
अंजान

Saturday, December 10, 2011

मोहब्बत बंजारो से

ना करना बंजारो से मोहब्बत ..
पिघलते देखा है पत्थर को अंगरो मे..


बुनते ख्वाब दिल की आवाज़ से..
जूझते देखा उनको तन्हाई के अँधियारो मे..


चले तैरने इस अजनबी समंदर मे
डूबते देखा उनको उफनती मझधारो माए

लगाई चिंगारी प्यार की दिल से
काँपते देखा उनको अक्सर ठंडे जाड़ो मे


लगाया है नकाब खुशियो का पर..
ठहराते देखा एक आँसू आँखो के किनारो मे..

--
अंजान

Friday, December 9, 2011

वापसी

कहते है वो हम फिर से मिल जाए..
जहाँ बिछड़े थे अभी तो हम वहीं है.
समझाता उनको मे बदले हुए रिश्तो को..
कि अब मैं भी मैं नही ओर तू भी तू नही है..


प्यार के गीत वो अब पुराने है..
मिट चुके वो बेकार जो अफ़साने है..
आप बात करते हो दिल म्व बसी मोहब्बत की..
पर हमारे लिए तो आप कब से बेगाने है..


दुहाई ना देना तुम मोहब्बत की..
हँसी अपनी ना रोक पाऊँगा..
कैसे जवाब दोगे तुम मेरे सवालो को..
कहानी तन्हा पल की जब तुम्हे बताऊँगा


नही है कोई ओर ज़िंदगी मे माना..
पर यकीन तुम पर अब आता नही है..
कसमे दो तुम मोहब्बत की कितनी भी
पर दर्द दिया जो तुमने वो जाता नही है..


तनहा रहा है हमेशा..
ओर ज़िंदगी तुम बिन ही निकल जाएगी..
पर पकड़ा हाथ जो मोहब्बतो का..
किस मोड़ पर जाने उंगली अंजान की फिसल जाएगी..

उड़ान स्वार्थ की


सवेरे जो उड़े परिंदे
नयी घोसलो की चाह मैं..
शाम तक आई याद लम्हो की..
बिताए जो पुराने घोसलो की राह मे

उड़ चुका है बहुत दूर तक..
पर सफ़र कहीं ख़त्म होता नही है.
थक जाता है अक्सर उड़ते उड़ते.
पर घोसलो की फ़िक्र मे सोता नही है..


अपनी स्वार्थ की उड़ान पर..
एक नया समा बनता...
उड़ता अपनी धुन मे इस तरह..
कि सब कुछ पीछे छोड़ता जाता

बना रहा है या बिगाड़ रहा है
ये कभी समझ ना पाता
या समझ कर भी बनता नासमझ
ओर अपनी दुनिया रोन्दता जाता

अरमान


चला था घर से जब
अरमान थे कुछ कर दिखाने के..
सामने थी ज़िंदगी चमकती हुई..
ओर इरादे आसमानो पर छा जाने के..

पर ज़िंदगी के थपेड़ो से..
धीरे धीरे ये समझ आया
मिलता नही सब कुछ सिर्फ़ अरमानो से..
चमकता है तारा वो
जिसने जलने का जिगर है पाया


किया एक फ़ैसला अंजान..
कि अब सोने सा तपना है..
अंधेरो मे भी तुझको अब
दीपक सा जलना है..

कांटो सी है ये ज़िंदगी..
ओर तुझको नंगे पांवा चलना है.
चुनौती हो चाहे कोई भी..
निडर होकर लड़ना है..


साथ मिलेगा तेरे होंसलो का जब,,
सर आसमानो का तू झुकाएगा..
मिट गया इन राहो पर तो क्या..
अंजान एक निशान अपना छोड़ जाएगा..

Thursday, December 8, 2011

आम इंसान

घर मे ना हो बेशक
रोटी दो वक़्त की.
खेत मे करता मेहनत..
दूसरो की भूख के लिए..
मेरे देश का किसान है वो..


सरहद की सलामती करता..
सोता नही कई रातो तक..
लड़ता अपने आखरी साँस तक.
ओर मरता देश के रसूख के लिए
मेरे देश का जवान है वो..


ओर फ़ितरत से भिखारी जो..
माँगता भीख वोटो की..
करता राज़ निरंकुश्ता से..
जीता सिर्फ़ अपने सुख के लिए..
मेरे देश को वो नेता महान है..


पल पल कोसता ओर झगड़ता..
सरकारी विभाग के तरीक़ो से..
घिसता सारी उमर एक उम्मीद मे
हर पल मरता वो जीने के लिए..
मेरे देश का वो आम इंसान है..

ख़ुदग़र्ज़

कहते है वो..
कोशिश नही की तुमने मुझे भूलने की..
इतनी तड़प तुम्हे ना हुई होती..
कसूर मेरा नही की
चाहा तुमने मुझको
पर ज़िंदगी कभी तो तुमने जी होती..

समझाओ कोई उस नादान को..
कहीं साँसे भी बिना धड़कन चला करती है.
जब होती है आरजू मिलने की.
भला आँखो मे नींद कहा बसा करती है..


कसूरवार ठहराते हर पल हमे जैसे वो
मेरी मोहब्बत का मानो मखोल बनाते..
खुश है गम हमको जुदाई का देकर वो..
ओर हमको ही ख़ुदग़र्ज़ बताते..


जब मिलने की एक गुज़ारिश की..
मानो उनसे उनकी ज़िंदगी माँग ली..
आया ना जवाब उनका .. ओर हमने
सपनो मे मुलाकात करने की था ली..

दूर हो तो दूर सही..
अहसास इश्क़ का काफ़ी है..
जागती आँखो को चाहे नज़र ना आओ..
सपने मे मिलना काफ़ी है

प्रलय

धुँआ बहता हवा मे अब..
ज्वालामुखी ये अब उफनता है...
जलती सतह रवि की पल पल..
ठंडा ये हिमालय अब पिघलता है..

हर लम्हा फटती ज़मीन..
दरारे कभी छोड़ जाती है..
जहाँ थी हँसती सभ्यता..
मंज़र तबाही का वहाँ छोड़ जाती है..

उफनता सागर..
सबब प्रलय का बन जाता है..
लहरे लगती है कोई दुश्मनी निकलती.
सब कुछ डूबा हुआ नज़र आता है..

फटता व्योम सिर्फ़ कुछ हवाओ से.
बरसता ही जाता है..
बिना रुत के गिरता हिम..
बस एक डर कहीं घर कर जाता है..

Wednesday, December 7, 2011

देश मेरा


समझ सको तो समझो इसको..
देश ये मेरा बड़ा अजीब है..
दूरीया हो चाहे समुन्देरो की
पर दिल एक दूसरे के करीब है..


ईद मुबारक कहते हम सारे
मनती खुशिया दीवाली की शोर से..
खीर बनती गुरुपर्व पर.
मनाते होली बड़े ज़ोर से..


होंसला आगे बादने का हर नज़र मे
ओर मिले जो उसे मानते अपना नसीब है..
समझ सको तो समझो इसको..
देश ये मेरा बड़ा अजीब है..


विज्ञान को हम देते चुनोती..
ओर रस्मो भी अपनी निभाते है..
खोजते भगवान की मूरत पत्‍थर मे..
ओर दिए नदियो मे बहाते है..


चाँद पर पहुँच चुके है..
ओर ताक़त की एक नयी उचान है..
गुरूर नही करते इस पर भी..
रखते हर इंसान का मान है..

कमिया मेरे देश मे लाख सही..
दुनिया को एक नयी राह दिखाते है..
आती जब विपदा कहीं पर..
मदद करने हम पहुँच जाते है..


समझ सको तो समझो इसको..
देश ये मेरा बड़ा अजीब है..
दूरीया हो चाहे समुन्देरो की
पर दिल एक दूसरे के करीब है..

अंजान

किसी के लिए मैं हू एक सवाल..
ओर किसी के लिए हर सवाल का ज्वाब हू...

बनता सबब नफ़रत का किसी के लिए..
ओर किसी का पूरा होता ख्वाब हू..

जो ना समझे उसके लिए हूँ अंजान
समझे जो उसके लिए खुली किताब हू..

कभी आवारा पंछी सा बेफ़िक्र..
कभी हर पल एक नयी सोच को बेताब हू..

कभी बनाता नयी राहे मुश्किलो के बीच से..
बिखरा कभी तो सर्वनाशी सैलाब हू..

Tuesday, December 6, 2011

सीना आसमान का

चोडा सीना नीले आसमान का..
खुद मे इतने राज़ छुपाए हुए.
देखे है इसने कितने ही राजा ज़मीन पर.
ओर कितने ही फरियादी झोली फैलाए हुए..


देखा किस्मत बदलती फकिरो की..
ओर नीलाम होती तकदीर अमीरो की..
नज़ाकत देखी इसने फूलो की
ताक़त देखी इसने कभी लोहे की जंजीरो की

सपनो को इसने टूटते देखा.
देखा बिखरते अरमानो को..
हार मान कर बैठ गये  जो
देखा उन नासमझ इंसानो को.

देखा है इसने बनते इतिहास को.
हर पल बदलते रिश्तो के अहसास को..
कभी अपनी स्वार्थ की ज़मीन पर..
बदलते देखा लोगो के निवास को..


देखा कभी फ़िज़ा को महकते हुए.
पंछियो को खुशी से चहकते हुए..
देखी लहरे बहती जज्बातो मे
बादल भी बरसे मानो बहकते हुए..

कभी इसने देखा त्योहार
घर मे नवशिशु के आने का
देखा घर मे फैला सन्नाटा..
कभी दूर किसी के जाने का..

कभी देखा इसने मरते एक
भगत सिंग को देश के लिए
कभी देखते इसने बिकते इंसान..
अपने फरेबी परिवेश के लिए..


चोडा सीना नीले आसमान का..
खुद मे इतने राज़ छुपाए हुए.
अपनी जगह पर है अडिग ये
अपने सभी दर्द छुपाए हुए

पल खुशी के कम ओर गम के ज़्यादा है..
पर इसने निभाया वो जो इसकी मर्यादा है..
आसमान की इस खामोशी समझ इंसान.
ज़िंदगी के युद्ध मे तू सिर्फ़ एक प्यादा है.


मूरत


ज़िंदगी ऐसे मैं बिता रहा हू..
पत्‍थर मे मूरत तेरी बना रहा हू..


पैगाम आया तेरा जो मेरे लिए
वो हर एक को मैं अब सुना रहा हू...


दर्द जो तुमने दिया प्यार की राहो पर..
नीलाम उसको अब मैं करवा रहा हू..


मोहब्बत है सफ़र कांटो का..
दास्तान ए इश्क़ मैं अब बता रहा हू..


लफ़ज़ो मैं लिखा थी जो अब तक..
वो गीत सुबको अब सुना रहा हू..


ज़िंदगी ऐसे मैं बिता रहा हू..
पत्‍थर मे मूरत तेरी बना रहा हू.

छोटी सी रुसवाई

कभी हू तनहा भीड़ मैं..
कभी घिरा किसी से तन्हाई मैं.
याद है तेरी या साया तेरा..
मिलता हर बार मेरी परछाई मे

जैसे नादिया तड़पती सागर के लिए..
बहती जाती एक वेग से..
वैसे ही तड़प है दिल मे
मिली सौगात जो तेरी जुदाई मे


शुरू होती एक कहानी नयी
हर पल मेरी ज़िंदगी की.
पर खोजती तेरा अक्स आँखे मेरी
नये पन्नो की लिखाई मे..


वादा था तेरा..
चलने का साथ साथ..
छोड़ गयी तू साथ मेरा.
एक छोटी सी रुसवाई मे..

कमियाँ तूने मेरी सब गिना दी..
दो पल की लड़ाई मैं..
यकीन ना आया तुझको
मेरी मोहब्बत की सचाई मे...

Monday, December 5, 2011

चाँदनी रात

ठंडी चाँदनी इस चाँद की..
रोम रोम इस जिस्म का लुभाती हुई..
ओर फिर तस्वीर उनकी ..
आँखो के सामने आती हुई..

सितारे सजाते हुए..
रात के इस आँचल को..
ओर ठंडी हवा फिर से..
फ़िज़ा को महकती हुई...


खेलता चाँद छुपने का खेल.
बादलो की उस भीड़ के बीच..
ओर फिर एक खुशबू..
मुझे सच से बहकाती हुई...


हिलोरे मरता गहरा सागर प्रेम का
दिल के किसी कोने से..
ओर उफनती लहरे ख्वाहिशो की..
जूस्तजू मिलन की जागती हुई..


छाया है नशा मोहब्बत का..
कुछ दिल पर इस तरह की.
चाँदनी इस रात के अंबर पर.
परछाई उनकी नज़र आती हुई..


खोया है ख्यालो मे यू
रात चाँद लम्हो मैं जाती हुई
ओर झलक रोशनी की अंजान को..
अहसास हक़ीकत का करती हुई

Sunday, December 4, 2011

चेहरा

अंधेरो को कुछ यू
सूरज की किरन  हटती है..
जैसे वो अपने मुखड़े से
काली जुल्फे हटती है..

प्रकाश फैलता सुबह के सूरज
आसमान मे धीरे धीरे
एक नयी आभा हर पल ऐसे
चहरे से उसके उभर आती है..

ठंडी ओस की बूंदे
दमकती हुई कलियो पर..
जैसे माथे पर वो अपने
चमकता कुमकुम लगती है...

बादलो की एक चादर जब
सूरज को छिपाती अपने आगोश मे यू
जैसे शर्मा कर वो..
अपना चेहरा हाथो मैं छुपात्ती है.

झाँकती किरण जब
बादलो के बीच से कभी..
जैसे वो चलते चलते
मुड़कर पीछे अपना चेहरा दिखती है..


उसपर ठंडी हवा सुबह की
जब हलके से छेड़ जाती है..
नज़र उसकी प्यार भरी अंजान
बस एक जादू सा कर जाती है

तन्हाई

फ़ितरत थी उनकी चले जाना
क्यों तू अब इस का गम मानता है
अंधेरे होते है जब..
अपना साया भी तन्हा छोड़ जाता है..


सुख के थे वो साथी तेरे..
दुख मैं कौन अपनापन निभाता है..
चाँद की भी आदत है ये तो ..
काली रातो मे आसमा को तनहा छ्चोड़ जाता है..




सन्नाटा है मरघाट का..
जब बादल गम का छाता है
तू रोता अपने नसीब पर..
पर दर्द तो सबके हिस्से मे आता है


छितिज तक फैला है आसमान.
पर सूरज इस पर भी छिप जाता है.
ओर जिस साथ का तुम गम मानता..
वो वक्त के साथ अक्सर बदल जाता है


ख़ौफ़ तुझे तन्हा चलने का..
क्यों हर पल यू सताता है..
आया है जो अकेला इस जहाँ मे
अंजान अकेला ही वो यहाँ से जाता है

सुबह का सूरज


जब सूरज अपनी क़िरण बिखेरता सुबह..
एक ताज़गी हवा मे लाता हुआ..
छँटता हुआ कोहरा आँखो के सामने से
अंबर नीला नज़र आता हुआ...

बूंदे ठंडी ओस की..
नयी कलियो पर दमकती हुई..
ओर खेतो पर किसान कोई
हाल से फसले बोता हुआ..

कोयल अपनी आवाज़ से..
कानो मे रस घोलती हुई..
ओर पपीहा अपने सुरीली ताल से
एक नया समाँ बनता हुआ..

है ये कितना सुहाना..
मौसम ये मदमस्त सुबह का..
एक नये दिन का ये आभास
एक नवजीवन संजोता हुआ...

आती है हर काली रात के बाद सुबह
ये संदेश छोड़ता हुआ..
सूरज हंस कर अपनी किरण अंजान..
धरती के उजले मुख पर बिखेरता हुआ..

Saturday, December 3, 2011

नादानी लम्हो की

गुज़रते लम्हे
मुझे अचरज से घूरते हुए..
आँसू है जो पलको पर..
उन आँसुओ को पोंछते हुए...
एक दर्द अपन बयान करते है

मिला था एक राही उन्हे भी
अपने वक़्त को कोसता हुआ
चल रहा था मायूस वो.
आँखो मैं बुझे सपने लिए..
वो भी अपनी मंज़िलो से मिलते है


गुज़रते लम्हे
मुझे धीरे से समझाते हुए
लड़ कर लिखी जाती जब तकदीर..
अहसास करती वो सुकून का
जैसे नासूर जख्म पर मरहम कभी मलते है

इतना सुनकर मैं भी
अपने कहानी बयान करता हू
गम नही है पलको पर है जो
ये है पैगाम किसी के मिलने का..
नज़र आता है ये जब पत्थर दिल पिघलते है


पलको पर आकर थम गया है जो
वो खुशियाँ है किसी के घर आने की..
यकीन आता है हक़ीकत का इससे.
ये प्रमाण है उसकी मोहब्बत का..
इस पल के लिए तो दिल बरसो तरसते है..



सुनकर मेरा तराना
समझ आया लम्हो को की
फ़ितरत है आँसुओ की बहना
कभी खुशी कभी गम के
ये हमेशा पलको पर ही मिलते है

-- By Anjaan

Friday, December 2, 2011

सवाल

अंगड़ाई लेती शाम पूछती है मुझसे..

की क्यों उसका तू इंतज़ार करता है...

क्यों अपनी ज़िंदगी को

उसके गम मे बेकार करता है..

कह देता हू शाम से मैं भी..

कि बेवजह नही है इंतज़ार मेरा..

ये भी एक अदा है अंजान की..

जो उनकी बेवफ़ाई से भी प्यार करता है..


महकता गुलिस्ताँ अक्सर पूछता है..

कि क्यों तू अपनी खुशबू खोता है..

बावरा है अंजान तू..

जो उसकी यादो के संग सोता है..

कहता हू मैं गुलिस्ताँ से..

पागल है फिर तो तू भी क्योंकि

फूल चाहे हो मुरझाए

टूटने पर उनके दर्द तुझको भी होता है


बहती हुई ठंडी हवा का झोंका..

कहता मुझसे की मैं उसे भुला दू..

लालच देता वो मुघे संग ले चलने का

कहता की आ दुनिया की सैर करा दू..

हंस पड़ता है उसकी इस नादानी पर..

ओर नासमझ से पूछता अंजान.

  कि यदि मिला सकता है तो मिला दे मेरे महबूब से..

फिर देख तुझे मैं जन्नत की सैर करा दू..



आवारा बदल भी अब तो

एक सवाल सा पूछ जाता है...

क्यों उसकी तू उसे नही भूल पता

याद मे जिसकी तू सारा जहाँ भूल जाता है

 समझाओ कोई इन बादलो को..

पूछते मुझसे ये वजह भूलने की..

की मोहब्बत है ये कोई सौदा नही..

ये जहाँ क्या यहाँ अंजान अपना वजूद भूल जाता है

मुलाकात

महफ़िलो का दौर था.. जब उनसे नज़र लगी..

हुई तेज धड़कने दिलो की.. एक अजीब से कसक जगी..

आँखो मे था नशा उनके ओर जानी पहचानी सूरत लगी,,

उलझ गया अंजान सवाल मे की ..दिल्लगी है या दिल की लगी..

माँ

चुपके से सुबह को उठाती वो

प्यार से बालो को सहलाती वो

तकलीफो मे भी मुस्कुराती वो..

उंगली पकड़ चलना सीखती वो..

तेरी हर बुराई को छिपाती वो..

तुझे अच्छा इंसान बनाती वो..

ग़लती पर तुझे डाँट्ती वो..

रूठने पर फिर मनाती वो..

पहचान तेरी एक बनाती वो..

मुश्किलो मे रास्ता दिखलाती वो..

तेरी हँसी पर अपना सब लुटाती वो..

सूरत तेरी आँखो मे बसाती वो..

निस्वार्थ प्यार की मूरत है जो

माँ कहते है अंजान उसको..

Thursday, December 1, 2011

ज़िंदादिली

नही मिलता आसमा पँखो के होने से..

मिलता है ये हॉंसलो की उड़ानो से


किनारे की लहरो से जो डर जाए..

क्या लड़ेगा वो समुंदर के तूफ़ानो से..


पतझड़ को देख मन डोल गया तेरा

बाकी है मिलना अभी रेगिस्तान के वीरानो से


चोट बाकी है अभी तो तेज तलवारो की..

ज़ख्म पड़े है अभी सिर्फ़ म्यानो से..


इंतज़ार कर रहा तू एक मदद का पर.

नही चलती ज़िंदगी दूसरो के अहसानो से .



खवाहिश तेरी सपनो की चादर मे सोने की..

नींद नही आती जब काँटे मिले सिरहानो से..


ज़िक्र करता तू तल्ख़ धूप का हर पल

सीख कुछ हर पल जलते परवानो से..


ज़रूरत नही रास्तो की मंज़िलो के लिए..

अंजान बन जाते है ये जिन्ददिल अरमानो से..


नही मिलता आसमा पँखो के होने से..

मिलता है ये हॉंसलो की उड़ानो से

Wednesday, November 30, 2011

मुस्कान

मत समझना कि मुस्कुराते है जो

उन्हे कोई गम नही है...

ज़िंदगी उनकी भी है एक सफ़र

मुश्किले उनकी भी कम नही है.........

चलते है खामोश हवा से वो..

तूफान उनके मन मे कम नही है ..........

आवारा बादलो की तरह वो बरसते नही

मत समझना की उनका कोई मर्म नही है,,

एक मुस्कान मे सिमटी ज़िंदगी सारी उनकी

नसीब मे बेशक उनके दम नही है..................

फ़र्क है इतना बस अंजान..

उनकी आँखो मैं हार का गम नही है



रक़ीब

चल रही है साँसे यू तो आज भी..
पर अहसास था ज़िंदगी का जब वो करीब था...

कसमे थे साथ निभाने की कयामत तक..
ओर किस्सा नाज़ुक मोहब्बतो का  वो अजीब था..

तोड़कर चल दिया आशियाँ प्यार का
ओर सपनो के कफ़न मिला जिससे मेरा वो रक़ीब था

बेरूख़ी इतनी है अंजान उसकी की
लगता नसीब मे नही अब वो कभी जो मेरा नसीब था..

सुनहरा कल

ज़मीन के जिस टुकड़े के लिए
बहा दी नादिया हमने खून की

कैसे जियेंगी अवाम हमारी..
ज़िंदगी वहाँ सुकून की..

क्या मिला अंजान हमे इतनी नफ़रत से..
है बस ये लड़ाई एक जुनून की..


आओ मिल कर बढ़ाए हम आगे..
झगड़ा छोड़ परवाह करे दो वक़्त के चून की..


शाम हो हर लम्हा मस्तानी..
रहे गरिमा बिखरी जैसे अरुण की..

हम भी जिए ओर तुम भी जियो
ओर वतन जिए ज़िंदगी एक सुकून की

Tuesday, November 29, 2011

हसरते

हसरते बन जाए एक जुनून जब..
सच हज़ारो का इंसान भूल जाता है..

जब होता है जोश तूफ़ानो का..
वजूद किनरो का यू सागर भूल जाता है..


ताक़त है उसकी पहाड़ो से नये रास्ता बनाने की..
लेकिन अपने रास्तो का ही पता वो भूल जाता है..

गुरूर अपनी उँचाइयो का इतना की..
सीडियो का अहसान अक्सर वो भूल जाता है..


ये उसूल इस ज़माने के अंजान
मुझको व्यथित कर जाते है..

सच करू बयान गर मैं
मुझको खामोश ये कर जाते है..

Monday, November 28, 2011

आँसु

रखना संभाल के इन आँसुओ को..
अनमोल मोतियो से बढ़कर है ये किसी के लिए..

मत कर रुसवा इस ज़िंदगी को
अपनी ज़िंदगी से बढ़कर है ये किसी के लिए

जो गया उसे कद्र नही तेरी मोहब्बत की.
ओर इस कायनात से बढ़कर है तू किसी के लिए..

अंजान रख संभाल कर वो हसीन पल प्यार के..
सारे सपनो से बढ़कर है वो किसी के लिए...

कहानी ज़िंदगी की

साथ मिलता नही यहाँ किसी का..
अकेले ही यहाँ चलना पड़ता है..


धूप की फ़िक्र कर रहा तू..
यहाँ अंगरो पर जलना पड़ता है..


खवाब बुनता चाँदनी रातो के..
यहाँ घने अंधेरे मैं रहना पड़ता है..


नाम है ज़िंदगी इस चीज़ का अंजान.
दुख हो हज़ार पर हँसना पड़ता है


मत करना तू गम किसी के बिछड़ने का.
हमराज़ अजनबी से यहाँ बनना पड़ता है..



मिलता नही सहारा गिरने पर ..
खुद ही अक्सर यहाँ संभलना पड़ता है..


जी अपनी ज़िंदगी एक काफ़िर की तरह
अक्सर अपना ठिकाना बदलना पड़ता है..


क्यों बेचैन तू अपनी तकलीफो से
इनका सामना तो हर मुसाफिर को करना पड़ता है


आते है काँटे  हज़ार रास्ते मैं..
चलना है तो दर्द सहना ही पड़ता है..





Sunday, November 27, 2011

बारिश

भीगा भीगा सा ये आसमा
मुझे कुछ गुदगुदाता हुआ

इंतेज़ार हल्की इक बारिश का..
कुछ मुझे तरसाता हुआ...

छुपाए है सूरज को अपने आँचल मे जो..
उन बदलो से वो बतियता हुआ..

सुहाने इस मौसम बेगाने मे..
इंद्र-धनुष खुशी का एक बनाता हुआ...

बस कुछ पल देख राह मिलन की
मुझसे ये मनवाता हुआ...

इंतेज़ार तुझे अपने मीत से मिलने का..
अहसास हर पल मे ये दिलाता हुआ...

भीगा भीगा सा ये आसमान..
कुछ मुझे कुछ गुदगुदाता हुआ

ओर आने वाले लम्हो की खबर से.
अंजान मंद मंद मुस्कुराता हुआ..

Ishq

ho jata hai aksar yu.. sochta hai kuch or..
par kuch or byaan ho jata hai..

kahte kahte jajabato ke wo tarane..
achanak kisi sur par chup ho jata hai...

thahra hua sa samaa meethi shararto ka..
halki si muskan chhod jata hai..

jab hota hai samna us masoom chehre se
neeli aankho main unki sara jahan doob jata hai

nigaho se hota hai byaan haal e dil phir..
or har chehre main nazar wo chehra aata hai..


Aksar ishq main hota hai Anjaan ye ki..
baithe baithe kisi ki yad min aksar dil kho jata hai..

Saturday, November 26, 2011

Mahfile

chala jaata hu un mahfilo se jahaan baat hoti hai mahabbat ki..
aithbar mohbaato par ab kar nahi sakta...

dariya kaho aag ka.. ya chandni kaho chand ki ise..
par gahre is sagar main Anjaan ab ye tar nahi sakta..

raah dekhti hai galiyan payar ke un matwalo ki ab bhi..
har lamha wahan main ab jal nahi sakta..

ye niyam hai ia lutf uthane wale begairat zaamane ka
murda  dubara kabhi yahan mar  nahi sakta,,

Subah

kahin jab suraj ki ek kiran..
vibhor ki hawao ki thanadk ko madak banati hai..

pahli jhalak baagh ke phoolo ki
mughe chupke chupke kuch halke se bahkaati hai...



prakarti ki is suhane drishya main...
Anjaan wahi ka hokar rah jata hai..

pal pal chanta kohra subah ke aasmano se..
mano koi apna khushi ka paigam lekar aata hai..



koyal ki wo meethi boli..
ek naye din ka ahsaas karati hai..

meethi khusbu maati ki..
mughe chupke chupke kuch halke se bahkaati hai...

Mohabbat

Mat poochna sanam mere ki kahan main yu kho gya..

jawab kabhi na iska de paunga...

kiya jo tumne mughe badnaam aashiq pagal kahkar..

Wo ilzaam bhi main sah jaunga...

nazaro mian teri main bewafaa sahi... mohabbat ye aankho se

main kabhi na lekin chupa paunga...

shuru kiya tune jo daur ye lambi judai ka zaalim

bus ek din teri intezaar main hi tut jaunga..

barso se tarsa hu teri jis ek jhalak ke liye..

us pyas ko main kaise bhujaunga,,,

har pal marti is cheez ko kahte hai yadi zindai..

to har dua me main ek maut chahunga..

Shadat

chand lamho ke beech rahti hai zindagi...
jeelo mughe har pal me kahti hai zindagi

tham na jaana ek raahgeer ke bichadne se..
rahgiro ka intezaar bhala kahan karti hai zindagi..
...
mere jane ka gam na manana mere sathiyo..
sath bitaye jo lamhe wahan rahti hai zindagi ....

jahan mila naseeb mughe is mitti ke liye mar jaane ka...
bhala kahan aise maut se pyari hai zindai...

rakha jinhone maan mere desh ki pawan dharti ka..
Anjaan. naman karti hai us shadat ko meri ye zindagi...

Chand lamho ke beech rahti hai zindagi...

Chand lamho ke beech rahti hai zindagi...

Friday, November 25, 2011

Aansuo ki kalam

nahi mili shyahi jab likhne ko ..
Aansuo ki kalam se likh di ishq ki ye dastaan,,,

wade the sath jine marne ke jin paano par...
ab likha hai tanhaiyo main jeena ka farmaan...
...
khoya kuch apna wajood usne is tarah..
mit gayi hasti uski.. nahi mili wo pahchaan...

sitam dekho un ka is berukhi par bhi...
naseheeto ke bahane se kahte jeena hai aasaas...

puche koi unse jwaab meri baato ko..
kaise khilenge phool pedo par jab jad ho jaye bejaan...

jab sath hi nahi hai tera mere naseeb main..
miltegi kaise umeed ek bar phir se milne ki... Pooch raha ye Anjaan

Wednesday, November 23, 2011

shikayat...

begairat lamhe .. ruk jaate kuch der to kya baat thi...
kuch der or unse mohabbat ka ikarar hi kar leta

naseeb bewafa.. milata unse mughe phir to kya baat thi...
kuch der or unhe pyar hi kar leta...
...
beasar fariyade.. sun li jaati to kya baat thi...
kuch der or unka deedar hi kar leta...

beparwaah mout bhi ab.. aati ruk kar thoda to kya baat thi..
Anjaan kuch der or unka intezaar hi kar leta...

Sunday, November 20, 2011

maajhi or kashti

kashtiyan lag jaati ahi thikane aksar maaziyo ke bina...

maajhi ka unhe koi armaan nahi.. 

ANJAAN kashtiyan na de yadi mouka maajhiyo ko to,,,

maazi ki koi pahchaan nahi

kastiyan

dekha jab khitiz tak... sahil na kahin nazar aaya...
andhera tha jaise din main ho ghana kohra chaya..

kastiyan chal rahi thi ab lahro ke sahare se...
jab gahre saunder main koi na maajhi nazar aaya..

iraade the mazboot or himmat bawandar se takarane ki..
or manzoor tha yadi naseeb main dubna hi aaya...

jhuka aasman irado se or badli dishaye hawao ki
ab kashtiyo ne tha jab ek naya mukaam banaya...

badhi kashtiyan bin maajhi ke Anjaan
or sailab khushiyo ka Ashko main nazar aaya...

intezaar mulakat ka

wo bole ki hogi mulakat sapno ke jahan mian...
kahan neend aayegi ab ANJAAN ko ap aise samaa main...

thahar gaya hai zamana sara .. jaise chahya ho pathjhad...
or tum kahte ho milgnge hum.. jab gul khielnge gulistan main.

Saturday, November 19, 2011

Safar

raste hai jin palko par .. talaash hai unhe manzilo ki...
or jinhe pata mila manzilo ka wo rasto se bekhabar hai..

baadlo ki is moti chadar se jhanke koi kiran sharart se jab...
jo dikhaye ye zamana chalne ke liye.. rasta aata wo hi nazar hai...

Rukna kaam nahi hia is pal ka.. Anjaan.. chalte hi jana hai...
samjha is nadan dil ko .. jo is sach se ab tak bekhabar hai...

ban jaate hai raaste is kayanat main.. nazar ho yadi manjilo par...
takdeere banti hai honsolo se ...  jab zindagi sirf ek safar hai...

Friday, November 18, 2011

Humraahi

Baitha tha ek daal par .. jab ke chote keet ki tarah..



Ud kar dekha jo aasmano main to laga ek parinda hai wo..






Jo chhode the humraahi us daal par kabhi...


samne aaye hai jo shikwe.. unse ab sharminda hai wo...






Mayoos tha takadeer ke andhero kono main jo..


paya khud kekareeb use khuda ka nek banda hai jo..






sapno ki us Kafan main lipta tha jo Anjaan..


Aankhe khuli tha paya ki abhi Zinda hai wo...


Thursday, November 17, 2011

ANJAAN

Mom sa hai kabhi.. Pyar se pal main pighal jaye
Bigda tufaan hai kabhi.. kar tabaah sab nikal jaye

Thandi hawa ka jhonka kabhi... ek nayi umang jo bhar jaye ..
kabhi ufanate Laave sa.. Sarvnash jo yu  kar jaye...

Aks aise jisse.. sadiyo ka rishta bhi ban jaye..
ek pal m hai aisa Ajnabee.. khud se jo gum jaye...

Rahe kabhi har jagah yu.. Saaya usi ka nazar aaye..
Anjaan hai kabhi duniya se.. Dundhne par bhi na mil Paaye..

Wednesday, November 16, 2011

Kittab - e - Zindagi

likhna sambhal ke zindagi ki ye dastaan..
ki kabhi use mitane ka khyal na aaye...

ku likhe tune kitaab ki wo paane...
samne tere ye kabhi sawal na aaye..
...
milta hai mouka mushkil se Anjaan
apni takdeer apne usoolo ki shyahi se likhne ka..

na ho kahin aisa ki ibadat kare Taumar ..
or khuda ke ghar main jagah na paaye..

Tuesday, November 15, 2011

Duaaye

Aks aisa bana khud ka is duniya ki nazar main..

ki lafz nikale jab bhi... ek dua ban jaye...

subah se jyada nirmal ho ahsaas tera

or tu khusubuo mian jaise mahua ban jaye..

Fiza ki ye saanse basera hai tera...

Pyas bujhaye jo sabki tu aisa Kuan ban jaye...

Anjaan jee le apni Jindagi kuch is tarah..

jab jikr ho gairo ki salamati ka,, Zindagi tere liye ek Jua ban jaye...

Khoj

Simta jab khud main ANJAAN.. pahuncha anant ki gahraiyo main...
khojna tha jo ek sukun... mila wo un ruswaiyo main...
Ghumshuda tha jo ek arse se,,, jee raha tha un tanhayion main...
ajnabee tha aaj wo khud ke liye bhi itna... nahi mila apni parchaiyno main...

Intejaar

Badalate mausam ka kush aisa hai mizaz...
Samajh nahi aata ki anth hai ya aagaz...

Man ye bawara hai kuch bahka bahka sa..
hai mojud samne wo, seene main dafan the jo raaz...
...
Kuch thahra hua sa hai jahan ye Anjaan ka...
inetzar hai ki koi bichda hua phir se de ek Aawaj...

Pahchan

Aasmaa ke us neele Aanchal par....Apna ek Nishan Chhod...
Chal sabse Tu milakar apne kadam.. Bhagwan banne ka armaan chhod...
Mat kar Gurur khud par itna.... Bematlab hai jo wo Jootha abhimaan Chhod...
Jaana hai yahan se sabko ik din... Anjaan jaane se pahle apni ek pahchaan chhod...

Sach Zindagi ka

Sagar sa Shant kabhi... Kabhi nadiyo sa ufaan hai...
Chadai hai unche parbato ki kabhi .... Kabhi gahre Gart ki Dhalaan hai..

Vadiyo sa hai khubsurut yu to. Par kabhi Registaaan sa Veeran hai...
Anjaan.. Jiye hans kar to hai ye masoom... nahi to Zindagi ye shamshan hai..

Chah.. aage badhne ki

Baadlo k beech us Ghani dhundh main... kho jane ka dil karta hai...
Samaunder ke un gahariyo mian... Bah jane ka dil karta hai...
Pahado ki un Unchayion ko.. Chune k dil karta hai...
Ruka tha ye Anjaan shidatto se.. bus ab par laga kar ud jane ka dil karta hai...

Nadan Dil

Chalo chale zindagi ki un rasto par sath sath... Ki safar ye tanha ab kat - ta nahi h.

Aks aisa bana h uska.... sapno se mere wo hat-ta nhi hai..

Justju aise hai in raato ki.. ... Ki ye saanato ka saamaa mit-ta nhi h..

Manzilo ki chah ANJAAN ab hai is tarah... Ki naya koi rasta dikh -ta nhi h

meri kahani - falsafo ki jubaani

ek Akela chala tha un raho par...
manzilo ke jahan koi charche na the
 

Aankho main the wo badal ab tak...
kisi ke liye jo barse na the...

jaane Kitne hi tufaaa aaye or gaye..
par ye karwan rukta nahi hai

man bhi nasamajh hai kitna
manzil ho koi bhi..par rukta nahi hai...

zindagi shayad isi ka naam hai...
jahan main or tu kuch pal ke mehmaan hai...

muskara ke chalta ja raha hai un raho par
manzilo se ye ANJAAN magar aaj bhi Anjaan hai...

Ajnabee Chehra

Parinde ke par nikale the....aasmano ki udan ke liye..
Chale the wo apni dhun main... apni ek pahchaan ke liye...
khitizpar pahunch kar dekha... mila tha ek naya mukaam...
nahi mila to bus ek chehra ... jo ruka ho us Anjaan ke liye..

Ahsaas

bikhra tha tukdo main jo dil... dekha sapno main use jab jod kar...
jaga diye neend se bhi .... tumne mughe yu Jhanjhod kar...

Tanha hai ahsaas mere .. jab se gagye ho yu Chhod kar...
Rasta takta hai tumhara aaj bhi Anjaan.. Laut aao tum ab Daud kar..
.

Mushkile rasto ki

dar ho jab kanto ki chubhan ka ..
Gulistaan wahan khila nahi karte,,,

kabr ho jahan har khawhish ki...
Sapne un aankho main mila nahi karte...
...
kinare aati lahro main dundhe jo Seepiyan...
moti un machuaro ko mila nahi karte...

dar ho raste ki mushkilo ka jinhe Anjaan..
Afsaane un musafiro ke bana nahi karte...

Khawhishe..

Chandni ye chand ki jab .. halke se kuch kah jaati hai..
Khawhish tumse milne ki bus.. ek khawish hi rah jaati hai...

Sard hawaye un raato ki... asar kuch aisa kar jaati hai...
Duniya is Anjaan ki bus.. tughme hi simat kar rah jaati hai...
...
khawabo ka aalam hai ye ki.. neend bhi ud jaati hai..
char pal ki ye zindagi bin tere ab... sadiyo si nazar aati hai...

Lalima ugte us suraj ki subah.. ek nayi umang lekar aati hai...
par Khawhish tumse milne ki bus.. ek khawish hi rah jaati hai...